बाजार नियामक सेबी ने शुक्रवार को कंपनियों के लिए ओपन ऑफर के बाद सूचीबद्घता समाप्त करने की राह आसान बनाने के लिए नए ढांचे का प्रस्ताव रखा।
मौजूदा समय में, किसी सूचीबद्घ कंपनी में स्वामित्प में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बदलाव के मामले में नए अधिग्रहणकर्ता को 26 प्रतिशत का अनिवार्य ओपन ऑफर लाने की जरूरत होती है। यदि ओपन ऑफर पूरी तरह सफल रहता है तो इसकी संभावना होती है कि नए अधिग्रहणकर्ता की शेयरधारिता 90 प्रतिशत पर पहुंच जाए। 25 प्रतिशत न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता नियमों का पालन करने के प्रयास में अधिग्रहणकर्ता को फिर से हिस्सेदारी घटाकर 75 प्रतिशत से नीचे लाने की जरूरत होती है। दिलचस्प है कि यदि अधिग्रहणकर्ता हिस्सेदारी घटाना चाहता है तो सबसे पहले प्रवर्तक होल्डिंग घटाकर 75 प्रतिशत लाने की जरूरत होगी और फिर इसे बढ़ाकर 90 प्रतिशत पर लाना होगा।
सेबी ने शुक्रवार को 16 जुलाई तक सार्वजनिक प्रतिक्रिया मांगे जाने संबंधित चर्चा पत्र में कहा, ‘इस तरह के विरोधाभसी लेनदेन सूचीबद्घ कंपनियों के अधिग्रहण में जटिलता पैदा करते हैं और आगामी अधिग्रहणकर्ता को सूचीबद्घ कंपनियों पर नियंत्रण हासिल करने से रोकते हैं।’ यह चर्चा पत्र सेबी की प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति (पीएमएसी) के उप-समूह द्वारा की गई सिफारिशों पर आधारित है।
विशेषज्ञों की समिति समानांतर ओपन ऑफर की अनुमति दिए जाने और प्रस्ताव से संबंधित कुछ जटिलताएं दूर किए जाने के प्रयास में जांच के साथ बोलियों को असूचीबद्घ किए जाने के पक्ष में है।
नए ढांचे के तहत, अधिग्रहणकर्ता को ओपन ऑफर लाने के समय अग्रिम तौर पर सूचीबद्घता समाप्त करने के इरादे का खुलासा करना होगा। साथ ही चूंकि सूचीबद्घता कीमत सामान्य तौर पर ओपन ऑफर कीमत के मुकाबले ज्यादा होती है। अधिग्रहणकर्ता को ओपन ऑफर और सूचीबद्घता समाप्त करने (डीलिस्टिंग) के लिए दो अलग अलग ऑफर कीमतों का खुलासा करना होगा। यदि डीलिस्टिंग बोली पर अमल होता है तो अधिग्रहणकर्ता को सभी शेयरधारकों को डीलिस्टिंग कीमत चुकानी होगी। यदि डीलिस्टिंग बोली गिरती है तो सभी शेयरधारकों को ओपन ऑफर कीमत के हिसाब से भुगतान करना होगा। समिति ने अल्पांश शेयरधारकों के बहुमत के साथ डीलिस्टिंग बोली खारिज करने का अधिकार बनाए रखने का भी प्रस्ताव रखा है।