हाल में रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (रीट्स) लोगों को काफी आकर्षित कर रहे हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने निवेशकों से इस परिसंपत्ति वर्ग (इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट या इनविट्स के साथ) को सकारात्मक रूप से देखने का आग्रह किया है।
इस बीच, इंडियन रीट्स एसोसिएशन ने सेबी से अनुरोध किया है कि रीट्स को इक्विटी के रूप में वर्गीकृत किया जाए। साथ ही रीट्स को बैंकों से ऋण दिए जाने की अनुमति देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से भी अनुरोध किया है।
अधिक तरलता
वैश्विक स्तर पर रीट्स को इक्विटी के रूप में माना जाता है। भारतीय रीट्स को एफटीएसई रसेल, एफटीएसई-ईपीआरए एनएआरईआईटी और एसऐंडपी ग्लोबल जैसे विभिन्न वैश्विक सूचकांकों में शामिल किया गया है।
माइंडस्पेस बिजनेस पार्क्स रीट के मुख्य कार्याधिकारी रमेश नायर ने कहा, ‘रीट को इक्विटी के रूप में वर्गीकृत करते हुए उसे सूचकांक में शामिल किए जाने से नकदी प्रवाह बढ़ेगा और बेहतर मूल्य हासिल होगा।’
साथ ही यह कर के लिहाज से भी अधिक अनुकूल हो जाएगा। नायर कहा, ‘पूंजीगत लाभ को दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ की श्रेणी में रखने के लिए आवश्यक अवधि 36 महीने से घटकर 12 महीने रह जाएगी।’
रीट्स फिलहाल बॉन्ड जारी कर सकते हैं और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से उधार भी ले सकते हैं। मगर वे बैंकों से उधार नहीं ले सकते। कोलियर्स इंडिया के वरिष्ठ निदेशक एवं अनुसंधान प्रमुख विमल नादर ने कहा, ‘अगर रीट्स को ऋण देने के लिए बैंकों को अनुमति दी जाती है तो उनके लिए फंडिंग विकल्प बढ़ जाएंगे।’
नायर ने कहा कि बैंक से ऋण मिलने पर रीट्स अपनी कार्यशील पूंजी जरूरतों को बेहतर तरीके से प्रबंधित करने में समर्थ होंगे। इससे उन्हें बैंकिंग प्रतिभूतियों के जरिये चरणबद्ध तरीके से रकम निकालने की सुविधा मिलेगी।
पोर्टफोलियो में विविधता
खुदरा निवेशकों को रीट्स का एक प्रमुख लाभ यह है कि इससे उनके पोर्टफोलियो का विविधीकरण होगा। एनारॉक कैपिटल के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ शोभित अग्रवाल ने कहा, ‘रीट्स निवेशकों को पारंपरिक शेयर एवं बॉन्ड के इतर अपने निवेश पोर्टफोलियो का विस्तार करने की अनुमति देते हैं।’
रीट्स पैसिव इनकम का एक आकर्षक स्रोत भी हैं क्योंकि इसके तहत कम से कम 90 फीसदी नकदी प्रवाह का का वितरण छमाही आधार पर करना होता है। अग्रवाल ने कहा, ‘रीट्स दमदार लाभांश देने के लिहाज से विशेष आकर्षक हैं।’
रीट्स से निवेशकों को पेशेवर प्रबंधन का भी लाभ मिलता है। अग्रवाल ने कहा कि इसका एक अन्य लाभ तरलता है। भौतिक रियल एस्टेट तरल नहीं है। मगर एक्सचेंज पर रीट्स के यूनिट का खरीद-फरोख्त किया जाता है। ऐसे में निवेशक उन्हें आसानी से बेच सकते हैं और अपना निवेश समेट सकते हैं। प्रवेश या निकास के लिए उन्हें किसी लागत का वहन नहीं करना पड़ेगा।
रीट्स खुदरा निवेशकों को वाणिज्यिक एवं खुदरा रियल एस्टेट श्रेणी तक पहुंच प्रदान करते हैं। पारंपरिक तौर पर यह श्रेणी केवल संस्थागत निवेशकों एवं धनाढ्य व्यक्तियों के लिए ही उपलब्ध होती थी। नादर ने कहा, ‘रीट्स ने खुदरा निवेशकों के लिए प्रवेश संबंधी बाधा को काफी कम कर दिया है।’
नायर ने दावा किया कि कड़े सरकारी नियम और सख्त खुलासा मानदंडों के कारण रीट्स को एक पारदर्शी परिसंपत्ति कहा जा सकता है।
नया परिसंपति वर्ग
रीट्स का ट्रैक रिकॉर्ड काफी छोटा है। सबसे पुराना एम्बैसी रीट अप्रैल 2019 में सूचीबद्ध हुआ था। फिलहाल निवेशकों के पास सीमित विकल्प हैं क्योंकि अब तक केवल चार रीट्स (माइंडस्पेस, ब्रुकफील्ड इंडिया, एम्बैसी और नेक्सस सिलेक्ट) ही सूचीबद्ध हुए हैं। इन्हें दो उप-परिसंपत्ति श्रेणियों (ऑफिस एवं रिटेल) के आधार पर सूचीबद्ध किया गया है।
अगर आर्थिक मंदी, वैश्विक महामारी आदि कोई घटना ऑफिस स्पेस की मांग को प्रभावित करती है तो उससे रीट्स पर भी असर पड़ सकता है। नादर ने कहा, ‘रीट्स भी कारोबारी चक्रों के अधीन हैं और अस्थिर हो सकते हैं।’
ब्याज दर में उतार-चढ़ाव से भी रीट्स का आकर्षण प्रभावित हो सकता है। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन ने कहा, ‘ब्याज दरें बढ़ने पर रीट्स का आकर्षण भी धूमिल होने लगता है क्योंकि निवेशक निश्चित आय वाले विकल्पों की ओर रुख करने लगते हैं। जब ब्याज दरें स्थिर होती हैं अथवा उसमें गिरावट आती है तो निवेशक रीट्स को अधिक पसंद करते हैं।’
सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार (आरआईए) और सहजमनी के संस्थापक अभिषेक कुमार ने चेताया कि निवेशकों को ऐसे रीट्स में निवेश करते समय सतर्क रहना चाहिए जहां एक्सचेंज पर कम तरलता दिखे और वह भी पूरी तरह किसी खास भौगोलिक क्षेत्र पर केंद्रित हो।
इन बातों का ध्यान रखें
कारोबारी मोर्चे पर ऐसे रीट का चयन करें जो भौगोलिक तौर पर काफी विविधतापूर्ण हो। इसके अलावा निवेशकों को उसके परिसंपत्ति वर्ग जैसे ऑफिस, खुदरा आदि में मौजूद संभावनाओं का भी आकलन करना चाहिए। कुमार ने सुझाव दिया कि भारित औसत पट्टा समाप्ति और पोर्टफोलियो की गुणवत्ता की जांच करना भी आवश्यक है।
उन्होंने निर्माणाधीन प्रॉपर्टी को पूरा करने और तैयार प्रॉपर्टी में अधिक ऑक्यूपेंसी स्तर को बनाए रखने संबंधी रीट के ट्रैक रिकॉर्ड पर गौर करने का भी सुझाव दिया। जहां तक वित्तीय प्रदर्शन का सवाल है तो नादर ने कहा कि एक्सचेंज पर ऐतिहासिक रिटर्न और लाभांश वितरण के ट्रैक रिकॉर्ड की जांच करना चाहिए।
इन्हीं दोनों से रीट्स का रिटर्न निर्धारित होता है। उन्होंने कहा कि प्रायोजक और ऐसेट मैनेजर की साख पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। धवन ने कहा कि जो निवेशक पूंजी वृद्धि के साथ-साथ नियमित तौर पर नकदी प्रवाह चाहते हैं, वे अपने पोर्टफोलियो का 5 से 10 फीसदी हिस्सा कम से कम 7 साल के लिए रीट्स में निवेश कर सकते हैं।