म्युचुअल फंड

PMS vs AMC: फैमिली ऑफिस फंड्स पर सेबी के नए प्रस्ताव से क्या बदलेगा गेम? एक्सपर्ट्स से समझिए

अगर AMCs को बड़े ग्राहकों के लिए एक नई कैटेगरी के तहत सेग्रीगेटेड मैंडेट की सुविधा देने की अनुमति मिलती है, तो PMS और MF के बीच की सीमाएं और भी धुंधली हो जाएंगी।

Published by
खुशबू तिवारी   
Last Updated- July 21, 2025 | 5:55 PM IST

PMS vs AMC: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के हालिया प्रस्ताव ने एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) को फैमिली ऑफिस फंड्स (family office funds) मैनेज करने की अनुमति देने को लेकर बहस छेड़ दी है। इसके चलते रेगुलेटरी ओवरलैप और बाजार में समानता को लेकर चिंताएं सामने आई हैं। फिलहाल AMCs को केवल ब्रॉड-बेस्ड फंड्स मैनेज करने की अनुमति है।

PMS लाइसेंस के बगैर छूट का प्रस्ताव

7 जुलाई को सेबी ने एक परामर्श पत्र (consultation paper) जारी किया, जिसमें मौजूदा नियमों में बड़ी ढील देने का सुझाव दिया गया था। इसका मुख्य प्रस्ताव यह था कि यदि कड़े नियंत्रण और संतुलन (चेक्स एंड बैलेंस) लागू किए जाएं, तो AMCs को फैमिली ऑफिस और कुछ ऑफशोर व्हीकल्स जैसे नॉन-ब्रॉड-बेस्ड पूल्ड फंड्स को मैनेज करने की अनुमति दी जाए—इसके लिए उन्हें अलग से पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (PMS) लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं होगी।

Also Read: SIF: म्युचुअल फंड इंडस्ट्री में निवेश का नया दौर, SBI, Edelweiss से Mirae तक… AMC क्यों लगा रही दांव

PMS और MF के बीच का अंतर होगा कम

राइट रिसर्च पीएमएस की फाउंडर और फंड मैनेजर सोनम श्रीवास्तव ने कहा, “अगर AMCs को बड़े ग्राहकों के लिए एक नई कैटेगरी के तहत सेग्रीगेटेड मैंडेट (अलग पोर्टफोलियो प्रबंधन) की सुविधा देने की अनुमति मिलती है, तो पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (PMS) और म्युचुअल फंड्स (MFs) के बीच की सीमाएं और भी धुंधली हो जाएंगी। इससे रेगुलेटरी समानता (regulatory parity) से जुड़े सवाल उठते हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “PMS मैनेजरों को न्यूनतम निवेश, अनुपालन लागत और ग्राहक उपयुक्तता जैसे नियमों के तहत ज्यादा सख्ती से काम करना पड़ता है। अगर AMCs को MF के दायरे में रहते हुए ऐसी ही सेवाएं देने की अनुमति मिलती है, वह भी हल्के रेगुलेशन या ब्रांड आधारित फायदे के साथ, तो इससे प्रतिस्पर्धात्मक असंतुलन और आर्बिट्राज की स्थिति पैदा हो सकती है।”

घरेलू MF इंडस्ट्री को मिलेगा रेवेन्यू का नया स्त्रोत

अब तक ऐसे फंड्स को प्रबंधन और सलाहकार सेवाएं देने की इच्छुक एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) के लिए पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (PMS) लाइसेंस रखना अनिवार्य था। यह एक अतिरिक्त रेगुलेटरी लेयर थी, जिसे लेकर AMC सेक्टर का तर्क था कि इससे अन्य इंटरमीडियरीज की तुलना में प्रतिस्पर्धा में असमानता पैदा होती है।

सेबी के ताजा प्रस्तावों से घरेलू म्युचुअल फंड इंडस्ट्री के लिए एक नया रेवेन्यू स्रोत खुल सकता है, जो फिलहाल लगभग ₹75 लाख करोड़ की परिसंपत्तियों का प्रबंधन कर रही है।

Also Read: Mutual Funds में ओवरलैप कम करने की तैयारी में SEBI, हर 6 महीने में पोर्टफोलियो का करेगी रिव्यू!

लॉन्ग टर्म में दिलचस्प संभावनाएं

मिरे असेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) के वाइस चेयरमैन और सीईओ स्वरूप मोहंती ने कहा, “प्रस्तावों के जरिए AMCs उन पूल्ड वाहनों के साथ भी काम कर सकेंगी जो पहले रेगुलेटरी दायरे से बाहर थे, जैसे कि फैमिली ऑफिस या कुछ चुनिंदा ऑफशोर फंड्स।”

मोहंती ने आगे कहा कि ग्लोबल मार्केट्स तक पहुंच की सुविधा और AMCs को अपने फंड्स को ओवरसीज डिस्ट्रीब्यूट (विदेशों में बांटना) करने की अनुमति दिया जाना, लॉन्ग टर्म में दिलचस्प संभावनाएं पेश करता है।

नॉन-ब्रॉड-बेस्ड फंड्स क्या है?

नए प्रस्ताव के तहत, नॉन-ब्रॉड-बेस्ड फंड्स को ऐसे फंड्स के रूप में परिभाषित किया गया है जिनमें 20 से कम निवेशक हों या किसी एक निवेशक की हिस्सेदारी कुल कॉर्पस का 25% से ज्यादा हो।

सेबी ने संभावित टकराव के मामलों से निपटने के लिए कुछ सुरक्षा उपाय तय किए हैं, जिनमें फीस डिफरेंशियल पर सीमा, संसाधनों के आवंटन से जुड़े नियम और म्युचुअल फंड व प्राइवेट मैंडेट्स के बीच स्पष्ट फायरवॉल शामिल हैं।

लाइटहाउस कैन्टन इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और हेड ऑफ इनवेस्टमेंट्स प्रदीप गुप्ता ने कहा कि एक नया निवेशक वर्ग अब ऐसे बाय-साइड इनवेस्टमेंट आर्किटेक्चर से लाभ उठाएगा जो अनुभवी, संसाधनों से भरपूर है और जिसने कई मार्केट साइकल के दौरान खुद को साबित किया है।

Also Read: Mutual Fund: पैसिव नहीं अब ऐक्टिव फैक्टर फंड में दिलचस्पी, कई फंड हाउस उतार रहे नए एनएफओ

AMC की एंट्री से मुकाबला तेज

एक हालिया रिपोर्ट में जेफरीज ने संकेत दिया कि हाई नेट वर्थ इनवेस्टर (HNI) सेगमेंट पहले से ही काफी भीड़भाड़ वाला है, जहां कमाई के स्रोत विभिन्न कमीशन और शुल्क के जरिए फैले हुए हैं। अब प्रोफेशनल वेल्थ मैनेजर्स करीब ₹65 लाख करोड़ से अधिक की एसेट्स को संभाल रहे हैं और इस क्षेत्र में सर्विस ऑफरिंग को और गहराई देने के लिए प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि वेल्थ मैनेजर्स अब बड़े टिकट क्लाइंट्स को जोड़ने के लिए एडवाइजरी-आधारित मॉडल की ओर बढ़ सकते हैं।

बढ़ती प्रतिस्पर्धा को लेकर आशंकाओं के बावजूद कई पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (PMS) मैनेजर मानते हैं कि अल्ट्रा-एचएनआई ग्राहकों की जरूरतों को समझने और पूरा करने में उनकी वर्षों की विशेषज्ञता ही उन्हें बाकी से अलग बनाएगी।

ग्रीन पोर्टफोलियो पीएसएस के को-फाउंडर और फंड मैनेजर दिवम शर्मा ने कहा कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) के इस सेगमेंट में आने से कुल प्रतिस्पर्धा तो बढ़ेगी, लेकिन उन पर फीस और ऑपरेशन को लेकर ज्यादा सख्त नियम लागू होंगे। उन्होंने कहा, “हम पहले ही पर्सनलाइज्ड और जटिल वेल्थ सॉल्यूशन के लिए जरूरी सिस्टम और विशेषज्ञता विकसित कर चुके हैं, इसलिए ज्यादातर फैमिली ऑफिस अब भी एक कस्टमाइज्ड और हैंड्स-ऑन सेवा ही चाहेंगे।”

First Published : July 21, 2025 | 5:55 PM IST