मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने शुक्रवार को म्युचुअल फंड स्कीम्स (MF schemes) की कैटेगराइजेशन प्रक्रिया की समीक्षा करने का प्रस्ताव दिया है, ताकि स्कीम्स में स्पष्टता लाई जा सके और पोर्टफोलियो के ओवरलैप की समस्या को दूर किया जा सके। यह प्रस्ताव तब आया है जब सेबी ने कुछ स्कीम्स के पोर्टफोलियो में काफी अधिक समानता (ओवरलैप) पाई और महसूस किया कि इंडस्ट्री में ऐसी स्कीम्स को सीमित करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तय किए जाने चाहिए, जिनका पोर्टफोलियो एक-दूसरे से काफी मिलता-जुलता हो।
अपने परामर्श पत्र में सेबी ने सुझाव दिया है कि म्युचुअल फंड कंपनियों को वैल्यू और कॉन्ट्रा दोनों तरह की स्कीम लॉन्च करने की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते कि दोनों स्कीमों के पोर्टफोलियो में 50% से ज्यादा समानता किसी भी समय न हो।
इस ओवरलैप की जांच दो बार की जाएगी—पहली बार जब नई स्कीम लॉन्च की जाएगी (NFO के समय), और उसके बाद हर छह महीने में, महीने के आखिरी दिन के पोर्टफोलियो के आधार पर।
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अगर पोर्टफोलियो में ओवरलैप तय सीमा से ज्यादा हो जाता है, तो एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) को 30 कारोबारी दिनों के भीतर पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना होगा। यदि आवश्यक हो, तो AMC की इनवेस्टमेंट कमेटी (IC) से अधिकतम 30 कारोबारी दिनों का अतिरिक्त समय लिया जा सकता है, बशर्ते अतिरिक्त समय दिए जाने के कारणों को विधिवत दर्ज किया जाए और उसका रिकॉर्ड रखा जाए।
सेबी ने प्रस्ताव दिया, “अगर यह ओवरलैप इस अवधि के बाद भी बना रहता है, तो दोनों स्कीमों के निवेशकों को बिना किसी एग्जिट लोड के बाहर निकलने का विकल्प दिया जाएगा।”