आपका पैसा

LTCG Tax: गहने बेचें और टैक्स से बचने के लिए मकान खरीदें…

सोना और जेवरात जैसी विरासत में मिली संपत्ति बेचने पर होने वाले पूंजीगत लाभ से अगर मकान खरीद लिया जाए और उसकी रजिस्ट्री करा ली जाए तो कर देने की जरूरत नहीं होगी।

Published by
बिंदिशा सारंग   
Last Updated- May 19, 2024 | 10:45 PM IST

पिछले दिनों आयकर अपील अधिकरण के बेंगलूरु पीठ ने विरासत में मिले गहनों की बिक्री पर दीर्घावधि पूंजीगत लाभ (LTCG Tax) टैक्स वसूलने की इजाजत दे दी। यह फैसला इसलिए आया क्योंकि एक कर निर्धारण अधिकारी ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 54एफ के तहत राहत देने से इनकार कर दिया था। उस धारा के तहत करदाता मकान के अलावा दूसरी पूंजीगत संपत्तियों की बिक्री पर दीर्घावधि पूंजीगत लाभ से छूट का दावा कर सकते हैं।

ट्राइलीगल असोसिएट्स में पार्टनर आकाश गर्ग कहते हैं, ‘अगर कोई व्यक्ति कर से छूट पाने के इरादे से शेयर, बॉन्ड, गहने या सोने जैसी संपत्तियां बेचता है तो उससे मिली रकम से नया मकान खरीदकर वह एलटीसीजी पर कर देने से बच सकता है।’

अधिकरण ने भी कहा कि सोना और जेवरात जैसी विरासत में मिली संपत्ति बेचने पर होने वाले पूंजीगत लाभ से अगर मकान खरीद लिया जाए और उसकी रजिस्ट्री करा ली जाए तो कर देने की जरूरत नहीं होगी।

गर्ग बताते हैं, ‘आयकर विभाग ने सवाल उठाया था कि क्या वास्तव में विरासत में मिला सोना ही बेचा गया है। उसने पूछा था कि क्या वाकई करदाता के पास ऐसा सोना था और पूरे सौदे को उसने फर्जीवाड़ा करार दिया था।’

अधिकरण ने कर निर्धारण अधिकारी का फैसला खारिज कर दिया। लेक्स पैनेसिया के मैनेजिंग पार्टनर मोहित गर्ग बताते हैं, ‘अधिकरण ने अपने फैसले में कहा कि विरासत में मिले गहने बेचने से प्राप्त रकम को अन्य स्रोतों से आय मानते हुए उस पर कर नहीं लगाया जा सकता, लेकिन उसे करदाता की सास से विरासत में मिली दीर्घावधि पूंजीगत संपत्ति मानना चाहिए।’

धारा 54एफ के तहत छूट उन करदाताओं या हिंदू अविभाजित परिवारों (HUF) को मिलती है, जिन्हें मकान के अलावा किसी दूसरी संपत्ति बेचने से एलटीसीजी मिलता है और वे उस रकम का इस्तेमाल भारत में नया रिहायशी मकान खरीदने या बनाने में लगा देते हैं।

वेद जैन ऐंड असोसिएट्स के पार्टनर अंकित जैन का कहना है कि करदाता विरासत में मिला मकान जिस दिन बेचता है उस दिन नए मकान के अलावा उसके पास एक से ज्यादा रिहायशी संपत्ति नहीं होनी चाहिए।’

नई संपत्ति की कीमत बेची गई संपत्ति से हुई शुद्ध आमदनी के बराबर या ज्यादा है तो पूरे पूंजीगत लाभ पर कर छूट मिल जाएगी।

सर्वोच्च न्यायालय के वकील किशोर कुणाल बताते हैं, ‘यदि नई संपत्ति की कीमत बेची गई संपत्ति से मिली शुद्ध आय के मुकाबले कम है तो छूट भी उसी हिसाब से दी जाती है।’ सरकार ने 1 अप्रैल, 2024 से लागू संशोधन के तहत छूट की सीमा 10 करोड़ रुपये तय की है।

सोना विरासत में मिलने पर भारत में कर नहीं लगता। मगर गर्ग समझाते है कि सोना बेचने पर आपकी एलटीसीजी कर देनदारी बन सकती है, जो इस बात पर निर्भर करेगी कि सोना कितने समय से आपके पास है।

विरासत में मिली संपत्तियों पर अर्जित संपत्तियों जैसा ही कर लगता है। सीएनके में पार्टनर पल्लव प्रद्युम्न नारंग का कहना है कि सोना सबसे पहले जिस तारीख को और जिस कीमत में खरीदा गया होगा, वारिस के लिए भी तारीख और कीमत वही मानी जाएगी।

एलटीसीजी की गणना के लिए पूंजीगत लाभ की गणना के लिए संपत्ति की कीमत वही मानी जाती है, जो उसे खरीदते समय दी गई होगी। उसे महंगाई के हिसाब से बढ़ाया जाता है। संपत्ति यानी गहने कितने समय से मूल मालिक और वारिस के पास हैं, उससे तय होता है कि पूंजीगत लाभ अल्पावधि है या दीर्घावधि।

सोने की बिक्री (विरासत में मिले सोने सहित) से कर बचाना है तो धारा 54एफ के प्रावधानों का लाभ उठाएं और पूंजीगत लाभ को रिहायशी परिसंपत्ति में दोबारा निवेश करें। जैन कहते हैं, ‘धारा 54एफ के तहत निर्धारित समयसीमा का पालन करने के लिए सोने की बिक्री से पहले नई परिसंपत्ति खरीदने अथवा मकान बनाने की योजना तैयार कर लें।’

अगर तय मियाद में ऐसा नहीं कर पाए तो उस रकम को आयकर रिटर्न दाखिल करने से पहले पूंजीगत लाभ खाता योजना (सीजीएएस) में जमा कर छूट का दावा कर सकते हैं।’

सोने की बिक्री बड़े और जाने-माने जौहरियों को ही करें। खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर आशीष मेहता की सलाह है, ‘सराफ को बताएं कि भविष्य में कोई भी सवाल उठने पर उन्हें आयकर अधिकारियों को तुरंत जवाब देना होगा।’

First Published : May 19, 2024 | 10:45 PM IST