इस महीने 10 तारीख को गृह मंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नए सदस्य और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन कोल्हान क्षेत्र में एक विशाल रैली को संबोधित करने वाले हैं। यह रैली दोनों नेताओं के बीच संबंध मजबूत करने और चुनाव प्रचार की शुरुआत करने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण होगी। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने जमशेदपुर से टेलीफोन पर बड़े उत्साह से कहा, ‘चंपाई को भाजपा में लाना बहुत बड़ी सफलता है। उनके साथ जो कुछ भी हुआ वह झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व के अहंकार और उनकी मनमानी को दर्शाता है।’
झारखंड में इस वर्ष के अंत तक चुनाव होने हैं। झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में 14 विधानसभा सीट को कवर करने वाले कोल्हान क्षेत्र में आदिवासी बहुत क्षेत्र, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां भी शामिल है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को इस इलाके में एक भी सीट नहीं मिल पाई थी। इस क्षेत्र में झामुमो के 11 विधायक, कांग्रेस के दो और एक निर्दलीय विधायक सरयू रॉय हैं। भाजपा के नेताओं को उम्मीद है कि वे चंपाई की मदद से झारखंड में सरकार बनाने में सक्षम हो सकते हैं।
इस वर्ष की शुरुआत में चंपाई को मुख्यमंत्री बनाया गया था। ऐसा तब हुआ जब झामुमो प्रमुख और पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में गिरफ्तारी से ठीक पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। जब हेमंत जेल से रिहा हुए तब उन्होंने फिर से अपने पद के लिए दावा किया जिसे चंपाई सोरेन को खाली करना पड़ा। हालांकि चंपाई को जल संसाधन (जिसे उन्होंने खुद ही स्वीकार किया था) सहित कुछ और विभाग भी दिए गए लेकिन उन्हें यह महसूस हुआ जैसे कि उनके साथ अन्याय हुआ है।
शाह देव ने बताया, ‘अगर हेमंत ने उनसे विनम्रता से बात की होती और उनका अपमान नहीं किया होता कि वह महज एक ‘अस्थायी मुख्यमंत्री’ हैं तब संभवतः चंपाई दादा ने भी इस तरीके से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी होती। अगर यह आदेश गुरुजी (झामुमो के संस्थापक शिबू सोरेन) की तरफ से आया होता तो उन्हें यह स्वीकार होता। हमलोग उनके सामने काफी युवा हैं, उनके सामने कोई विरोध नहीं कर सकता है। हेमंत को ऐसा नहीं करना चाहिए था।’
हालांकि हेमंत के समर्थक इस बात का विरोध जमकर करते हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र ने बताया, ‘वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत को राज्य में सरकार चलाने का जनादेश मिला। होना यह चाहिए था कि जब हेमंत को अदालत ने निर्दोष ठहराया तब चंपाई को खुद ही सार्वजनिक घोषणा करनी चाहिए थी और कहना चाहिए था कि उनके नेता को अदालत ने बरी किया है इसलिए वह पद उनके लिए छोड़ रहे हैं। लेकिन चंपाई ने ऐसा नहीं किया।’
चंपाई ने स्थानीय मीडिया से कहा कि उन्होंने बेहद अपमानित सा महसूस किया जब उन्हें हटाने और हेमंत को चुनने के लिए विधायकों की बैठक, उन्हें बिना कोई जानकारी दिए हुए बुलाई गई। उन्हें यह भी कहा गया कि वह किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नजर नहीं आएंगे। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने पीजीटी शिक्षकों की नियुक्ति की घोषणा की थी जिसका नियुक्ति पत्र बांटने से भी उन्हें रोका गया।
कई मायने में चंपाई इस क्षेत्र के धाकड़ बुजुर्ग नेता हैं। बिहार से झारखंड बंटवारे के नौ वर्ष पहले, वह 1991 में सरायकेला सीट के उपचुनाव में एक स्वतंत्र विधायक के रूप में चुने गए थे। वह शिबू सोरेन और रघुनाथ मुर्मु की प्रेरणा से झामुमो से जुड़े थे। रघुनाथ ने संथाली पांडुलिपि पर काम किया था जिसे ओल चिकी कहते हैं।
21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के दिन चंपाई ने शिबू सोरेन से मुलाकात की। जाहिर है उस बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने अपने त्यागपत्र में कहा, ‘आप अपने खराब स्वास्थ्य के कारण सक्रिय राजनीति से दूर हैं और पार्टी के भीतर कोई ऐसा मंच नहीं था जहां मैं अपनी चिंताएं व्यक्त कर सकूं। आपके मार्गदर्शन में, झारखंड आंदोलन के दौरान और उसके बाद भी मुझे जीवन में बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला है। आप हमेशा मेरे मार्गदर्शक बने रहेंगे।’
झामुमो कार्यकर्ता चंपाई को शिबू सोरेन की छाया के रूप में याद करते हैं और उन्होंने वह पार्टी छोड़ी जिसे स्थापित करने में उन्होंने मदद की थी। वह राज्य के एकमात्र ऐसे सोरेन मुख्यमंत्री थे, जिनका ताल्लुक शिबू सोरेन परिवार से नहीं था। भाजपा के शीर्ष आदिवासी नेताओं में शुमार बाबूलाल मरांडी ने चंपाई की पार्टी में आने का स्वागत किया है।
भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा ने भी एक्स पर लिखा, ‘आदिवासियों पर वोटों की राजनीति स्वीकार नहीं की जाएगी। सत्ता के लालच में एक आदिवासी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया। चंपाई का भाजपा में शामिल होना अच्छा साबित होगा और यह पूरे देश में आदिवासियों को एकजुट करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।’ भाजपा में शामिल होने से पहले ही चंपाई ने सबसे पहले आदिवासी लड़कियों की शादी, बांग्लादेश के घुसपैठियों से होने को लेकर चिंता जताई।
अब सवाल यह है कि क्या झामुमो के शीर्ष नेतृत्व में दरार आने के बावजूद पार्टी, आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा को पीछे छोड़ने के अपने संकल्प को और मजबूत से आगे बढ़ाएगी? या यह इसे कमजोर कर सकता है? झारखंड में आदिवासी पहचान के मुद्दे पर 27 किताबें लिख चुके आदिवासी कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग का मानना है कि चंपाई के जाने से हेमंत को मजबूती मिली है, न कि वह कमजोर हुए हैं।
उन्होंने रांची से बिज़नेस स्टैंडर्ड को फोन पर बताया, ‘भाजपा को 2019 में 28 में से केवल 2 आरक्षित आदिवासी सीट मिलीं और इसका एक कारण था आदिवासी समुदाय में यह धारणा बनने लगी कि आदिवासी भूमि, भाजपा सरकारों के कार्यकाल में खतरे में थी। भाजपा सरकारों ने इस दिशा में कई कदम उठाए लेकिन विशेष रूप से राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए भूमि बैंकों में आदिवासी भूमि को जोड़ने से आदिवासियों के बीच अपनी आजीविका और पहचान के संदर्भ में डर पैदा हुआ। एक आदिवासी के लिए, पुलिस हमेशा दोस्त नहीं होती बल्कि आमतौर पर दुश्मन होती है। वे हेमंत को पीड़ित के रूप में देखते हैं।’
चुनाव में अब मुश्किल से कुछ हफ्ते बचे हैं ऐसे में भाजपा भी अपनी स्थिति मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। साथ ही झामुमो भी जल्द ही एक बड़ा हमला करने की तैयारी में है।