सोलहवें वित्त आयोग के लिए सरकार की योजनाएं आकार ले रही हैं और इनमें कुछ चौंकाने वाली बातें शामिल हैं। सरकार ने यह घोषणा की है कि सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविंद पानगडि़या (वर्तमान में कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और नीति आयोग के गठन के तत्काल बाद उसके उपाध्यक्ष रह चुके हैं) इस आयोग की कमान संभालेंगे। आयोग के अन्य सदस्यों के बारे में घोषणा का इंतजार है।
प्रोफेसर पानगडि़या निश्चित तौर पर इस बात से अवगत हैं कि भारत में तकनीकी प्राथमिकताओं के क्रियान्वयन के मामले में किस प्रकार की राजनीतिक बाधाएं सामने आती हैं। वर्तमान व्यवस्था भी इससे अलग नहीं है। परंतु इसके बावजूद वित्त आयोग के अध्यक्ष के रूप में काम करने के लिए एक नाजुक राजनीतिक संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है ताकि राजकोषीय संघवाद के मामले में विभिन्न राजनीतिक गुटों के बीच समझौते को तेजी से अंजाम देने में मदद मिल सके।
तथ्य यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संघीय तनाव बढ़ने के बीच वित्त आयोगों की भूमिका लगातार अहम होती जा रही है। वित्तीय संसाधनों और राजनीतिक शक्ति को लेकर राज्यों के बीच अलग-अलग मत के साथ भी यही बात है। उदाहरण के लिए दक्षिण भारत के राज्य उत्तर भारत के राज्यों को किए जाने वाले हस्तांतरण के आकार को लेकर बहुत अधिक चिंतित हैं।
अन्य राज्य सरकारें इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अपनी नीतियों को लेकर उन्हें बहुत कम स्वतंत्रता हासिल है। वस्तु एवं सेवा कर ने बिक्री कर तय करने की उनकी स्वतंत्रता छीन ली है। केंद्र सरकार के कल्याण कार्यक्रम बहुत अधिक प्रभावी होते जा रहे हैं और समय के साथ स्थानीय बिजली वितरण कंपनियों के उपयोग या दुरुपयोग जैसे संरक्षण के अवसर भी कम होते जा रहे हैं।
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निस्संदेह क्षेत्रीय नेता इसे राजनीतिक गुंजाइश बनाने और उसे बरकरार रखने की अपनी क्षमता में घुसपैठ के रूप में देखते हैं। ऐसे में नीतिगत प्रयोगों और राज्य स्तर की कुछ जरूरतों की पूर्ति के लिए भी बहुत कम गुंजाइश बचती है। सोलहवें वित्त आयोग के पास यह जिम्मेदारी होगी कि वह उन संसाधनों का निर्धारण करे जो इन नाखुश राज्य सरकारों के लिए उपलब्ध होंगे। ऐसे में आयोग का काम व्यापक तौर पर कार्यशील संघवाद के संरक्षण का होगा जबकि इसके साथ ही उसे वृद्धि और विकास की गति को भी बरकरार रखना होगा।
सोलहवें वित्त आयोग से जुड़ा दूसरा आश्चर्य यह है कि सरकार ने आयोग के कार्यक्षेत्र के बारे में न्यूनतम निर्देश जारी करने का निर्णय लिया है। पिछले वित्त आयोगों को सुरक्षा व्यय को नियंत्रित करने से लेकर सरकार के तीसरे स्तर को मिलने वाली वित्तीय मदद तक की सुरक्षा की समीक्षा के लिए विभिन्न विषयों का एक विस्तृत सेट जारी किया गया था। पंद्रहवें वित्त आयोग के कार्यक्षेत्र को कुछ हद तक विवादास्पद भी माना जाता है क्योंकि यह माना गया कि वे राज्यों की कल्याण योजनाओं को ‘लोकलुभावन’ ठहराने को प्रोत्साहित करती थीं जबकि केंद्र सरकार की योजनाओं के साथ ऐसा नहीं था।
सोलहवें वित्त आयोग के कार्यक्षेत्र में ऐसे किसी भी विवाद से बचा गया है। कार्यक्षेत्र के बिंदु संविधान के तहत ऐसे आयोगों के लिए दिए अधिदेश के अनुरूप हैं। ऐसे में आयोग के अध्यक्ष को सामान्य से अधिक विवेकाधिकार दिए जाएंगे। उसे ही यह तय करना होगा कि आयोग को किन मुद्दों पर अधिक समय लगाना है। आयोग का प्रबंधन राष्ट्रीय एकीकरण की कवायद होगा, न कि साधारण तकनीकी अथवा लेखा कवायद। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है।