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अगर आप पुरानी कर व्यवस्था में हैं तो शेयरों में निवेश पर भी आपको आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत कर योग्य आय में कटौती का फायदा मिल सकता है। ईएलएसएस, एनपीएस और यूलिप के जरिये आप शेयरों में निवेश कर 80सी के तहत कटौती का फायदा उठा सकते हैं। इन तीनों में से शेयरों में सबसे ज्यादा निवेश इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) में होता है और इसकी लॉक-इन अवधि भी केवल तीन साल होती है, जो सबसे कम है।
जब से सेबी ने असेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) को पैसिव स्कीम शुरू करने की इजाजत दी है तब से निवेशकों के पास ऐक्टिव के साथ पैसिव ईएलएसएस में निवेश का भी विकल्प खुल गया है। पैसिव ईएलएसएस में जोखिम कम है और इसका एक्सपेंस रेश्यो भी कम है।
एक जैसी निवेश नीति बने रहने और पारदर्शिता होने की वजह से इन्हें पसंद भी किया जाता है। इसलिए कर छूट के साथ लंबे अरसे के लिए शेयरों में बेहतर रिटर्न चाहिए तो ईएलएसएस अच्छा विकल्प हो सकता है। जिन्होंने अभी तक इक्विटी में निवेश नहीं किया है, उनके लिए यह शुरुआत का बेहतर जरिया है।
मगर ईएलएसएस में निवेश से पहले कुछ बातें जानना आवश्यक है। बाजार नियामक सेबी के जून में आए सर्कुलर के मुताबिक 1 जुलाई से इंडेक्स-आधारित यानी पैसिव ईएलएसएस फंड लाए जा सकते हैं। ये फंड उन सूचकांकों पर आधारित होंगे जो खुद बाजार पूंजीकरण के मामले में शीर्ष 250 कंपनियों के शेयरों से बने होते हैं। लेकिन एएमसी को ऐक्टिव और पैसिव में से कोई एक फंड चुनना होगा।
सेबी ने इसी साल जनवरी में एएमसी को पैसिव ईएलएसएस शुरू करने से पहले कर बचाने वाली अपनी ऐक्टिव ईएलएसएस बंद करने के निर्देश भी दे दिए।
मगर नए निवेशक पूछ सकते हैं कि ईएलएसएस क्या है? यह डाइवर्सिफाइड इक्विटी म्युचुअल फंड योजन है, जिसमें आपकी रकम अलग-अलग आकार की कंपनियों के शेयरों में लगाई जाती है। म्युचुअल फंड की तरह आप केवल 500 रुपये से इसकी शुरुआत कर सकते हैं।
अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। मगर पुरानी कर व्यवस्था अपनाने वालों को एक वित्त वर्ष में 80सी के तहत अधिकतम 1.5 लाख रुपये की ही कटौती का फायदा मिलता है और इसमें दूसरे निवेश साधनों में लगाई गई रकम भी शामिल होती है।
ईएलएसएस की लॉक-इन अवधि तीन साल होती है यानी आप जब चाहें इसे बंद नहीं कर सकते और कम से कम तीन साल तक आपको इसमें निवेश रखना ही होगा। मगर 80सी के तहत कटौती का फायदा देने वाली बाकी सभी योजनाओं के मुकाबले इसकी लॉक-इन अवधि सबसे कम है।
लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) की लॉक-इन अवधि 15 साल है और राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी), वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, बैंक/डाकघर एफडी तथा यूलिप में 5 साल तक निवेश फंसाना पड़ता है।
ईएलएसएस इक्विटी म्युचुअल फंड योजना है क्योंकि इसमें 65 फीसदी से ज्यादा निवेश इक्विटी यानी शेयरों में होता है। दूसरी म्युचुअल फंड योजनाओं की तरह इसमें भी ग्रोथ और डिविडेंड में से कोई एक विकल्प चुना जाता है। ग्रोथ विकप्ल चुना तो योजना के बीच में रकम नहीं मिलती यानी अवधि पूरी होने पर ही आपको रिटर्न की रकम मिल सकती है।
मगर लॉक-इन अवधि पूरी होने के बाद 1 लाख रुपये से ज्यादा के सालाना रिटर्न पर 10 फीसदी (उपकर मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) दीर्घावधि पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) कर लगाया जाता है। डिविडेंड योजना मे लॉक-इन अवधि से पहले या बाद में मिला रिटर्न आपकी सालाना आय में जुड़ जाएगा और कर स्लैब के हिसाब से आपको कर अदा करना होगा।
ईएलएसएस में भी इक्विटी म्युचुअल फंड की ही तरह स्थिर या तयशुदा रिटर्न नहीं होता। हां, लंबी अवधि के लिए यानी कम से कम 7 से 10 साल के लिए निवेश करने पर आपको स्थिर आय योजनाओं से बेहतर रिटर्न मिलेगा। इसलिए बेहतर होगा कि 3 वर्ष के अनिवार्य लॉक-इन अवधि के बाद भी ईएलएसएस में निवेश बनाए रखें। कर में छूट पाने के लिए लंबी अवधि के निवेश का यही सबसे अच्छा विकल्प है।
मगर इसमें भी एकमुश्त निवेश के बजाय सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) यानी मासिक, तिमाही, छमाही या सालाना अंतराल पर नियमित रूप से तयशुदा रकम का निवेश हमेशा बेहतर माना जाता है। इसमें आपको बाजार के उठने या गिरने की चिंता नहीं करनी होगी। लेकिन एसआईपी के जरिये निवेश करने पर हर किस्त की लॉक-इन अवधि भी अलग-अलग समय पर पूरी होगी।