बाजारों ने नए वित्त वर्ष में प्रवेश किया है और उनकी नजर आम चुनाव के नतीजों और नीतियों पर है जिन्हें नई सरकार शुरू कर सकती है। नोमूरा (Nomura) के प्रबंध निदेशक (MD) व इक्विटी शोध प्रमुख (भारत) सायन मुखर्जी ने पुनीत वाधवा को दिए साक्षात्कार में कहा कि महंगाई और अमेरिका में ब्याज कटौती में देरी बाजारों के लिए चिंता के तौर पर उभर सकती है। मुख्य अंश…
जैसा कि भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि इस साल वास्तव में काफी गर्मी पड़ने वाली है। साथ ही हम आम चुनाव के बीच होंगे, जो चीजों को और गरमाएगा। महंगाई की रफ्तार और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरों में कटौती में देरी बाजारों के लिए चिंता के तौर पर उभर सकती है। देर से ही सही, बाजार अभी भी नरम दरें मानकर चल रहा है। उतारचढ़ाव में इजाफे का अनुमान है और निचले स्तर वाले शेयर और शेयर विशेष को चुनने का तरीका आजमाया जा सकता है।
इंडेक्स की बात करें तो निफ्टी ने अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले बेहतर किया है। निश्चित तौर पर विकसित बाजारों ने इस साल अब तक उभरते बाजारों के मुकाबले उम्दा प्रदर्शन किया है। घबराहट कुछ हद तक स्मॉलकैप क्षेत्र में है, जहां भाव अब भी ऊंचे हैं। वहां भी हमने हालिया निचले स्तर से तेजी देखी है और इंडेक्स इस साल अभी तक स्थिर दिख रहा है। हमें इस समय निवेशकों के बीच बहुत ज्यादा घबराहट नहीं दिख रही।
इस साल शुरुआत में एफआईआई का निवेश थोड़ा नरम रहा लेकिन मार्च में इसमें तेजी आई। एफआईआई के निवेश में इस साल तेजी आ सकती है जब फेड ब्याज दरों में कटौती का चक्र शुरू होगा (हम पहली कटौती जुलाई 2024 में होने की उम्मीद कर रहे हैं) और नरम दरों को मजबूती मिलेगी। साथ ही तब तक राजनीतिक अनिश्चितता भी पीछे रह जाएगी। वृद्धि में मजबूती बने रहने से आरबीआई ब्याज दर में कटौती समय से पहले शायद नहीं करेगा। हमें लगता है कि आरबीआई अगस्त 2024 से दरें घटाना शुरू करेगा।
नीतियों का बाजारों पर असर होता है। भारत में बाजार का अनुमान है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार सत्ता में वापसी करेगी और नीतिगत निरंतरता जारी रहेगी। इससे विनिर्माण और निवेश की अगुआई में वृद्धि पर ध्यान बना रहेगा। इस अनुमान को बाजार मोटे तौर पर समाहित कर चुका है।
कमजोर बहुमत या राजग की हार के हालात में नीतिगत अनिश्चितता देखने को मिल सकती है और इससे बाजार के मौजूदा मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। अमेरिका में ट्रंप की जीत से कारोबारी संरक्षणवाद और कम ब्याज दर व राजकोषीय विस्तार की वापसी हो सकती है। भारत के लिए आर्थिक असर सीमित रह सकता है और आपूर्ति शृंखला में बदलाव से लाभ मिल सकता है। हालांकि नीतियों से अमेरिकी राजकोष के टिकाऊपन को लेकर चिंता हो सकती है जो बाजारों के लिए नकारात्मक हो सकता है।
हमें लगता है कि हाल में कंपनियों की आय बाजारों के अनुमान से बेहतर रही है। उदाहरण के लिए दिसंबर 2023 की तिमाही में हमें 200 से ज्यादा कंपनियों की आय बाजार के अनुमान से 4 फीसदी ज्यादा रहने का अनुमान था, जिससे वित्त वर्ष 25 व 26 के लिए 1 से 3 फीसदी आय अपग्रेड हुई। कंपनियों की आय को लाभ मार्जिन में सुधार से मजबूती मिली है। बेहतर कीमत और कम लागत से आय को सहारा मिला।
ज्यादातर क्षेत्रों में मुनाफा मार्जिन का अनुमान लंबी अवधि के औसत के मुकाबले ज्यादा है। इसलिए आने वाले समय में आय में वृद्धि मोटे तौर पर राजस्व वृद्धि पर निर्भर रहने वाली है। सार्वजनिक उपक्रमों में हम खास तौर से बैंक व तेल विपणन कंपनियों पर सकारात्मक हैं। रक्षा व रेलवे थीम पर अनुमान ऊंचे हैं और वहां शेयर कीमतों को लेकर बहुत सहजता नहीं है।
महंगाई में नरमी के साथ ही ग्रामीण भारत में वेतन में वास्तविक वृद्धि सुधरेगी। ग्रामीण उपभोग भी मौजूदा निचले स्तर से सुधरने की उम्मीद है। हम शहरी भारत में रोजगार में नरमी और वास्तविक वेतन वृद्धि में कमी देख रहे हैं। ऐसे में इस क्षेत्र के उच्च मूल्यांकन को देखते हुए उपभोग वाले चुनिंदा शेयरों पर ही नजर डालनी चाहिए। हमें ऑटो ओईएम और स्टेपल कंपनियां पसंद हैं।