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Editorial: समुद्री महत्त्वाकांक्षाएं – नई नीति से क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है

केंद्र सरकार के जहाज निर्माण और समुद्री क्षेत्र पैकेज को भारत की क्षमता मजबूत करने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है

Last Updated- September 26, 2025 | 9:41 PM IST
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प्रतीकात्मक तस्वीर

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जहाज निर्माण एवं समुद्री क्षेत्र के लिए 69,725 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की है। सरकार की इस पहल से भारत की क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा। घरेलू समुद्री क्षमता मजबूत करने, दीर्घकालिक वित्त सक्षम बनाने, शिपयार्ड विकसित करने और मानव पूंजी निर्माण,  इन चार स्तंभों पर केंद्रित इस पैकेज का दायरा काफी व्यापक एवं महत्त्वाकांक्षी है। यह ऊर्जा दक्षता और सतत विकास के व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ भी फिट बैठता है। मात्रा के लिहाज से भारत का लगभग 95 फीसदी विदेशी व्यापार समुद्री मार्ग से होता है। भारत की भौगोलिक स्थिति भी इसके हक में जाती है। हिंद महासागर से कई प्रमुख वैश्विक जलमार्ग गुजरते हैं जिन्हें देखते हुए भारत व्यापार, लॉजिस्टिक्स और पोत रखरखाव के एक केंद्र के रूप में काम कर सकता है। मगर भारत का जहाज निर्माण उद्योग लंबे समय से चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों से पीछे है। यह आंशिक रूप से आधी-अधूरी नीति,  कर्ज जुटाने पर अत्यधिक लागत और शिपयार्ड ढांचे में कम निवेश का नतीजा है।

यह नया पैकेज एक एकीकृत दृष्टिकोण पेश करता है। जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना अब 24,736 करोड़ रुपये के पर्याप्त कोष और 4,001 करोड़ रुपये के ‘शिपब्रेकिंग क्रेडिट नोट’ के साथ वर्ष2036 तक बढ़ाई जाएगी। एक राष्ट्रीय जहाज निर्माण मिशन इस समग्र प्रयास का मार्गदर्शन करेगा, जिससे निरंतरता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी। 25,000 करोड़ रुपये के कोष के साथ समुद्री विकास कोष के सृजन के माध्यम से दीर्घकालिक वित्त समस्याओं के समाधान की उम्मीद है। इसमें समुद्री निवेश कोष और ब्याज प्रोत्साहन कोष शामिल हैं, जिन्हें परियोजना की विश्वसनीयता में सुधार और निजी पूंजी आकर्षित करने के मकसद से तैयार किया गया है। बड़े वाणिज्यिक जहाजों को बुनियादी ढांचे का दर्जा देने का हालिया निर्णय भी महत्त्वपूर्ण है। यह जहाज मालिकों को दीर्घकालिक एवं सस्ते ऋणों तक पहुंच हासिल करने में मदद करेगा।

पैकेज का एक और महत्त्वपूर्ण बिंदु कौशल पर ध्यान केंद्रित करना है। आधुनिक जहाज निर्माण के लिए सटीक इंजीनियरिंग, स्वचालन,  डिजिटल-डिजाइन उपकरण और वैश्विक पर्यावरणीय मानकों का पालन आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन के नियम अब ऊर्जा दक्षता और कम उत्सर्जन पर विशेष रूप से अधिक जोर दे रहे हैं। इन नियमों के अनुसार जहाजों को पर्यावरण अनुकूल, हल्का और आधुनिक होना चाहिए। अगर भारत भविष्य की मांग के अनुरूप आगे बढ़ना चाहता है तो ऐसे जहाज तैयार करने के लिए भारत के कार्यबल को हुनरमंद बनाना आवश्यक है। दुनिया में अधिकांश जहाज अब पुराने पड़ चुके हैं वहीं अब पर्यावरणीय मानदंड कड़े होते जा रहे हैं। दुनिया भर की जहाज कंपनियां ऐसे जहाज चाह रही हैं, जो कम ईंधन की खपत करने के साथ कम प्रदूषण उत्सर्जित करते हैं और एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) प्रणोदन, हाइब्रिड प्रणाली और डिजिटल संचालन उपकरण जैसी नई तकनीक को अपनाते हैं।

हालांकि, चुनौतियां अपनी जगह कायम हैं। दशकों से भारतीय शिपयार्ड कंपनियां लागत में बढ़ोतरी, परियोजना में देरी और अपर्याप्त नीतिगत समर्थन से जूझ रही हैं। इसे देखते हुए सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रोत्साहन प्रदर्शन आधारित हो, शिपयार्ड स्पष्ट मानकों से साथ आधुनिक बनाए जाएं और वित्त उपलब्ध कराने वाले माध्यम पारदर्शी और आसानी से उपलब्ध हों। निजी क्षेत्र को भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए। सफल होने के लिए भारतीय शिपयार्ड उद्योग को आक्रामक रूप से वैश्विक ऑर्डर देना चाहिए, स्थापित अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ तकनीकी साझेदारी करनी चाहिए और निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सरकार को अपनी तरफ से बंदरगाहों पर लॉजिस्टिक से जुड़ी बाधाएं दूर करने जैसे उपायों पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर ये प्रभावी ढंग से लागू किए जाएं तो समग्र पैकेज से जहाज निर्माण क्षमता में बढ़ोतरी होने, लगभग 30 लाख नौकरियों के सृजन और लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश आने की उम्मीद है। आर्थिक गुणा-भाग अपनी जगह हैं मगर यह पैकेज अनिश्चितताओं से भरे मौजूदा समय में राष्ट्रीय हितों के साथ ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को मजबूती देगा।  

First Published - September 26, 2025 | 9:41 PM IST

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