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असमानता का मुकाबला

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 10:01 PM IST

कोविड-19 महामारी ने भारत समेत विभिन्न देशों में कई स्तरों पर असमानता में इजाफा किया है। शुरुआती लॉकडाउन और सार्वजनिक गतिविधियों पर लगे प्रतिबंधों ने बड़ी तादाद में परिवारों की आय को प्रभावित किया है। महामारी ने असंगठित क्षेत्र की छोटी कंपनियों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। यह ऐसा क्षेत्र है जो ज्यादा श्रम आधारित है। हकीकत में कारोबार पूंजी आधारित बड़ी कंपनियों की ओर स्थानांतरित हुए हैं जिससे असमानता बढ़ी है। बड़ी कंपनियों को कम कॉर्पोरेट कर और कम ब्याज दर से भी लाभ पहुंचा है जिससे उनका मुनाफा बढ़ा है। भारतीय रिजर्व बैंक समेत अधिकांश केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दर कम कर दी और कोविड-19 के प्रभाव से निपटने के लिए व्यवस्था में प्रचुर नकदी डाली। इससे भी शेयर कीमतें और मूल्यांकन बढ़ा। चूंकि वित्तीय परिसंपत्तियों पर ज्यादातर समाज के बेहतर तबकों का मालिकाना होता है, इसलिए उनकी संपत्ति बढ़ी। इस संदर्भ में ऑक्सफैम इंडिया की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया कि देश के 84 प्रतिशत परिवारों को 2021 में आय का नुकसान हुआ जबकि अमीर तबके की संपत्ति में इजाफा हुआ।
इसमें कोई विवाद नहीं है कि असमानता के मसले को हल किया जाना जरूरी है। महामारी के बाद अंग्रेजी वर्णमाला के ‘के’ अक्षर की आकृति का सुधार (तीव्र गिरावट के बाद तीव्र सुधार) शायद मध्यम अवधि में स्थायित्त्व वाला न हो। यदि आय में जल्दी सुधार नहीं होता है तो इसका असर मध्यम अवधि में मांग पर भी पड़ेगा। आय और संपत्ति का एकत्रित होना सामाजिक स्थिरता को प्रभावित करेगा। एक बार महामारी का प्रभाव निर्णायक रूप से कम होने लगेगा तो यह स्थिति भी बदलेगी। प्रतिबंध समाप्त होने और आर्थिक गतिविधियों के जोर पकडऩे, खासकर शारीरिक संपर्क वाले कारोबारों में ऐसा होने पर कुछ रोजगार वापस मिलेंगे। हालांकि आय और संपत्ति की बढ़ती असमानता की समस्या को दूर करने की आवश्यकता है। इसके लिए कई स्तर पर नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी। सरकार ज्यादा मदद नहीं कर पा रही है क्योंकि बजट के स्तर पर उसके समक्ष कठिनाइयां हैं। इससे राजस्व में अधिक इजाफा नहीं होता और कर तथा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुपात भी कम रहा है। सरकार को राजस्व बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। पंद्रहवें वित्त आयोग ने कहा है कि यदि समुचित उपाय किए जाएं तो समय के साथ देश का कर-जीडीपी अनुपात पांच फीसदी तक सुधर सकता है। सरकार आगामी बजट से ही उचित हस्तक्षेप के जरिये इसकी शुरुआत कर सकती है। उदाहरण के लिए वह व्यक्तिगत करदाताओं के निवेश पर छूट समाप्त कर सकती है जो अंतत: समृद्ध तबके को ही लाभ प्रदान करती हैं। हालांकि सरकार ने ऐसा एक विकल्प दिया है लेकिन शायद वह मददगार न हो। करदाताओं को विकल्प देने से कर संग्रह में कमी आएगी क्योंकि लोग ऐसा विकल्प चुनेंगे जिसमें कम राशि जाए। कॉर्पोरेशन कर पर भी यही बात लागू होती है। विशुद्ध रूप से रियायतों का लाभ पा रहीं कंपनियां कम कर दर नहीं चुनेंगी। सरकार को ऐसे विकल्प समाप्त करने चाहिए। इतना ही नहीं व्यक्तिगत आय कर के मामले में सरकार हर प्रकार के निवेश पर होने वाली आय पर मामूली कर लगा सकती है। ऐसे बदलावों को अपनाने से न केवल राजस्व बढ़ेगा बल्कि असमानता दूर करने में भी मदद मिलेगी। इसी प्रकार सरकार अपने व्यय को समायोजित करके कम आय वाले समूहों के लिए रोजगार तैयार कर सकती है। देश में बीते वर्षों में सबसे बड़ी नीतिगत कमजोरियों में से एक यह है कि हम श्रम आधारित उत्पादों के लिए पर्याप्त बड़ा विनिर्माण आधार नहीं बना सके हैं। यदि हम ऐसा कर पाते तो न केवल अधिक रोजगार तैयार होते बल्कि आय का स्तर भी सुधरता। इस पर ध्यान देने से न केवल आय और वृद्धि में सुधार होगा बल्कि असमानता दूर करने में भी मदद मिलेगी।

First Published : January 17, 2022 | 11:09 PM IST