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Editorial: सरल GST संरचना से बढ़ेगा उपभोग, पीएम मोदी बोले देश ₹2.5 लाख करोड़ बचा सकेगा

जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में मुख्य रूप से दो दरों वाली व्यवस्था — 5 फीसदी और 18 फीसदी — अपनाने का निर्णय लिया गया

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 22, 2025 | 9:54 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में इस बात का उल्लेख किया कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संरचना में बदलाव से आम लोगों के लिए वस्तु एवं सेवाएं किस हद तक सस्ती हो जाएंगी और कंपनियों के लिए कारोबार संचालन कितना आसान हो जाएगा। वस्तु एवं सेवा कर परिषद (जीएसटी काउंसिल) ने इस महीने की शुरुआत में जीएसटी व्यवस्था में नई संशोधित दरों के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी। जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में मुख्य रूप से दो दरों 5 फीसदी और 18 फीसदी वाली व्यवस्था अपनाने का निर्णय लिया गया।

अधिकांश वस्तु एवं सेवाएं इन्हीं दो कर श्रेणियों में आएंगी जबकि अहितकर वस्तुओं पर 40 फीसदी की दर लागू होगी। परिषद ने कुछ अहितकर वस्तुओं को छोड़कर अन्य पर क्षतिपूर्ति उपकर भी हटा दिया। कोविड-19 महामारी में राज्यों को हुए राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए गए ऋण चुकता होने तक कुछ अहितकर वस्तुओं पर उपकर की व्यवस्था लागू रहेगी। संभवतः उपकर अगले कुछ महीनों में पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे।

जीएसटी संरचना सरल होने के बाद निःसंदेह सभी संबंधित पक्षों को फायदा पहुंचेगा। सरकार को उम्मीद है कि आयकर राहत के साथ जीएसटी दरें कम होने के बाद देश में उपभोग को बढ़ावा मिलेगा। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन इस बात का जिक्र किया कि आयकर दरों और जीएसटी में संशोधनों से भारत के लोग कुल मिलाकर 2.5 लाख करोड़ रुपये बचत कर पाएंगे। इन बदलावों से देश में उपभोग बढ़ना चाहिए मगर यह किस सीमा तक बढ़ेगा इसका पता कुछ समय बाद ही चल पाएगा।

इन बदलावों का एक दूसरा पक्ष यह है कि इनसे सरकार के राजस्व संग्रह पर असर होगा। राज्यों को मिलने वाले राजस्व पर अधिक असर पड़ने की उम्मीद है क्योंकि केंद्र सरकार के कर संग्रह का भी एक हिस्सा राज्यों को मिलता है। गौर करने की बात है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पिछले सप्ताह राज्यों की वित्तीय स्थिति पर एक विशेष रिपोर्ट जारी की। हालांकि, यह रिपोर्ट वर्ष 2022-23 के लिए है इसलिए इसके आंकड़े नए नहीं हैं और मोटे तौर पर सभी इनसे अवगत हैं। मगर इस रिपोर्ट में पिछले एक दशक का विश्लेषण एवं शोध चर्चा योग्य हैं खासकर इसलिए भी क्योंकि ये कर दरें घटाए जाने के समय जारी हुए हैं।

इस रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि राज्यों में सार्वजनिक ऋण समग्र स्तर पर परिपूर्ण रूप में वर्ष 2013-14 और 2022-23 के बीच बढ़कर 3.39 गुना हो गया। सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के फीसदी के रूप में सार्वजनिक ऋण उक्त अवधि में 16.66 फीसदी से बढ़कर 22.96 फीसदी हो गया। लोक लेखा देनदारियों पर विचार करने के बाद राज्यों की कुल देनदारी जीएसडीपी का लगभग 28 फीसदी हो गई है। पिछली राज्य वित्त रिपोर्ट (दिसंबर 2024) में भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार बाद के वर्षों में देनदारी और बढ़ गई है।

कर्ज का स्तर बढ़ने का मतलब है कि राज्यों पर इन्हें चुकाने का बोझ भी बढ़ गया है जिससे अन्य कार्यों के लिए उनके पास आर्थिक संसाधन कम बच रहे हैं। लगभग 10 राज्यों का ब्याज के मद में भुगतान उनके कुल व्यय का 10 फीसदी से अधिक पहुंच गया था। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ राज्यों ने अपने वित्तीय संसाधनों का बेहतर प्रबंधन किया है मगर राजस्व में संभावित नुकसान कमजोर राज्यों पर अधिक असर डाल सकता है।

वृहद स्तर पर देश एक सरल जीएसटी व्यवस्था की तरफ कदम बढ़ा चुका है जिसका निश्चित रूप से स्वागत किया जाना चाहिए। इसके बावजूद पिछले कुछ सप्ताह के दौरान कई विशेषज्ञों ने जीएसटी व्यवस्था में अगले चरण के सुधारों की आवश्यकता पर बहस छेड़ दी है। उदाहरण के लिए राजस्व के संबंध में यह सुझाव दिया जा रहा है कि राजस्व संग्रह अधिक रखने के लिए 5 फीसदी दर की जगह थोड़ी अधिक दर तय की जानी चाहिए थी।

ये सुझाव भी आए हैं कि जीएसटी मुक्त वस्तु एवं सेवाओं की सूची पर पुनर्विचार होना चाहिए और पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी व्यवस्था के दायरे में लाया जाना चाहिए जिनसे कारोबार को काफी मदद मिलेगी। हालिया सुधारों से उपभोक्ताओं एवं कारोबार जगत को जरूर मदद मिलेगी मगर भविष्य में और उपाय किए जाने की जरूरत भी पेश आएगी। राजस्व पर होने वाले प्रभावों पर भी पैनी नजर रखनी होगी।

First Published : September 22, 2025 | 9:37 PM IST