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Editorial: पुरानी समस्याओं से त्रस्त बिजली क्षेत्र

देश के उत्तरी राज्यों में बिजली की मांग और आपूर्ति में बड़ा असंतुलन आ गया है। इनमें तो कुछ राज्य विनिर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में जाने जाते हैं।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 04, 2023 | 9:39 PM IST

देश में बिजली की मांग बेतहाशा बढ़ गई है। अधिक दिनों तक गर्मी का तांडव और बढ़ते आर्थिक क्रियाकलाप इसके मुख्य कारण हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए लंबे समय तक बिजली गुम रहने की आशंका प्रबल हो गई है। देश के उत्तरी राज्यों में बिजली की मांग और आपूर्ति में बड़ा असंतुलन आ गया है। इनमें तो कुछ राज्य विनिर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में जाने जाते हैं।

हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में बिजली की कमी 2 सितंबर तक बढ़कर 1.3 करोड़ यूनिट हो गई। वर्ष 2022 में इन राज्यों में बिजली की कमी क्रमशः 43.2 लाख और 53.4 लाख यूनिट थी। गुजरात और मध्य प्रदेश की स्थिति तो विशेष ध्यान देने योग्य है। पिछले साल इन दोनों राज्यों में बिजली की कमी शून्य थी, मगर अब यह बढ़कर क्रमशः 1.59 करोड़ और 1.66 करोड़ यूनिट हो गई हैं।

कुल मिलाकर, देश में बिजली की मांग 250 गीगावॉट के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने के कारण 1 सितंबर को बिजली की कमी 10 गीगावॉट के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। बिजली की किल्लत से जुड़ी एक प्रमुख बात यह है कि कोयले की उपलब्धता रहने के बाद भी यह स्थिति पैदा हुई है। अमूमन बिजली की किल्लत के लिए कोयले की कमी या जल विद्युत ढांचे में कमजोरी को जिम्मेदार ठहराया जाता है। देश में 70 प्रतिशत बिजली उत्पादन कोयला आधारित है।

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वास्तव में केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने देश के ताप विद्युत संयंत्रों तक कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अप्रैल में पहल शुरू कर दी थी। इसी दौरान कोल इंडिया ने कोयले का पर्याप्त उत्पादन भी किया और वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में उत्पादन अब तक के सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गया। अगस्त में उत्पादन वृद्धि दर दो अंकों में रही। बारिश से किसी तरह का व्यवधान नहीं होने से ताप विद्युत संयंत्रों में कच्चे माल की कमी भी महसूस नहीं की गई।

तो प्रश्न उठता है कि बिजली की कमी का कारण क्या है? मुख्य रूप से यह प्रतीत होता है कि बिजली की कमी के लिए वे पुराने ढांचागत कारण जिम्मेदार हैं जो दशकों से इस क्षेत्र के लिए परेशानी का सबब रहे हैं। चुनावी राजनीति के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण समझे जाने वाले समूहों (जैसे किसान आदि) को लागत से भी कम दर पर राज्यों द्वारा बिजली उपलब्ध कराने से राज्य वितरण कंपनियों के पास बिजली क्षेत्र में मूलभूत ढांचे में निवेश के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं बच रहे हैं।

बिजली मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कुल 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 27 कुछ खास समूहों के उपभोक्ताओं को सब्सिडी देते हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि पारेषण एवं वितरण में होने वाला नुकसान वित्त वर्ष 2013 में दर्ज 25.5 प्रतिशत से कम होकर वित्त वर्ष 2023 में 13.5 प्रतिशत रह गया है। केंद्र की प्रोत्साहन योजनाओं की इसमें विशेष भूमिका रही है। इसका अर्थ है कि राज्य अनधिकृत कनेक्शन एवं बिजली की चोरी पर अंकुश लगाने में सफल रहे हैं।

हालांकि, यह बात भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय ग्रिड से बिजली खरीदने की बिजली वितरण कंपनियों की क्षमता सीमित है। बिजली मंत्रालय ने बिजली की उचित दर और राष्ट्रीय ग्रिड में आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निजी एवं अर्द्ध-निजी बिजली कारोबारी संस्थाओं (पावर ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म) की योजना तैयार की है। अब देखना यह है कि यह व्यवस्था वर्तमान परिस्थितियों में कितनी कारगर होती है।

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केंद्र एवं राज्यों ने इस वर्ष ताप विद्युत क्षमता 14,700 मेगावॉट बढ़ाने की योजना भी तैयार की है। उम्मीद की जाती है कि देश में बिजली की मांग एवं आपूर्ति में भारी अंतर दूर करने में इससे कुछ हद तक मदद पहुंचेगी। मगर इतने व्यापक स्तर पर उत्पादन क्षमता बढ़ाना अक्षय ऊर्जा (पवन, सौर) से लगाई उम्मीदों पर भी प्रश्न खड़ा करता है।

देश में कुल ऊर्जा आपूर्ति में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी इस समय मात्र 11 प्रतिशत है। सरकार ने 2030 तक देश में अक्षय ऊर्जा क्षमता बढ़ाकर (वर्तमान में 172 गीगावॉट) 500 मेगावॉट तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, मगर इसे हासिल करना आसान नहीं लग रहा है।

अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति में उतार-चढ़ाव ग्रिड परिचालन के लिए चुनौतियां उत्पन्न करते हैं जिनका अब तक पूर्ण समाधान नहीं खोजा गया है। तकनीकी चुनौतियों के कारण अक्षय ऊर्जा की सीमित भूमिका ऐसे समय में बड़ी कमजोरी साबित हो सकती है जब सरकार बिजली की बढ़ती मांग और शून्य उत्सर्जन लक्ष्य के बीच संतुलन स्थापित करना चाहती है।

First Published : September 4, 2023 | 9:39 PM IST