भारत में कई ऐसे युवा हैं जो एक ऐसी योग्यता हासिल करना चाहते हैं जिससे वे अपने पैरों पर खड़ा हो सकें और बेहतर कमाई करते हुए पेशेवर तरीके से तरक्की करें। कई ऐसी कंपनियां और संस्थान हैं जिनका कहना है कि उन्हें पर्याप्त रूप से योग्य लोग नहीं मिल सकते हैं। पिछले कुछ दशकों में कई संस्थाओं द्वारा उच्च-स्तरीय वार्ता करने और कदम उठाए जाने के बावजूद प्रासंगिक क्षमता वाले लोगों की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई कम नहीं हो पाई है। युवा भारत अपनी वांछित क्षमता को हासिल करने में सक्षम नहीं है।
समानांतर स्तर पर कई राष्ट्रीय पहल चल रही है और सबका अपना विचार है कि किस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए और इसे कैसे पूरा किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम और ‘स्किल इंडिया’ में ‘कौशल’ शब्द का उपयोग किया जाता है और यह कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के अंतर्गत आता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आती है और इसके ही जरिये ‘व्यावसायिक शिक्षा’ निर्धारित होती है। औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्रों (आईटीसी) का नेटवर्क ‘औद्योगिक प्रशिक्षण’ और ‘व्यावसायिक हुनर’ सिखाने पर ध्यान देता है।
हालांकि कॉलेजों के डिग्री पाठ्यक्रमों के नामांकन में वृद्धि हुई है लेकिन इसके आकलन से जुड़ी रिपोर्ट खराब गुणवत्ता वाली शिक्षा के संकेत देती है जिससे लोगों को कम रोजगार मिलता है। एक युवा/युवती जो नर्स, पैरामेडिक, क्रेन ड्राइवर, कार मैकेनिक, पर्यटन या मीडिया से जुड़ी सामग्री में काम करना चाहती हैं लेकिन वे पसोपेश में हैं और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि उन्हें क्या पढ़ना है या कहां पढ़ना है। अगर वे कुछ निजी प्रशिक्षण कॉलेज की पहचान भी कर लें तब भी वे इसके खर्च का बोझ नहीं उठा सकते (न ही उन्हें इसके लिए ऋण मिल सकता है) हैं।
इस अव्यवस्थित क्षेत्र को सरल और कारगर बनाने की तत्काल जरूरत है और इसकी कल्पना नए सिरे से करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि इससे संसाधन और लोगों के प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रयास, एक शब्दावली, एक रणनीति (रणनीति को एक धुन के बजाय कई संभावित गीतों वाले एक राग के तौर पर सोचें) और इन कार्यों को पूरा करने वाले कई लोग वास्तव में इसकी गति को बढ़ाने में उपयोगी साबित होंगे।
शुरुआत एकल शब्दावली और एकल मिशन वक्तव्य से करते हैं। कौशल विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कारोबार के बारे में सिखाना भी शिक्षा का ही हिस्सा है और हम इसी शब्द का इस्तेमाल करते हैं। युवा लोगों को शिक्षित करने का काम किया जाना है (कुछ कठोर औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण देना) ताकि वे कुछ ऐसी क्षमता हासिल कर लें जिससे वे खुद को एक पेशेवर की तरह तैयार कर सकें और स्थायी रूप से कमाई कर सकें और जीवन में प्रगति कर सकें। इस परिभाषा के अनुसार, कई कौशल से जुड़ी पहल इसके लिए पात्रता नहीं रखती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का जोर उच्च गुणवत्ता वाले व्यावसायिक (पेशे में सहायक साबित होने वाली) शिक्षा की दिशा में है। यह अच्छी खबर है। इसके अलावा यह नीति इस तरह की धारणा को भी दूर करती है कि मुख्यधारा की शिक्षा से व्यावसायिक शिक्षा औसत दर्जे की है और इसी वजह से एनईपी ने कक्षा 6 से ही व्यावसायिक शिक्षा शुरू करने का प्रस्ताव रखा है।
हालांकि अच्छे इरादों के बावजूद, इसमें दिक्कत आएगी। धारणागत मुद्दे को हल करने का सबसे अच्छा तरीका है कॉलेजों में सामान्य पाठ्यक्रमों के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पेशकश की जाए या फिर गैर-मूल्यवर्धक सामान्य पाठ्यक्रमों की जगह व्यावसायिक रूप से विशेषज्ञ पाठ्यक्रम की पेशकश की जाए और उन्हें नई ‘मुख्यधारा’ में लाया जाए। लेकिन कक्षा 10 तक क्या हम लोगों के सर्वांगीण विकास पर पूरा ध्यान केंद्रित कर सकते हैं ताकि वे बेहतर जानकारी से लैस होकर अपना जीवन जी सकें? सभी को इतिहास, भूगोल, विज्ञान, नागरिक शास्त्र और अब आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, साइबरस्पेस, जलवायु परिवर्तन और साहित्य के बारे में भी जानने की जरूरत है। ऐसे में कक्षा 10 के बाद भी व्यावसायिक पाठ्यक्रम वाला कॉलेज शुरू हो सकता है।
यहीं पर पूरे कॉलेज तंत्र की पुनर्कल्पना करने की आवश्यकता है। शायद इसका जवाब विशेष व्यावसायिक कॉलेजों का एक नेटवर्क तैयार करने से जुड़ा हो सकता है या फिर सभी मौजूदा कॉलेजों में व्यावसायिक पाठ्यक्रम शामिल करना भी हो सकता है ताकि इन्हें सामान्य स्नातक डिग्री के वास्तविक विकल्प के रूप में देखा जा सके। व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों के लिए, निजी कॉलेज शुल्क कारगर नहीं होगा।
सरकार को सरकारी कॉलेजों में व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों का विस्तार करना होगा और नए निजी कॉलेजों को प्रोत्साहित करने के साथ ही मौजूदा कॉलेजों को सब्सिडी के माध्यम से एक निर्धारित फीस पर इन पाठ्यक्रमों की पेशकश करने के लिए बाध्य करना होगा। आईआईटी और आईआईएम क्या नहीं कर पाए हैं उसे दुरुस्त करने के बजाय उच्च गुणवत्ता वाली व्यावसायिक शिक्षा देने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी और व्यापक ढांचा होना चाहिए। इसके साथ ही उन 50 पेशे पर ध्यान दिया जा सकता है जहां पहले से ही कमी महसूस की जाती है या इस कमी का अनुमान लगाया जाता है, या जहां वैश्विक मांग है। यह निवेश हमारे सभी युवाओं को एक पेशेवर मौका देने और आबादी का लाभ उठाने देने के लिए आवश्यक है।
अब यह समय की मांग है कि हम युवाओं, उनके माता-पिता और खासतौर पर निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर पर जी रहे लोगों के साथ सीधे लगातार संवाद करें कि वे कैसे पेशेवर योग्यता हासिल कर सकते हैं। नीति दस्तावेज उन्हें सलाह देने की बात करते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इस बात को लेकर बहुत कम सामूहिक जागरूकता या जानकारी है कि आप जो करना चाहते हैं, उसके लिए कैसे योग्य बनें। उच्च सामाजिक स्तर के युवाओं के साथ एक फायदा यह है कि पैसे के लिए उतना संघर्ष न करने के साथ ही उनके पास बेहतर सूचनाएं होती हैं और उन्हें यह समझने के लिए बेहतर दिशानिर्देश भी मिलता है कि वे क्या करना चाहते हैं और वे यह सब कैसे कर पाएंगे।
व्यावसायिक शिक्षा की पुनर्कल्पना करके सामाजिक न्याय की दिशा में बेहतर सेवाएं दी जा सकती हैं। इसके साथ ही निजी क्षेत्र को शिक्षा और क्षमता विकास के लिए जिम्मेदार नहीं होना चाहिए। उन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से भर्ती किए गए अपने कार्यबल का प्रबंधन खुद ही करना चाहिए। इसके अलावा खुद में सुधार के लिए अपनी मानव पूंजी तैयार करनी चाहिए। राष्ट्र निर्माण वाली शिक्षा सरकार का काम है और इसे उसी ताकत और उत्साह के साथ किया जाना चाहिए जिस तरह सर्व शिक्षा अभियान, या आधार को सभी चीजों से जोड़ने, कोविड टीकाकरण अभियान या वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया पर अमल किया गया था।
(लेखिका ग्राहकों से जुड़ी व्यापार रणनीति के क्षेत्र में कारोबार सलाहकार हैं)