नौकरी करने वाले टैक्स पेयर्स के लिए इसमें अधिक लचीलेपन की गुंजाइश है, मगर कारोबार अथवा पेशेवर कार्यों से प्राप्त आय वाले लोगों को नई और पुरानी कर व्यवस्था में बार-बार आने जाने का मौका नहीं मिलता है।
अंतरराष्ट्रीय कर वकील आदित्य रेड्डी ने कहा, ‘आईटीआर दाखिल करने की प्रक्रिया के दौरान नई कर व्यवस्था अपने आप चुन ली जाती है। अगर करदाता नई कर व्यवस्था से असंतुष्ट है तो वह दोनों कर व्यवस्थाओं में से अपनी पसंद की व्यवस्था चुनने के लिए फॉर्म 10आईई जमा कर सकता है।’
31 जुलाई के बाद भरी ITR, तो इतना भरना होगा जुर्माना
आमतौर पर टैक्सपेयर्स के मन में यह सवाल आता है कि तय समय पर आईटीआर दाखिल न करने पर क्या होगा? डेडलाइन के बाद भी आप आईटीआर दाखिल कर सकते है, मगर आपको ये तीन बड़े नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।
31 जुलाई की डेडलाइन चूकने का मतलब है कि आयकर विभाग (IT) एक्ट की धारा 234F के तहत 5,000 रुपये का विलंब शुल्क (Late Fee) लगा सकता है। हालांकि, यदि आपकी आय 5 लाख रुपये से कम है, तो देर से दाखिल करने पर आपको 1000 रुपये का जुर्माना भरना पड़ेगा।
इसके अलावा, यदि कोई टैक्स देनदारी है, तो टैक्सपेयर्स को ड्यू डेट (Due date) से बकाया टैक्स अमाउंट पर आयकर अधिनियम की धारा 234A के अनुसार 1 प्रतिशत प्रति माह की दर से ब्याज का भुगतान करना पड़ता है।
कौन-सी टैक्स व्यवस्था बेहतर
नई टैक्स व्यवस्था उन लोगों के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकती है जिनकी आय 7 लाख रुपये के दायरे में है। एक्सपर्ट्स ने विभिन्न स्थितियों के लिए ब्रेक ईवन पॉइंट की केल्कुलेशन की है, ताकि टैक्स पेयर्स को यह तय करने में मदद मिल सके कि कौन-सी कर व्यवस्था अधिक फायदेमंद है। ब्रेक ईवन पॉइंट वह स्तर है जहां पुरानी और नई कर व्यवस्था में कर देनदारी एक जैसी बनती है और उसमें कोई अंतर नहीं होता।
टैक्समैन के उपाध्यक्ष (रिसर्च एवं कंसल्टिंग) नवीन वाधवा ने कहा, ‘अगर किसी व्यक्ति के पास पुरानी कर व्यवस्था के तहत कोई कटौती उपलब्ध नहीं है तो नई कर व्यवस्था हमेशा अधिक फायदेमंद होती है। अगर कोई करदाता महज धारा 80सी की कटौती का इस्तेमाल करता है तो उसके लिए भी नई कर व्यवस्था फायदेमंद होती है। अगर धारा 80सी और 80डी के तहत कटौती का लाभ उठाया जाता है तो ब्रेक ईवन पॉइंट 8,25,000 रुपये है। अगर आपकी आय 8,25,000 रुपये से अधिक है तो नई कर व्यवस्था चुनना फायदेमंद साबित होगा।’
इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80सी, धारा 80डी और धारा 24 (होम लोन पर ब्याज) के तहत कटौती का लाभ उठाने वाले करदाताओं को पुरानी कर व्यवस्था चुननी चाहिए।
अकॉर्ड जूरिस के पार्टनर अलय रजवी ने कहा, ‘यदि कोई व्यक्ति महत्त्वपूर्ण वित्तीय निवेश करता है तो उसे पुरानी व्यवस्था को ही अपनाना चाहिए। अगर कोई करदाता बिना किसी कर कटौती लाभ के सीधे तौर पर कर गणना को प्राथमिकता देता है तो उनके लिए नई व्यवस्था बेहतर रहेगी।’