देश में कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर की वजह से देश की विभिन्न राज्य सरकारों ने दिन और सप्ताह के विभिन्न घंटों में कफ्र्यू की घोषणा की है जिससे तमाम गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। ऐसी गतिविधियों की सूची बनाई गई है जिनके संचालन की अनुमति होगी या नहीं होगी। किराना जैसी अनिवार्य वस्तुओं के खुदरा विक्रेताओं को भी प्रतिबंधों से छूट दी गई है।
यह बात समझ से बाहर है कि ई-कॉमर्स कंपनियों और उनके एजेंटों के जरिये ग्राहकों तक सामान की आपूर्ति पर रोक लगाई गई है। यदि इन प्रतिबंधों का लक्ष्य है दुकानों या मॉलों में लोगों को एकत्रित होने से रोककर कोविड-19 संक्रमण रोकना तो ई-कॉमर्स में ऐसा जोखिम नहीं है। ग्राहक ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं और चीजें सुरक्षित ढंग से दिए गए पते पर पहुंच सकती हैं।
अधिकांश राज्यों ने ई-कॉमर्स कंपनियों को समान कारोबारी अवसर मुहैया कराए हैं। ऐसे में दलील शायद यह है कि अगर खुदरा दुकानें बंद हैं तो ई-कॉमर्स पर भी रोक लगनी चाहिए। इसी तरह अगर किराना दुकानें जरूरी वस्तुएं बेच सकती हैं तो ई-कॉमर्स कंपनियों को भी इसकी इजाजत होनी चाहिए।
यदि किसी वजह से मॉल में खरीदारी बंद है तो ई-कॉमर्स कारोबार पर क्यों रोक लगनी चाहिए जबकि वह एकदम अलग हालात में काम करता है? परंतु देश में खुदरा कारोबार लॉबी इतनी मजबूत है कि उसके दबाव में सरकार ऐसे बुनियादी अंतर की भी अनदेखी कर रही है।
महाराष्ट्र में जहां 1 मई तक कफ्र्यू लागू है वहां ई-कॉमर्स कंपनियां केवल जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति कर सकती हैं। हरियाणा में रात के कफ्र्यू के दौरान जरूरी चीजों की ई-कॉमर्स आपूर्ति हो सकती है। दिल्ली में जहां कफ्र्यू एक सप्ताह के लिए बढ़ा दिया गया है, वहां भी ऐसे ही नियम हैं। ऐसे नियमों ने ई-कॉमर्स कंपनियों को तो परेशान किया ही है, साथ ही ऑनलाइन आपूर्ति की निगरानी करने वालों के लिए प्रबंधन की दिक्कत पैदा की है।
अनिवार्य वस्तु की परिभाषा भी भ्रामक है। कल्पना कीजिए डिलिवरी करने वालों को पुलिस या किसी आवासीय कॉलोनी के गार्ड को यह समझाने में कितनी दिक्कत होती होगी कि वह जिस वस्तु की आपूर्ति करने जा रहा है वह आवश्यक है। ई-कॉमर्स कंपनियों को अनुमति देकर इस दिक्कत को दूर किया जा सकता है। इससे आर्थिक गतिविधियों पर लॉकडाउन का असर भी कम होगा।
यह सही है कि किराना दुकानों को कारोबारी नुकसान पहुंचा होगा। लेकिन अगर ऐसा वर्गीकरण नहीं किया गया होता तो उपभोक्ताओं को घर बैठे सामान मिल जाता। भले ही खुदरा दुकानों की कीमत पर सही लेकिन ई-कॉमर्स कंपनियों को अच्छा कारोबार मिलता।
लेकिन यह बाजार है। कोविड-19 महामारी ने ई-कॉमर्स कंपनियों को कुछ लाभ प्रदान किए हैं लेकिन ऐसे नीतिगत हस्तक्षेप की मदद से उस लाभ को समाप्त करना नुकसानदेह साबित हो सकता है। निर्णय बाजार पर छोडऩा चाहिए। आम किराना दुकानें भी ऑनलाइन ऑर्डर ले सकती हैं और एजेंट के जरिये आपूर्ति कर सकती हैं। कुछ समझदार किराना दुकानों ने पहले ही अवसर भांपकर ऑनलाइन ऑर्डर लेना शुरू कर दिया है।
विडंबना यह है कि भारत में कारोबारों ने यह स्वीकार कर लिया है कि शक्तिशाली लॉबी को लेकर ऐसे विसंगतिपूर्ण हस्तक्षेप किए जाएंगे। देश में ई-कॉमर्स कंपनियों ने नीति निर्माताओं से जुड़ाव शुरू ही किया है और वे बाजार में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए छोटे उपक्रमों को साथ ले रही हैं। मसलन एमेजॉन ने हाल ही में उद्यमों, छोटे कारोबारों और नवाचार करने वालों के लिए शिखर बैठक का आयोजन किया। घोषित इरादा था आत्मनिर्भर भारत बनाने का लेकिन सभी जानते हैं कि ऐसा नीति निर्माताओं को संबोधित करने के लिए किया गया ताकि उनके कदम ई-कॉमर्स कंपनियों को अधिक प्रभावित न करें तथा वे छोटे उपक्रमों के साथ कारोबारी रिश्ते मजबूत कर सकें तथा आपूर्ति के स्रोत मजबूत बना सकें।
कोविड-19 महामारी के आगमन के बाद वस्तुओं की खुदरा आपूर्ति के आंकड़े बताते हैं कि कैसे ई-कॉमर्स कंपनियों का विस्तार हुआ है। फ्लिपकार्ट का अनुमान है कि जुलाई-सितंबर 2020 में उसके नए उपभोक्ता 50 फीसदी बढ़े जबकि तृतीय श्रेणी के कस्बों में सर्वाधिक 65 फीसदी का इजाफा हुआ। ई-कॉमर्स कंपनियों ने इस चरण में तकनीक की मदद से कारोबारी अवसरों का लाभ लेने का भी निर्णय लिया। फ्लिपकार्ट ने स्थानीय भाषाओं का विकल्प देकर ग्राहकों को अपने साथ जोड़ा। जनवरी-नवंबर 2020 में इन क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों की तादाद गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में ढाई गुना हो गई।
ऐसा भी नहीं है कि महामारी के दौरान ई-कॉमर्स कंपनियों ने सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों से खरीद न की हो। फ्लिपकार्ट ने 2019 की तुलना में 2020 में ऐसे उपक्रमों से खरीद 35 फीसदी बढ़ाई। इसमें ज्यादातर हिस्सा तिरुपुर, हावड़ा, जीरकपुर, हिसार, सहारनपुर, पानीपत और राजकोट जैसे छोटे शहर-कस्बों का है।
फ्लिपकार्ट का एक और आंकड़ा इस बात को रेखांकित करता है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को गैर जरूरी वस्तुओं की बिक्री की छूट मिलनी चाहिए। मार्च-दिसंबर 2020 तिमाही में फ्लिपकार्ट ने घरेलू सामान, किराना और मोबाइल फोन की बिक्री कोविड पूर्व की तुलना में अधिक की।
इससे भी यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर क्यों खुदरा लॉबी ई-कॉमर्स कंपनियों को आपूर्ति प्रतिबंध से छूट देने के खिलाफ है। परंतु सरकार की नीति समझ नहीं आ रही जो कफ्र्यू के कारण उपभोक्ताओं की पहुंच सीमित होने के बावजूद एक धड़े का पक्ष ले रही है। ई-कॉमर्स पर सरकारी नीति की समीक्षा की मांग काफी समय से लंबित है। समीक्षा की शुरुआत इस विचार के साथ होनी चाहिए कि सरकारी नीति में पक्षपात की कोई जगह नहीं। सरकार को समझना होगा कि ई-कॉमर्स भी उतना ही अहम है जितना खुदरा किराना।