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ELSS: हालिया प्रदर्शन पर निवेशक चुनेंगे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम तो जोखिम के लिए रहें तैयार

2 लाख करोड़ रुपये से कुछ ही कम संपत्ति संभालने वाले 42 ELSS फंडों के बीच सही फंड चुनना आसान काम नहीं है।

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कार्तिक जेरोम   
Last Updated- February 05, 2024 | 8:22 AM IST

वित्त वर्ष खत्म होने को है और कर बचाने के लिए भागदौड़ शुरू हो गई है। इसके लिए कई निवेशक इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) पर भी विचार कर रहे होंगे क्योंकि पिछले कुछ समय में इसका रिटर्न शानदार रहा है। ELSS को टैक्स सेवर फंड भी कहा जाता है मगर 2 लाख करोड़ रुपये से कुछ ही कम संपत्ति संभालने वाले 42 ELSS फंडों के बीच सही फंड चुनना आसान काम नहीं है।

रिटर्न ज्यादा, लॉक-इन कम

कर बचाने वाली जिन योजनाओं पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर योग्य आय में कटौती मिलती है, उनमें लॉक-इन अवधि कम से कम 5 साल होती है यानी 5 साल के लिए रकम फंसानी ही पड़ती है। इनमें से ज्यादातर योजनाएं स्थिर आय वाली होती हैं। ELSS के साथ ये दोनों शर्तें नहीं हैं।

डीएसपी म्युचुअल फंड में हेड (पैसिव इन्वेस्टमेंट और प्रोडक्ट्स) अनिल घेलानी बताते हैं, ‘इनमें लॉक-इन अवधि केवल 3 साल की यानी छोटी होती है। दूसरी बढ़िया बात यह है कि इनमें ज्यादातर निवेश इक्विटी में किया जाता है। इस वजह से ये योजनाएं डेट में निवेश करने वाली कर बचत योजनाओं के मुकाबले ज्यादा रिटर्न दे पाती हैं।’

उठापटक ज्यादा

ELSS के साथ एक दिक्कत यह है कि इनमें जोखिम ज्यादा होता है। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और सहजमनी के संस्थापक अभिषेक कुमार कहते हैं, ‘इन पर मिलने वाला रिटर्न काफी ऊपर नीचे जा सकता है, इसलिए जोखिम से परहेज करने वाले निवेशकों के लिए ELSS शायद मुनासिब नहीं होगा।’

ELSS चुनें या डेट निवेश योजनाएं, इसका फैसला आपके पोर्टफोलियो के संपत्ति आवंटन को देखकर होना चाहिए। अगर आपने स्थिर आय वाली योजनाओं में जरूरत से ज्यादा निवेश कर रखा है तो ELSS चुनिए। अगर इक्विटी में ज्यादा निवेश है तो ELSS छोड़कर डेट की तरफ जाइए। कुमार की सलाह है, ‘जो निवेशक जोखिम लेने को तैयार हैं और लंबे समय बाद के किसी लक्ष्य के लिए निवेश कर रहे हैं, वे ELSS देख सकते हैं।’

पैसिव योजना भी सही

कुछ पैसिव ELSS भी उपलब्ध हैं। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और फिड्युशरीज के संस्थापक अविनाश लूथरिया की राय में निफ्टी 50 पर चलने वाले ELSS में निवेश करना बेहतर होगा। वह ऐसे पैसिव ELSS से दूर रहने की सलाह देते हैं, जिनका मिडकैप में ज्यादा निवेश है जैसे निफ्टी लार्ज मिड कैप 250 इंडेक्स में निवेश वाले ELSS।

कुमार बताते हैं, ‘2008-09 में जब बाजार गिरे तब निफ्टी 50 टोटल रिटर्न इंडेक्स 59 फीसदी लुढ़क गया। मगर निफ्टी मिडकैप 150 टोटल रिटर्न इंडेक्स तो चारों खाने चित होकर 73 फीसदी ढह गया। ज्यादातर निवेशकों के लिए इतनी गिरावट डरावनी ही होगी।’ उनका यह भी कहना है कि निफ्टी 50 में निवेश करने वाले फंड अगर ट्रैकिंग में कोई चूक करते हैं तो उसे संभाल जा सकता है।

फंड्सइंडिया डॉट कॉम के वाइस प्रेसिडेंट और अनुसंधान प्रमुख अरुण कुमार कहते हैं, ‘अगर आपके पास समय नहीं है या सलाह देने वाला कोई नहीं है तो पैसिव फंड आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है।’ उनकी सलाह यह भी है कि मिड कैप में निवेश वाला पैसिव फंड तभी चुना जाए जब कम से कम 7 साल के लिए निवेश किया जा रहा हो और जोखिम झेलने की कुव्वत भी हो।

सही ऐक्टिव फंड कैसे चुनें?

ELSS में निवेशकों की रकम 3 साल के लिए फंस जाती है। अरुण कुमार समझाते हैं, ‘अगर फंड मैनेजर बदल जाए या फंड कंपनी के अंदर ही कोई बदलाव हो जाए तो आपको फंड से अपनी रकम तुरंत निकालने की सुविधा इसमें नहीं मिलती है। इसलिए अच्छी साख वाले किसी ऐसे फंड में निवेश कीजिए, जो कम से कम 10 साल से चल रहा है।’

वह कम से कम 5,000 करोड़ रुपये की संपत्ति संभालने वाला फंड चुनने की सलाह देते हैं ताकि ताकि फंड कंपनी उस पर भरपूर ध्यान देती रहे।

निवेश करने से पहले देखिए कि पिछले 7 या 10 साल में फंड का रिटर्न कैसा रहा है। अरुण कुमार के मुताबिक यह देखना जरूरी है कि फंड ने कितने प्रतिशत मौकों पर बेंचमार्क से ज्यादा रिटर्न दिया है। आंकड़ा जितना ज्यादा हो उतना अच्छा रहेगा। यह भी देखिए कि बेंचमार्क के मुकाबले कितना ज्यादा रिटर्न दिया।

इसके बाद कैलेंडर वर्ष में रिटर्न पर नजर डालें और एक साल अच्छा रिटर्न देने के बाद अगले साल बहुत कम रिटर्न देने वाले फंड को हटा दें। फंड का डाउनसाइड और अपसाइड कैप्चर रेश्यो भी देखें। बाजार गिरने पर सूचकांक के मुकाबले फंड का प्रदर्शन डाउनसाइड कैप्चर रेश्यो कहलाता है और बाजार चढ़ने पर यह प्रदर्शन अपसाइड कैप्चर रेश्यो कहलाता है। डाउनसाइड कैप्चर रेश्यो कम से कम और अपसाइड कैप्चर रेश्यो अधिक से अधिक होना बेहतर रहेगा।

मगर ELSS को केवल अतीत का प्रदर्शन देखकर चुनना ही ठीक नहीं रहेगा क्योंकि हो सकता है कि हाल में अच्छा प्रदर्शन कर चुके फंडों के लिए बाजार अगले कुछ साल अच्छा नहीं रहे। अरुण कुमार इसके लिए इक्विटी पोर्टफोलियो में अलग-अलग निवेश चक्र वाली योजनाएं शामिल करने की सलाह देते हैं।

यदि फंड को संभालने के लिए नया फंड मैनेजर आता है तो पिछली फंड कंपनी में उसका रिकॉर्ड भी देखिए। ऐसी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी चुनें, जिसके तौर-तरीके बार-बार नहीं बदलते हों। घेलानी कहते हैं, ‘जब आप ऐसी फंड कंपनी चुनते हैं, जिसकी अच्छे निवेश सिद्धांतों और दूरअंदेश जोखिम प्रबंधन वाली मजबूत निवेश व्यवस्था है तो मैनेजर बदलने पर भी आपका निवेश पहले की तरह ही संभाला जाता है।’

आखिरी बात, ELSS में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमें प्लान के जरिये रकम लगाएं और लॉक-इन अवधि पूरी होते ही रकम नहीं निकालें। कम से कम सात साल तक निवेश बनाए रखें।

First Published : February 4, 2024 | 10:53 PM IST