Sebi board meeting: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के बोर्ड ने आज यानी 1 अक्टूबर को बैठक की। ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि बोर्ड मीटिंग में चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के खिलाफ खुलासे की चूक और हितों के टकराव के आरोपों पर चर्चा होगी। मगर ऐसा नहीं हुआ, दो बोर्ड सदस्यों ने बताया कि इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई।
बोर्ड की यह चुप्पी कुछ प्रतिभागियों (participants) के लिए निराशाजनक रही, खासकर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की तरफ से लगाए जा रहे लगातार आरोपों के बीच। पूर्व अधिकारी और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सेबी बोर्ड के पास इस मामले में कार्रवाई की सीमित क्षमता है।
एक पूर्व सेबी चेयरपर्सन ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘चेयरपर्सन और पूर्णकालिक सदस्य (WTMs) सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। केवल सरकार ही उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई (disciplinary action) कर सकती है। एक सामान्य कंपनी बोर्ड की तरह, उन्हें बोर्ड द्वारा हटाया या दंडित नहीं किया जा सकता। यहां तक कि स्पष्ट हितों के टकराव के मामले में भी बोर्ड औपचारिक कार्यवाही (formal proceedings) शुरू करने का अधिकार नहीं रखता है।’
हालांकि आधिकारिक एजेंडे में हितों के टकराव के मुद्दे की बात नहीं थी। सूत्रों का कहना है कि इसपर अनौपचारिक रूप से चर्चा की जा सकती है।
इस मामले से परिचित एक व्यक्ति ने बताया, ‘पिछली बोर्ड बैठक और सोमवार की बैठक के बीच सेबी और उसके बोर्ड सदस्यों या चेयरपर्सन से संबंधित कोई भी महत्वपूर्ण घटना पर बोर्ड की तरफ से संज्ञान लिया जाना चाहिए।’
हालांकि हितों के टकराव के आरोप आधिकारिक एजेंडे का हिस्सा नहीं थे। सेबी के नियमों में एक धारा है जिसके तहत ‘पिछली बैठक के बाद से बाजार से संबंधित कोई भी महत्वपूर्ण घटना पर बोर्ड की तरफ से संज्ञान लिया जा सकता है।’ इसी वजह से अटकलें लगाई जा रही थीं कि बोर्ड इस मुद्दे पर आज चर्चा करेगा।
मौजूदा समय में SEBI के सात बोर्ड सदस्य हैं, जिनमें चेयरपर्सन और चार पूर्णकालिक सदस्य शामिल हैं। इसके अलावा, 3 बाहरी या अंशकालिक सदस्य हैं। बाहरी सदस्यों में आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) के सचिव अजय सेठ, RBI के डिप्टी गवर्नर राजेश्वर राव, और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव दीप्ति गौर मुखर्जी शामिल हैं।
रेगस्ट्रीट लॉ एडवाइजर्स के सुमित अग्रवाल ने कहा, ‘यह मामला सरकार द्वारा रेगुलेटरी गनवर्नेंस का है। संभव है कि इस मुद्दे पर चर्चा हुई हो, लेकिन प्रेस रिलीज में इसका खुलासा नहीं किया गया हो, क्योंकि हर एजेंडे पर होने वाली चर्चा सार्वजनिक रूप से साझा नहीं की जाती। अगर वास्तव में बोर्ड ने इस मामले को बात नहीं की है तो यह आंतरिक प्रक्रिया या DEA की तरफ से जारी समीक्षा के कारण हो सकता है। जिसकी वजह से तत्काल बोर्ड लेवल पर विचार-विमर्श को टाल दिया हो। जैसे-जैसे बाजार में अटकलें बढ़ती हैं, वित्त मंत्रालय को प्रक्रियात्मक कदमों पर स्पष्टता लानी चाहिए ताकि और अनिश्चितता से बचा जा सके।’ बता दें कि सुमित अग्रवाल पूर्व में सेबी अधिकारी रह चुके हैं।
गवर्नेंस के जानकारों का सुझाव है कि सेबी बोर्ड की तरफ से लगाए गए आरोपों पर एक बयान या स्पष्टीकरण नकारात्मक धारणा को कम करने और चिंताओं को दूर करने में मदद कर सकता था।
इनगोवर्न रिसर्च सर्विसेज के फाउंडर और प्रबंध निदेशक (MD) श्रीराम सुब्रमण्यम ने कहा, ‘हालांकि सेबी बोर्ड चेयरपर्सन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सक्षम नहीं है, फिर भी उन्हें हितों के टकराव के मुद्दे पर ज्यादा सक्रिय होकर से चर्चा करनी चाहिए थी। इससे यह धारणा दूर हो सकती थी कि रेगुलेटर इस मुद्दे को नजरअंदाज कर रहा है। जबकि चेयरपर्सन ने सभी आरोपों का खंडन किया है, सेबी बोर्ड को एक इकाई के रूप में भी इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए थी।’
कांग्रेस ने चेयरपर्सन पर आचार संहिता का उल्लंघन और उनके पूर्व नियोक्ता (former employee) ICICI Bank से प्राप्त भुगतान को लेकर हितों के टकराव का आरोप लगाया है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच और उनकी कंसल्टिंग फर्म अगोरा एडवाइजरी (Agora Advisory) को कॉरपोरेट्स से लाभ पहुंचाने के बदले भुगतान किया गया।
बुच और उनके पति ने विपक्षी पार्टी के आरोपों का खंडन करते हुए एक छह पेज का लेटर जारी किया। लेटर में कांग्रेस के आरोपों को झूठा, दुर्भावनापूर्ण और प्रेरित बताया गया।