भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) फंडों को अपने उद्योग निकाय के माध्यम से माइक्रो सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) शुरू करने में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। दो तिहाई से अधिक म्युचुअल फंड (एमएफ) कंपनियों ने अभी तक इसे शुरू नहीं किया है। सूत्रों के मुताबिक सेबी की सलाह के बाद उद्योग निकाय द एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया यानी एम्फी ने विभिन्न फंडों को 27 जून को पत्र लिखा और उनसे 250 रुपये वाली एसआईपी शुरू करने की उनकी योजनाओं पर जानकारी मांगी। फरवरी में घोषित इन तथाकथित छोटी एसआईपी पहल का मकसद बचत के वित्तीयकरण को बढ़ावा देना है।
जनवरी 2025 के परामर्श पत्र में नियामक ने फंडों के लिए लागत सब्सिडी का प्रस्ताव रखा ताकि उनके लिए छोटे आकार वाले निवेश को स्वीकार करना संभव हो सके। सेबी ने कुछ खर्चों को कवर करने के लिए निवेशक शिक्षा कोष के उपयोग की अनुमति देने का भी इरादा जताया।
दिलचस्प यह है कि प्रस्तावों के लगभग छह महीने बाद भी सेबी की ओर से अंतिम परिपत्र का इंतजार हो रहा है जिससे बाजार प्रतिभागियों में भ्रम की कुछ स्थिति हो रही है। लगभग सभी बड़े फंडों (प्रबंधित परिसंपत्तियों के हिसाब से शीर्ष 15) ने हाल में न्यूनतम एसआईपी आकार को घटाकर 100 रुपये कर दिया है। उल्लेखनीय है कि 250 रुपये के अलावा किसी भी रकम वाला एसआईपी प्रस्तावित छोटे आकार वाले एसआईपी ढांचे के दायरे में नहीं आता।
घटनाक्रम से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि 250 रुपये की राशि सावधानी से चुनी गई क्योंकि यह सबसे व्यवहार्य रकम है। लागत घटकों और हितधारकों के साथ चर्चा के बाद इस राशि को अंतिम रूप दिया गया। इस एसआईपी को फंडों की योजनाओं में शामिल करना होगा। इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। इस बारे में सेबी और एम्फी को भेजे गए सवालों का जवाब नहीं मिल पाया।
देश के सबसे बड़े फंड- एसबीआई म्युचुअल फंड- के डिप्टी एमडी और संयुक्त सीईओ डीपी सिंह ने कहा कि जननिवेश एसआईपी योजना के तहत 1,00,000 से अधिक कम आकार वाले एसआईपी का पंजीकरण हुआ है। उन्होंने कहा, उद्योग के दिग्गजों और मार्केट मेकर्स के रूप में हम आर्थिक व्यवहार्यता को लेकर चिंतित नहीं हैं। इसमें बहुत संभावनाएं हैं और आर्थिक वृद्धि और पूंजी बाजारों से लाभ उठाने के लिए ज्यादा लोगों को इसके दायरे में लाना एक बड़ा काम है।
एक अन्य बड़े फंड के अधिकारी ने कहा, हमारा विचार अधिक निवेशकों को फंडों के दायरे में लाने का है। शुरुआत में हमें लागत उठानी पड़ सकती है लेकिन समय के साथ-साथ जैसे-जैसे उनका निवेश बढ़ेगा, यह लागत पूरी तरह वसूल हो जाएगी।
लेकिन चूंकि यह पहल स्वैच्छिक है। इसलिए मध्यम आकार के और छोटे फंडों ने इसमें कम रुचि दिखाई है क्योंकि वे लागत कोलेकर अधिक संवेदनशील होते हैं। एक फंड अधिकारी ने कहा, व्यावसायिक व्यवहार्यता संबंधी मुद्दे हैं जो हमारी रणनीति के साथ मेल नहीं खाते।
सेबी की गणना के अनुसार सब्सिडीयुक्त एसआईपी, केवाईसी, भुगतान गेटवे और अन्य संबंधित लागतों के साथ 250 रुपये के एसआईपी में फंड हाउस का घाटा दो साल के भीतर पूरा हो जाएगा। हालांकि, इसमें तकनीकी जटिलताएं हैं। जिन परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) ने अभी तक एसआईपी आकार कम नहीं किया है, उनके सूत्रों का कहना है कि पात्र निवेशकों की पहचान के लिए सख्त शर्तें एक बाधा है।
परामर्श पत्र के अनुसार घटी हुई दरें केवल निवेशक के पहले तीन 250 रुपये के एसआईपी पंजीकरणों पर ही लागू होंगी। फंड अधिकारियों का कहना है कि निवेशकों को जोड़ने के दौरान इसे लागू करना मुश्किल है। इसके अतिरिक्त, अगर एसआईपी का आकार 250 रुपये से अलग है तो एएमसी को लागत का लाभ नहीं मिल सकता है। हालांकि एम्फी की पूछताछ के बाद ज्यादातर फंडों ने इस विकल्प पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया है।