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New Tax Rules: अगर आपने किसी रेजिडेंट व्यक्ति से ₹50 लाख या उससे ज्यादा कीमत की प्रॉपर्टी खरीदी है (खेती की ज़मीन को छोड़कर) और TDS नहीं काटा है, तो आपको ‘डिफॉल्टर’ यानी गलती करने वाला करदाता माना जा सकता है। आयकर विभाग ने इस बारे में एक नई जानकारी पुस्तिका (brochure) जारी की है, जिसमें टैक्सपेयर्स के लिए जरूरी बातों को समझाया गया है।
क्या कहता है सेक्शन 194-IA?
₹50 लाख तक की प्रॉपर्टी पर राहत
अगर प्रॉपर्टी की कीमत और स्टाम्प ड्यूटी वैल्यू दोनों ₹50 लाख से कम हैं, तो TDS नहीं काटना पड़ेगा।
कब काटना है TDS?
TDS दो में से जिस घटना की तारीख पहले हो, उस समय काटना होगा:
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NRI टैक्सपेयर्स पर भी लागू
यह नियम नॉन-रेजिडेंट टैक्सपेयर्स (NRI) पर भी लागू होता है। अगर आप नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो आपको ‘assessee in default’ या कुछ मामलों में टैक्स चोर भी माना जा सकता है।
1 अप्रैल 2025 से 194-IA सेक्शन में TDS को लेकर अहम बदलाव, जानिए नया नियम
रियल एस्टेट ट्रांजैक्शन में टैक्स डिडक्शन (TDS) से जुड़े नियमों में बदलाव किया गया है। आयकर अधिनियम की धारा 194-IA के तहत TDS से जुड़े मौजूदा और नए नियम इस प्रकार हैं:
Income Tax Act की धारा 195 के तहत जरूरी है यह प्रक्रिया
अगर कोई भारतीय निवासी किसी NRI यानी अनिवासी भारतीय से अचल संपत्ति (immovable property) खरीदता है, तो उसे पूरे सौदे की राशि पर TDS (टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स) काटना जरूरी होता है। इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 195 के तहत यह प्रावधान किया गया है।
वेद जैन एंड एसोसिएट्स के पार्टनर अंकित जैन के मुताबिक, इस स्थिति में TDS सिर्फ कैपिटल गेन पर नहीं, बल्कि पूरे सेल कंसीडरेशन यानी बिक्री मूल्य पर काटा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि NRI को भारत में हुई इस आय पर टैक्स पहले से ही वसूला जा सके।
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अगर पेमेंट टैक्सेबल नहीं है तो AO से लेना होगा अप्रूवल
डीएमडी एडवोकेट्स की एसोसिएट पार्टनर राशि खन्ना बताती हैं कि अगर खरीदार को लगता है कि यह भुगतान NRI के लिए टैक्स योग्य नहीं है, तो वह इनकम टैक्स ऑफिसर (AO) से इसके लिए आवेदन कर सकता है। फिर AO के आदेश के अनुसार ही भुगतान करना होगा। अगर खरीदार TDS नहीं काटता या कम TDS काटता है, तो उसे इनकम टैक्स कानून के तहत ब्याज और जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए ऐसे मामलों में पूरी सावधानी बरतना जरूरी है।
टैक्स सलाहकारों ने चेताया है कि अगर खरीदार टैक्स काटने की जिम्मेदारी पूरी नहीं करता, तो उसे आयकर अधिनियम की धारा 201 के तहत ‘असेसी इन डिफॉल्ट’ माना जाएगा।
टैक्स एक्सपर्ट खन्ना ने बताया कि ऐसे मामलों में खरीदार को धारा 201(1A) के तहत 1 फीसदी मासिक ब्याज देना पड़ सकता है। इसके अलावा, उस पर धारा 271C के तहत जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो कि उस टैक्स की बराबर राशि होगी, जिसे धारा 195 के तहत काटा जाना चाहिए था।
सीएनके के पार्टनर पल्लव प्रद्युम्न नारंग के मुताबिक, एनआरआई को प्रॉपर्टी खरीदते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयकर कानून के प्रावधानों का पालन हो। जब एनआरआई किसी रेजिडेंट भारतीय से संपत्ति खरीदता है और संपत्ति की कीमत 50 लाख रुपये से ज्यादा होती है, तो भुगतान के समय 1% स्रोत पर टैक्स कटौती (TDS) करना जरूरी होता है।
हालांकि, अगर लेनदेन दो एनआरआई के बीच हो रहा है और विक्रेता भी एनआरआई है, तो ऐसी स्थिति में टैक्स कटौती की जरूरत नहीं होती।