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केरल हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि 1 सितंबर 2014 के बाद सेवानिवृत्त हुए कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) सदस्यों को ऊंची पेंशन (Higher EPS Pension) का लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता, यदि उनके नियोक्ताओं द्वारा अधिक वेतन के आधार पर किए गए अंशदान को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने स्वीकार किया है। अदालत ने कहा कि यदि योगदान स्वीकार किया गया है, तो प्रक्रिया या समय में हुई तकनीकी खामियों के आधार पर पेंशन रोकी नहीं जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य निधि संगठन (EPFO) से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि तकनीकी कारणों से किसी कर्मचारी को उसका वैधानिक हक नहीं छीना जा सकता। अदालत ने कहा कि अगर कर्मचारी और नियोक्ता, दोनों ने वास्तविक वेतन के आधार पर अधिक अंशदान किया है और EPFO ने उसे स्वीकार भी किया है, तो पेंशन की गणना उसी आधार पर की जानी चाहिए — चाहे भुगतान में देरी हुई हो या राशि एक साथ जमा की गई हो।
यह फैसला उन कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जो 1 सितंबर 2014 के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं। अब तक कई ऐसे कर्मचारियों को पुरानी अंशदान प्रक्रिया के कारण उच्च पेंशन से वंचित रखा गया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि EPFO ने योगदान स्वीकार किया है, तो अब उन्हें उच्च पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता।
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सुप्रीम कोर्ट ने EPFO को आदेश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर कर्मचारियों की वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन की पुनर्गणना करे और उचित राशि का भुगतान सुनिश्चित करे। अदालत ने कहा कि EPFO को इसके लिए सभी आवश्यक “परिणामी कदम” उठाने होंगे।
फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह राहत केवल कर्मचारियों के लिए है; इससे नियोक्ताओं को पूरी तरह छूट नहीं मिलेगी। यदि किसी नियोक्ता ने योगदान में गड़बड़ी की है या नियमों का उल्लंघन किया है, तो EPFO या संबंधित प्राधिकरण उसके खिलाफ वसूली या कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं। हालांकि, ऐसा कोई भी कदम कर्मचारी की पेंशन रोकने का आधार नहीं बन सकता।
कर्मचारियों के भविष्य निधि (EPF) ढांचे का हिस्सा कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी देती है। इस योजना के तहत कर्मचारी और नियोक्ता, दोनों, वेतन के आधार पर योगदान करते हैं।
समय-समय पर कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने योगदान के लिए वेतन की अधिकतम सीमा तय की है — जैसे ₹5,000, ₹6,500 और बाद में ₹15,000। लेकिन कई कर्मचारियों ने बेहतर पेंशन पाने के लिए अपनी पूरी सैलरी पर योगदान करना चुना, यानी तय सीमा से अधिक रकम जमा की।
कई मामलों में नियोक्ताओं ने इन अतिरिक्त योगदानों को हर महीने जमा करने के बजाय बाद में एकमुश्त (bulk) रूप से जमा किया। इससे तकनीकी रूप से योजना के नियमों का उल्लंघन हुआ, जिसे आधार बनाकर ईपीएफओ ने उन्हें उच्च पेंशन का लाभ देने से इनकार कर दिया।
केरल उच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में कहा कि जब ईपीएफओ ने कर्मचारियों के योगदान को स्वीकार कर लिया था, तो केवल प्रशासनिक या तकनीकी त्रुटियों के कारण पेंशन का अधिकार नहीं छीना जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी प्रक्रियात्मक कमियां कर्मचारियों के वैध पेंशन अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकतीं।
यह फैसला उन हजारों कर्मचारियों के लिए राहत भरा माना जा रहा है, जो लंबे समय से अपने पूर्ण वेतन पर किए गए योगदान के आधार पर अधिक पेंशन पाने की मांग कर रहे थे।
हाल ही में एक अहम फैसले के बाद, जिन कर्मचारियों ने 1 सितंबर 2014 के बाद रिटायरमेंट लिया है, उनके लिए पेंशन संबंधी नए अवसर खुल सकते हैं।
EPF/EPS रिकॉर्ड की जांच करें
यदि आपका नियोक्ता कभी कानूनी वेतन सीमा से अधिक योगदान करता रहा है, तो यह देखना जरूरी है कि क्या EPFO ने उन उच्च योगदानों को स्वीकार किया।
अस्वीकृत पेंशन के लिए दावा करें
यदि आपकी पेंशन कम वेतन सीमा के आधार पर निर्धारित की गई या अस्वीकृत कर दी गई थी, तो आप इस फैसले के आधार पर EPFO से संशोधन की मांग कर सकते हैं। इसके लिए कानूनी या प्रतिनिधि सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है।
समय सीमा पर ध्यान दें
हालांकि यह फैसला कर्मचारियों के पक्ष में है, लेकिन पेंशन दावों पर EPF कानून के तहत समय सीमा या प्रक्रियात्मक शर्तें लागू हो सकती हैं। इसलिए यह देखना जरूरी है कि आपका मामला अभी भी दायर किया जा सकता है या नहीं।
दस्तावेजी साक्ष्य तैयार रखें
अपनी सैलरी स्लिप्स, नियोक्ता के योगदान रिकॉर्ड और सभी पत्राचार जो वास्तविक वेतन योगदान को दर्शाते हों, संभाल कर रखें। ये आपके दावे को मजबूत करेंगे।
नियोक्ता की जिम्मेदारी
अगर योगदान सही तरीके से नहीं किए गए हैं, तो EPFO नियोक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। लेकिन इस दौरान आपकी पेंशन को किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए।
केरल हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जो उन कर्मचारियों के लिए राहत की खबर है जिन्होंने अपने रिटायरमेंट के बाद उच्च EPS पेंशन की मांग की थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर कर्मचारी और नियोक्ता ने वास्तविक वेतन के आधार पर योगदान दिया और EPFO ने उसे स्वीकार कर लिया, तो किसी भी तरह की प्रक्रियागत त्रुटि के बावजूद उच्च पेंशन देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
इस फैसले का लाभ उन कर्मचारियों को मिलेगा जो:
Employees’ Pension Scheme (EPS) के तहत पेंशन की गणना पेंशन योग्य वेतन पर की जाती है, जो सामान्यतः सीमित रहती थी। हालाँकि, कर्मचारी और नियोक्ता अपनी पूरी वेतन राशि पर योगदान कर सकते हैं। इससे रिटायरमेंट के बाद पेंशन की राशि बढ़ जाती है। यह फैसला उन कर्मचारियों के अधिकार की पुष्टि करता है जिन्होंने उच्च योगदान विकल्प चुना था।
EPFO अक्सर उच्च पेंशन देने से इसलिए इनकार करता था क्योंकि:
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन प्रक्रियागत कारणों के बावजूद अगर योगदान स्वीकार किया गया है, तो कर्मचारी का अधिकार सुरक्षित है।
जो कर्मचारी अभी या जल्द सेवानिवृत्त होने वाले हैं और जिनकी कंपनी वास्तविक वेतन के आधार पर योगदान करती है, उनके लिए यह फैसला महत्वपूर्ण है। EPFO अब उन्हें किसी भी आंतरिक प्रक्रियागत गलती के कारण उच्च पेंशन देने से नहीं रोक सकता।
यह फैसला केरल हाई कोर्ट की क्षेत्राधिकार में बाध्यकारी है, लेकिन अन्य राज्यों के लिए भी यह मजबूत मार्गदर्शन साबित हो सकता है। EPFO सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है, लेकिन तब तक यह निर्णय उच्च योगदान के बावजूद पेंशन वंचित कर्मचारियों के लिए सहारा बनेगा।
कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि योगदान सही और समय पर जमा किया गया। हालांकि कर्मचारियों के पेंशन अधिकार किसी भी प्रक्रियागत त्रुटि के कारण प्रभावित नहीं हो सकते।