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5 साल बाद रेपो रेट में कटौती; Fixed Deposit या Debt Mutual Fund, कहां पैसा लगाना रहेगा बेहतर ?

यदि निवेश की अवधि 2-3 साल से ज्यादा नहीं है तो डेट फंड भी बेहतर विकल्प हो सकते हैं।

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अजीत कुमार   
Last Updated- February 07, 2025 | 5:20 PM IST

रेपो रेट में शुक्रवार को हुई कटौती के बाद इस बात की संभावना बढ़ने लगी है कि शायद आने वाले दिनों में बैंक डिपॉजिट पर ब्याज दरों में कटौती की शुरुआत करें। हालांकि नियर-टर्म में इसकी संभावना बेहद कम है। जानकार मानते हैं कि डिपॉजिट के मोर्चे पर बैंकों की स्थिति अभी भी बहुत बेहतर नहीं है इसलिए वे अप्रैल की पॉलिसी तक डिपॉजिट रेट में कोई कटौती नहीं करना चाहेंगे। बावजूद इसके एफडी में निवेश करने वालों को देर नहीं करना चाहिए। यदि वे टर्म डिपॉजिट में निवेश को लेकर उत्साहित हैं तो उन्हें अलग-अलग अवधि के लिए फौरन  एफडी कर देना चाहिए। यदि निवेश की अवधि 2-3 साल से ज्यादा नहीं है तो डेट फंड भी उनके लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं।

हालांकि 1 अप्रैल 2023 के बाद डेट फंड से संबंधित टैक्स नियमों में हुए बदलाव के बाद बहुत सारे लोगों को यह भ्रम है कि टैक्स नियमों के मामले में ये एफडी के समान हैं। 

1 अप्रैल 2023 से डेट फंड (debt mutual fund) के रिडेम्प्शन (redemption) से होने वाले कैपिटल गेन (capital gain) पर न तो लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG)  टैक्स और न ही इंडेक्सेशन (indexation) का फायदा मिल रहा है। यानी डेट म्युचुअल फंड को रिडीम करने के बाद जो भी कैपिटल गेन होगा उस पर टैक्स पेयर को अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना  होगा। मोटे तौर पर देखें तो फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी (FD) के साथ भी यही है। एफडी पर भी जो ब्याज आपको मिलता है वह आपकी आय में जुड़ जाता है और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस पर टैक्स चुकाना होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। अभी भी बहुत सारे टैक्स के नियम एफडी और Debt Mutual Fund के लिए अलग-अलग हैं।

इसलिए आज बात करते हैं उन नियमों की ताकि निवेशकों को निर्णय लेने में आसानी हो सके और वे  दुविधा में न रहें।

टीडीएस (TDS)

बजट 2025 में प्रस्तावित नए प्रावधानों के मुताबिक एफडी पर मिलने वाले सालाना 50 हजार से ज्यादा (सीनियर सिटीजन के लिए यह लिमिट 1 लाख रुपये) की ब्याज राशि पर 10 फीसदी टीडीएस (TDS) देय होगा, बशर्ते आप 15G या 15H फॉर्म भरकर जमा नहीं करते हैं। बजट में प्रस्तावित बदलाव 1 अप्रैल 2025 से प्रभावी होंगे। जबकि डेट म्युचुअल फंड की ग्रोथ स्कीम के रिडेम्प्शन के बाद होने वाले कैपिटल गेन पर टीडीएस का प्रावधान नहीं है।

मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक एफडी पर मिलने वाले सालाना 40 हजार से ज्यादा (सीनियर सिटीजन के लिए यह लिमिट 50 हजार रुपये) की ब्याज राशि पर 10 फीसदी टीडीएस (TDS) कटता है। 31 मार्च 2025 तक यदि आप टर्म डिपॉजिट में निवेश करते हैं तो टीडीएस के मौजूदा नियम ही लागू होंगे।

अगर आपने डेट म्युचुअल फंड ((debt mutual fund) के डिविडेंड प्लान में पैसा लगाया है तो नए प्रावधानों के मुताबिक यदि सालाना डिविडेंड 10 हजार रुपये से ज्यादा है तो ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी आपको जो डिविडेंड देगी उसमें से 10 फीसदी बतौर टीडीएस काट लेगी। ये प्रावधान भी 1 अप्रैल 2025 से लागू होंगे। मौजूदा नियमों के अनुसार सालाना 5 हजार रुपये से ज्यादा के डिविडेंड पर ही टीडीएस कटता है।

टीडीएस/टैक्स का भुगतान

एफडी (FD) पर जो भी ब्याज मिलता है उस पर आपको हर तिमाही TDS चुकाना होता है, चाहे क्यों ब्याज आपके सेविंग अकाउंट में क्रेडिट न हुआ हो। खासकर क्युमुलेटिव एफडी (cumulative FD) पर जहां ब्याज मैच्योरिटी की राशि के साथ मिलता है। डेट म्युचुअल फंड के साथ ऐसा नहीं है।

डेट म्युचुअल फंड को जिस वित्त वर्ष के दौरान आप रिडीम करते हैं, कैपिटल गेन पर आपको उसी वर्ष अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना होता है। वहीं डेट म्युचुअल फंड के डिविडेंड प्लान में आपको जो डिविडेंड मिलेगा वह आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से उस पर टैक्स देना होगा।

लॉस का एडजस्टमेंट/सेट-ऑफ

एफडी पर नुकसान की तो बात ही नहीं है। लेकिन किसी और एसेट की बिक्री से हुए कैपिटल लॉस को आप एफडी पर मिलने वाले ब्याज से सेट-ऑफ नहीं कर सकते।

दूसरी तरफ अगर किसी वित्त वर्ष के दौरान आपको डेट म्युचुअल फंड (debt mutual fund) में निवेश से लॉस (नुकसान) होता है तो आप उसी वित्त वर्ष के दौरान अन्य कैपिटल एसेट से होने वाले शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन दोनों से उसको सेट-ऑफ कर सकते हैं।

यदि किसी वित्त वर्ष में एडजस्टमेंट के बाद भी  कैपिटल लॉस बच जाता है तो जिस वर्ष नुकसान हुआ है उसके अगले 8 वित्त वर्ष तक उस नुकसान को आप अन्य कैपिटल एसेट से होने वाले शार्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन दोनों से सेट-ऑफ कर सकते हैं।

लेकिन अगर आपको डेट म्युचुअल फंड के रिडेंप्शन से कैपिटल गेन हुआ है और आप चाहते हैं कि दूसरे एसेट से होने वाले लॉस से इस कैपिटल गेन को सेट-ऑफ कर लें तो आपको यह ध्यान रखना चाहिए – किसी और एसेट की बिक्री से अगर आपको शार्ट-टर्म कैपिटल लॉस हुआ हो तभी आप उसको डेट म्युचुअल फंड से होने वाले कैपिटल गेन से सेट-ऑफ कर सकते हैं।

लेकिन अगर आपको किसी एसेट की बिक्री से लॉन्ग-टर्म कैपिटल लॉस हुआ है तब आप इसको डेट म्युचुअल फंड से होने वाले कैपिटल गेन से सेट-ऑफ नहीं कर सकते। मतलब लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन को लॉन्ग-टर्म कैपिटल लॉस से ही सेट-ऑफ किया जा सकता है।

एक बात और किसी एसेट की बिक्री से होने वाले नुकसान के सेट-ऑफ के लिए जरूरी है कि आपको जिस वित्त वर्ष में नुकसान हुआ है उस वर्ष के लिए आप समय सीमा के अंदर इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करें और उसमें नुकसान का उल्लेख करें।

बेसिक एग्जेंप्शन लिमिट के तहत एडजस्टमेंट

बेसिक एग्जेंप्शन लिमिट (basic exemption limit) से आप एफडी के ऊपर मिलने वाले ब्याज को एडजस्ट कर सकते हैं। लेकिन डेट फंड के रिडेम्प्शन से मिलने वाले  कैपिटल गेन को आप बेसिक एग्जेंप्शन लिमिट से एडजस्ट नहीं कर सकते।

87A के तहत रिबेट

एफडी के ऊपर मिलने वाले ब्याज पर आप इनकम टैक्स एक्ट, 1961, की धारा 87A के तहत रिबेट का फायदा ले सकते हैं। लेकिन डेट फंड को रिडीम करने पर जो  कैपिटल गेन होता है, उस पर आप 87A के तहत रिबेट का फायदा नहीं उठा सकते। उदाहरण के तौर पर मान लीजिये किसी व्यक्ति (उम्र 60 वर्ष से कम) का टैक्सेबल इनकम वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान 2 लाख रुपए है जबकि उसे डेट म्युचुअल फंड के रिडेंप्शन से 1.5 लाख रुपए का कैपिटल गेन हुआ।

इस मामले में क्योंकि कैपिटल गेन को मिलाने (2 लाख रुपए + 1.5 लाख रुपए = 3.5 लाख रुपए) के बाद भी टैक्सेबल इनकम 5 लाख/7 लाख रुपए से कम है, इसलिए कई लोगों को यह लग सकता है कि दोनों टैक्स रिजीम के तहत टैक्स देनदारी नहीं बनेगी। लेकिन ऐसा नहीं है। नई और पुरानी दोनों टैक्स व्यवस्था के तहत टैक्सपेयर को 1.5 लाख रुपये के कैपिटल गेन पर 5 फीसदी टैक्स देना होगा। मतलब 1.5 लाख रुपये के कैपिटल गेन पर सेक्शन 87A के तहत रिबेट का फायदा नहीं मिलेगा।

(नए बजट प्रस्तावों के मुताबिक यदि आपकी सालाना आय 12 लाख रुपये से कम है तो आपको 87A के तहत 4 लाख से 12 लाख तक की आय के लिए 60 हजार रुपये का रिबेट मिलेगा। मतलब वित्त वर्ष 2025-26 से न्यू टैक्स रिजीम के तहत 12 लाख रुपये तक की इनकम पर कोई टैक्स नहीं चुकाना होगा।)

डेट फंड को लेकर टैक्स के क्या हैं नए नियम

1 अप्रैल 2023 से लागू नए नियम के अनुसार डेट फंड (वैसे म्युचुअल फंड जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं है) को रिडीम करने के बाद जो भी कैपिटल गेन होगा वह आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको उस पर अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा। जबकि 1 अप्रैल 2023 से पहले इस तरह के फंड से होने वाली कमाई पर टैक्स होल्डिंग पीरियड (खरीदने के दिन से लेकर बेचने के दिन तक की अवधि) के आधार पर लगता था।

मतलब 36 महीने से कम के होल्डिंग पीरियड पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स जबकि 36 महीने के ऊपर के होल्डिंग पीरियड पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स का प्रावधान था।

 

First Published : February 7, 2025 | 3:50 PM IST