संपादकीय

Editorial: नए जमाने का कानून

भारतीय दूरसंचार के लिए नई दिशा: स्पेक्ट्रम आवंटन में व्यापक बदलाव का प्रस्ताव

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- December 19, 2023 | 9:48 PM IST

एक सदी से भी अधिक पुराने हो चुके टेलीग्राफ कानून की जगह लोकसभा में दूरसंचार विधेयक 2023 का प्रस्तुत किया जाना इस क्षेत्र के लिए एक स्वागत योग्य घटना है। यह क्षेत्र वित्तीय संकट और दो कंपनियों का दबदबा होने की आशंका से जूझ रहा है और ऐसे में माना जा रहा है कि प्रस्तावित नया विधेयक इसे राहत प्रदान करेगा। केंद्र सरकार ने इस विधेयक के जरिये सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की है।

विधेयक में सबसे बड़ा परिवर्तन सभी दूरसंचार प्लेटफॉर्म के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी के सार्वभौमिक नियम के बजाय आवश्यक होने पर सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाओं के मामले में प्रशासित मूल्य निर्धारण पर स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए स्थान बनाना है। सर्वोच्च न्यायालय ने 2012 में निर्णय दिया था कि प्राकृतिक सार्वजनिक संसाधनों मसलन स्पेक्ट्रम के वितरण के लिए प्रतिस्पर्धी नीलामी की प्रक्रिया अपनानी चाहिए।

तब से स्पेक्ट्रम का आवंटन केवल बोली प्रक्रिया के जरिये हुआ है। बिल पेश करने के साथ ही सरकार ने शीर्ष अदालत से यह स्पष्टीकरण भी चाहा है कि क्या वह उन मामलों में हवाई तरंगों को प्रशासित कीमत पर आवंटित कर सकती है, जहां प्रतिस्पर्धी बोली लगाना व्यावहारिक न हो। माना जा रहा है कि अदालत का जवाब इस मसले को हल कर देगा।

प्रस्तुत विधेयक का उद्देश्य इंडियन टेलीग्राफ अधिनियम 1885, द इंडियन वायरलेस टेलीग्राफी ऐक्ट 1933 और टेलीग्राफ वायर्स (गैरकानूनी कब्जा) अधिनियम 1950 को प्रतिस्थापित करने वाला है और इससे दूरसंचार क्षेत्र को मदद मिलनी चाहिए, क्योंकि इसमें भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई की शक्तियों को अक्षुण्ण रखा गया है। ट्राई के चेयरमैन के मामले में विधेयक समुचित अनुभव वाले निजी क्षेत्र के व्यक्ति के पक्ष में है।

इससे इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से खुलापन आएगा। स्पेक्ट्रम के मामले में सुधार सामने आएंगे और एक बार कानून पारित हो जाने के बाद दूरसंचार कंपनियों का काम आसान हो जाएगा। यह सुखद है कि विधेयक सभी अंशधारकों के मसलों पर ध्यान देता है- उपभोक्ताओं को परेशान करने वाली कॉल करने वालों के खिलाफ सख्त नियमन से लाभ होगा, अगर प्रस्तावित ऑनलाइन विवाद निस्तारण प्रणाली प्रभावी ढंग से काम करती है तो उद्योग जगत, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को भी कुछ राहत मिलेगी।

इसके अलावा दूरसंचार और टावर कंपनियों को अधोसंरचना में समर्थन मिल सकता है क्योंकि विधेयक किसी दूरसंचार नेटवर्क को क्षति पहुंचाने या किसी सेवा को बाधित करने वालों के खिलाफ कड़े कदम की बात कहता है।

व्हाट्सऐप, स्काईप और अन्य ओवर द टॉप (ओटीटी) सेवाओं को राहत के रूप में उन्हें दूरसंचार नियमन से बाहर रखा गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि ओटीटी का नियमन इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा किया जाएगा।

इससे इस क्षेत्र से जुड़ी अब तक की अस्पष्टता समाप्त हो जाएगी। बहरहाल, यह प्रावधान सरकार के हाथ का खिलौना नहीं बनना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि आपात स्थिति में सरकार किसी भी दूरसंचार सेवा या नेटवर्क का अधिग्रहण कर सकेगी। इसका इस्तेमाल मुक्त बाजार का दमन करने या लोकतंत्र के दमन में नहीं होना चाहिए।

निजता के नियम तथा किन परिस्थितियों में सरकार सेवाओं को अपने हाथ में ले सकती है, इसे पर्याप्त जांच और संतुलन के साथ स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए। निकट भविष्य में उनको लाभ हो सकता है, जो अपनी ब्रॉडबैंड सैटेलाइट सेवा शुरू करना चाहते हैं, क्योंकि विधेयक में वैश्विक व्यवहार का पालन करते हुए इस क्षेत्र में स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासित मूल्य पर करने की इजाजत दी गई है।

इन बातों के बीच इस कानून को लेकर एक दीर्घकालिक नजरिया जरूरी है। वर्षों तक मसौदा तैयार करने और उसे दोबारा तैयार करने के बाद दूरसंचार क्षेत्र में पहला व्यापक सुधार वास्तव में उस उद्योग के लिए स्वागत योग्य है जो भारत के लिए बहुत सारी उम्मीदों से भरा है।

First Published : December 19, 2023 | 9:48 PM IST