संपादकीय

Editorial: परोक्ष क्षति: विकास की ताल बिगाड़ देगा महंगा क्रूड

इजराइल-ईरान संघर्ष ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक और अनिश्चितता में डाला। क्षेत्रीय तनाव के चलते ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 9 फीसदी की तेजी।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 16, 2025 | 10:49 PM IST

इजरायल और ईरान के बीच लड़ाई ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष अनिश्चितता का एक और द्वार खोल दिया है, जिसका असर भारत पर भी पड़ेगा। चूंकि दोनों पक्षों ने पीछे हटने से इनकार कर दिया है और इजरायल ने अपने लिए जो लक्ष्य तय किए हैं उन्हें देखते हुए यह लड़ाई गहराने और लंबी चलने के आसार हैं। पश्चिम एशिया में छिड़ी इस लड़ाई का फौरी असर तेल कीमतों पर महसूस किया जा सकता है। लड़ाई बढ़ने की आशंका से बेंचमार्क  ब्रेंट क्रूड की कीमतें पिछले एक हफ्ते में करीब 9 फीसदी चढ़ गई हैं।

विश्लेषकों का अनुमान है कि तेल कीमतें मौजूदा 150 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर दोगुनी हो सकती हैं। इससे पहले यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद तेल कीमतें पांच महीने तक 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊंची बनी रहीं। इजरायल और ईरान का विवाद कम से कम दो तरीकों से तेल कीमतों को प्रभावित कर सकता है। पहली बात है उत्पादन। इजरायल ने ईरान के तेल ठिकानों को निशाना बनाया है, जिससे आपूर्ति बाधित हो सकती है।

विश्लेषकों का कहना है कि पेट्रोलियम निर्यातक देशों के समूह के पास कमी पूरी करने की क्षमता है मगर देखना होगा कि वे कितनी जल्दी उत्पादन बढ़ा पाते हैं। मगर यह संघर्ष अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में फैला तो इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।

अनिश्चितता का दूसरा कारण है होरमुज जलडमरूमध्य में रुकावट। दुनिया का एक तिहाई तेल इसी रास्ते से होकर जाता है। कच्चे तेल के साथ गैस की आपूर्ति भी गड़बड़ हो सकती है। पहले ही व्यापारिक अनिश्चितताओं से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर तेल-गैस कीमतों में निरंतर इजाफे का बहुत बुरा असर होगा। तेल और गैस की ऊंची कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था को कई तरह से सीधे प्रभावित करेंगी। तेल कीमतों में तेजी व्यापार घाटा भी बढ़ा सकती है। इस साल चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 1 फीसदी होने का अनुमान है।

मगर विश्लेषकों के अनुमान के मुताबिक तेल कीमतों में लंबे समय तक तेज इजाफा होता रहा तो चालू खाते का घाटा भी काफी बढ़ सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार में भारत महफूज है और बाहरी मोर्चे पर अनिश्चितताओं से आसानी से निपट सकता है। लेकिन चालू खाते के घाटे में इजाफा वित्तीय चुनौतियां पैदा कर सकता है क्योंकि वैश्विक वित्तीय हालात भी तंग होते दिख रहे हैं। ऐसे में तेल कीमतें मुद्रा पर और दबाव डाल सकती हैं।

कच्चे तेल की ऊंची कीमतें वृद्धि और मुद्रास्फीति को सीधे प्रभावित करेंगी। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुसार तेल कीमतों में 10 फीसदी का इजाफा मुद्रास्फीति को 30 आधार अंक बढ़ा सकता है और वृद्धि को 15 आधार अंक कम कर सकता है। तेल कीमतों में अधिक इजाफा ज्यादा प्रभाव डालेगा। रिजर्व बैंक की अप्रैल की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कच्चे तेल (इंडियन बास्केट) की कीमतें 2025-26 में 70 डॉलर प्रति बैरल रहने की उम्मीद जताई गई है। हालांकि भारत मुद्रास्फीति के मोर्चे पर सहज है, जिस कारण मौद्रिक नीति समिति नीतिगत दरों में कटौती जारी रख सकी। मगर तेल कीमतें लगातार ऊंची रहीं तो अनुमानों पर असर पड़ सकता है और मुद्रास्फीति की तस्वीर भी बदल सकती है।

ऊंची तेल कीमतों के कारण सरकार ने उत्पाद शुल्क घटाया अथवा तेल कंपनियों से कीमत का बोझ सहने को कहा तो खजाने पर असर पड़ सकता है। अगर तेल कीमतें आर्थिक वृद्धि पर असर डालती हैं तो भी राजकोषीय स्थिति प्रभावित होगी और राजस्व संग्रह प्रभावित होगा। युद्ध और ऊंची तेल कीमतों से उत्पन्न अनिश्चितता के कारण परिवारों और कंपनियों के खपत एवं निवेश के फैसलों पर असर पड़ सकता है। इसका असर वृद्धि की संभावनाओं पर भी पड़ेगा। भारतीय नीति प्रबंधकों को इससे निपटने में सावधानी बरतनी होगी।

First Published : June 16, 2025 | 10:30 PM IST