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फंसा कर्ज और ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता

Published by
देवाशिष बसु
Last Updated- December 22, 2022 | 9:19 PM IST

जब तक सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं होगा नए सिरे से फंसे कर्ज का खतरा बरकरार रहेगा। बता रहे हैं देवाशिष बसु 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सप्ताह राज्य सभा को बताया कि अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने बीते पांच वर्ष में 10 लाख करोड़ रुपये मूल्य का फंसा हुआ कर्ज बट्टे खाते में डाला और इसमें से केवल 13 फीसदी की वसूली हो सकी। वर्ष 2016 में ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के चलन में आने के बाद से सितंबर माह तक आईबीसी के माध्यम से फंसे हुए कर्ज की वसूली 30.8 फीसदी रही। जिन लोगों ने फंसे हुए कर्ज के स्रोत और उनकी वसूली में आईबीसी की भूमिका पर केंद्रित मेरे पिछले आलेख पढ़े होंगे उन्हें इस बात से कोई आश्चर्य नहीं होगा।

फंसे हुए कर्ज और आईबीसी रिकवरी प्रक्रिया के ये दोनों मुद्दे भले ही अलग अलग नजर आते हैं लेकिन ये दोनों आपस में संबंध रखते हैं। ऐसा इसलिए कि इनमें से पहला दूसरे का परिणाम है। इस तस्वीर पर एक बार फिर से नजर डालते हैं। फंसे हुए कर्ज का ज्यादातर हिस्सा सरकारी बैंकों की देन है। कई ऋण ऐसे होते हैं कि उनका फंसे ऋण में परिवर्तित होना तय रहता है। मंजूरी के चरण से ही भ्रष्टाचार अपनी पैठ बना लेता है। एक बार जब मामला आईबीसी के पास पहुंचता है तो वसूली के लिए कोई संपत्ति बचती ही नहीं। मैंने सरकारी बैंकों में सुधार के हवाले से 2014 से ही इस बात को बार-बार दोहराया है। मैंने आईबीसी की वास्तविक क्षमताओं के बारे में भी बात की है। अब आंकड़ों ने भी इस नजरिये की पुष्टि कर दी है।

भ्रष्टाचार और फंसा हुआ कर्ज: चकित करने वाली बात यह है कि फंसे हुए कर्ज के प्रबंधन में लगे, उस पर टिप्पणी करने वाले और इस भारी-भरकम संकट से निपटने में लगे लोगों ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि फंसे कर्ज की इकलौती बड़ी वजह उनके ठीक सामने मौजूद है और वह है ऋण मंजूरी की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार। लेकिन बैंक अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने का कभी कोई प्रयास नहीं किया गया। इसके विपरीत भारतीय रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय और बैंक अधिकारियों सभी ने फंसे हुए कर्ज के लिए दो बाहरी कारकों को वजह बताया : कारोबारों की नाकामी और कमजोर दिवालिया कानून। जबकि हमेशा बैंकर ही इस तथ्य को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार रहे हैं कि तथाकथित दिवालिया प्रवर्तक जनता के पैसे से अमीर हुए।

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने 2016 के मध्य में सरकारी बैंकों के बारे में बात करते हुए फंसे हुए कर्ज के लिए बैंकरों के भेड़ चाल वाले सोच को वजह बताया था। उन्होंने कहा कि 2006 से 2008 के दौरान बैंकर कर्ज देने के लिए अपनी चेक बुक लेकर कारोबारियों के पीछे भाग रहे थे। एक छोटी सी घटना के सहारे, डॉ राजन ने समझाया, ‘इस फंसे हुए कर्ज में से ढेर सारा’ यानी सरकारी बैंकों का लाखों करोड़ रुपये का कर्ज बैंकरों और कारोबारियों के बीच सांठगांठ की देन था। सरकारी बैंकों के कर्मचारी ऐसे सरकारी अधिकारी हैं जिन्हें कर्ज देने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो वे संदिग्ध प्रस्ताव को ठुकराने के लिए सबसे बेहतर स्थिति में होते हैं।

आखिर वे कौन से प्रलोभन होंगे जिनकी बदौलत ये अधिकारी प्रवर्तकों के पीछे अपनी चेकबुक लिए घूम रहे थे? इस सवाल का जवाब एकदम जाहिर है। उनके पास अपनी तरह के प्रोत्साहन थे। जब 2010 की मंदी के बाद सरकारी बैंक कर्ज नहीं दे रहे थे तब डॉक्टर राजन ने उनका सार्वजनिक रूप से बचाव किया था और कहा था कि बैंकर सतर्कता जांच से बेहद डरे हुए हैं इसलिए निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। उस वक्त भी मैंने कहा था कि राजन ने इस तथ्य की अनदेखी कर दी कि ऐसा बहुत कम हुआ है जब किसी बैंकर को रेहन संबंधी गलती के लिए दोषी ठहराया गया हो। जबकि सरकारी बैंकों में यहां आम है। खास तौर पर इसलिए कि सरकारी बैंक हमेशा परिसंपत्तियों पर कर्ज देते हैं ना की नकदी प्रवाह पर।

कमजोर वसूली और दिवालिया कानून: आज भले ही ज्यादातर लोग भूल चुके हैं लेकिन कुछ वर्ष पहले तक खराब वसूली के लिए बैंकरों का एक सीधा साधा बहाना था दिवालिया कानून। भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरमैन अरुंधती भट्टाचार्य ने एक बार कहा था, ‘हमें नियामकीय व्यवस्था में बदलाव और डिफॉल्टरों के लिए कठोर नियमों की आवश्यकता है। साथ ही हमें एक व्यवस्थित दिवालिया कानून की भी जरूरत है ताकि फंसे हुए कर्ज से सही तरीके से निपटा जा सके।’ तथ्य तो यह है कि बीते तीन दशकों में नीति निर्माताओं ने फंसे हुए कर्ज से निपटने के लिए आधा दर्जन उपाय किए। इनमें से प्रत्येक उपाय पिछले की तुलना में कठोर था। साथ ही दिवालिया कानून कब लागू होता है जब कर्ज फंसे हुए कर्ज में तब्दील हो जाता है, ना कि पहले। अगर कर्ज को जानबूझकर इस तरह तैयार किया जाए कि खराब बैंकरों के प्रोत्साहन के चलते उसे फंसे हुए कर्ज में तब्दील होना ही हो तो भला दिवालिया कानून क्या करेंगे?

निश्चित रूप से आईबीसी ने केवल यह दिखाया है कि सरकारी बैंकों में भ्रष्ट बैंकिंग व्यवहार कितना व्यापक और गहरा था। ऋण के बारे में जरा भी जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति जानता है कि अगर आपको वास्तव में ऋण चाहिए तो बैंकर इसके लिए तमाम कठिन शर्तें बताएंगे। आपको अनावश्यक बीमा योजनाएं तक खरीदने के लिए विवश किया जाएगा। बिना व्यक्तिगत गारंटी के आपको ऋण नहीं मिल सकता और कुछ मामलों में तो तीसरे पक्ष की गारंटी भी चाहिए। इसके बावजूद आलोक इंडस्ट्रीज, भूषण स्टील, भूषण पावर, मोनेट इस्पात, वीडियोकॉन, एस्सार समूह, शिवा इंडस्ट्रीज और ऐसे ही असंख्य मामलों में बैंकों को लगभग पूरा कर्ज बट्टे खाते में डालना पड़ा।

किसी बैंकर से पूछा नहीं गया कि उसने गारंटी के लिए क्या किया? साफ जाहिर होता है कि फंसा हुआ कर्ज गलत वाणिज्यिक निर्णयों का नतीजा नहीं है जैसा कि डॉक्टर राजन और अन्य लोगों ने बैंकों के बचाव में कहा था। उन्हें तैयार है इस तरह किया गया था कि वे नाकाम हों और सरकारी बैंकों का धन लुटे। यही कारण है कि बैंक फंसे कर्ज में से केवल 13 प्रतिशत की वसूली कर पाए जबकि आईबीसी स्तर पर यह केवल 30 फीसदी रहा।

क्या इन परिस्थितियों में बदलाव आएगा? इस सरकार के कार्यकाल में एक अपवाद को छोड़ दिया जाए तो राजनीति से प्रेरित ऋण की घटनाएं लगभग नहीं नजर आतीं। इसलिए संभव है कि सरकारी बैंकों का फंसा हुआ ऋण काफी कम नजर आए। जब तक सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं होगा नए सिरे से फंसे कर्ज का खतरा बरकरार रहेगा, खासकर किसी अन्य राजनीतिक सत्ता के अधीन। दूसरी ओर, जैसा कि संदेह था आईबीसी की प्रक्रिया जल्दी ही जटिलताओं की शिकार हो गई, अंतहीन संशोधन, परिपत्र, तदर्थ बदलाव तथा अतीत से प्रभावी निर्णय इसका उदाहरण हैं। जैसा कि मैं कई बार कह चुका हूं, दिवालिया प्रक्रिया को बाजार को स्वच्छ करने वाली प्रणाली से संचालित करने की आवश्यकता है। लेकिन इसके लिए सोच विचार की पूरी प्रक्रिया को बदलना आवश्यक है जो आसान नहीं है।
                                                                                                                                                                                               (लेखक मनीलाइफ डॉट इन के संपादक ​हैं)

First Published : December 22, 2022 | 9:01 PM IST