म्युचुअल फंड

Equity-Linked Savings Scheme: चटपट के फेर में न आएं, लंबी रकम लगाएं अच्छा रिटर्न पाएं

धन सृजन की जबरदस्त क्षमता और कम लॉक-इन के साथ निवेश का बेहतर विकल्प

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सर्वजीत के सेन   
Last Updated- December 21, 2025 | 9:15 PM IST

टैक्स सेवर फंड के नाम से चर्चित इक्विटी-लिंक्ड बचत योजना (ईएलएसएस) को कभी कर बचाने वाला एक पसंदीदा निवेश विकल्प माना जाता था। मगर अब लंबी अवधि में धन सृजन की क्षमता होने के बावजूद इस ओर निवेशकों का रुझान धीरे-धीरे कम होने लगा है। म्युचुअल फंडों के संगठन एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2025 से इन योजनाओं में 2,888 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश देखा गया है। 31 अक्टूबर, 2025 तक करीब 42 ईएलएसएस ने कुल मिलाकर 2.53 लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों का प्रबंधन किया।

ईएलएसएस तीन साल के लॉक-इन के साथ आते हैं और अपनी कुल निधि का कम से कम 80 फीसदी रकम शेयरों में निवेश करते हैं। ऐक्टिव फंड विकल्पों के अलावा हाल में तीन पैसिव फंड भी लॉन्च किए गए हैं।

नई कर व्यवस्था का प्रभाव

इक्विटी-लिंक्ड बचत योजना में निवेशकों की कम दिलचस्पी होने का एक प्रमुख कारण नई कर व्यवस्था है। मौजूदा निवेशक अपना लॉक-इन पूरा करने अथवा अपने वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने के बाद भी बाहर निकल सकते हैं।

क्वांटम ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) के फंड मैनेजर (इक्विटी) जॉर्ज थॉमस ने कहा, ‘गिरावट का मुख्य कारण नई कर व्यवस्था में बदलाव है जो धारा 80सी के तहत कटौती की पेशकश नहीं करती है। मगर ईएलएसएस ने ऐतिहासिक तौर पर कर बचत वाले अन्य विकल्पों के मुकाबले अच्छा रिटर्न दिया है और बेहतर कर दक्षता दिखाई है। नई कर व्यवस्था के तहत कर प्रोत्साहन के हटने से इसका आकर्षण कम हो गया है।’

धन सृजन

इक्विटी-लिंक्ड बचत योजनाएं अभी भी उन लोगों के लिए कर देनदारी को कम करने का एक साधन है जो पुरानी कर व्यवस्था को अपना रहे हैं। ये योजनाएं सभी आकार की कंपनियों में विविध इक्विटी निवेश करती हैं। बजाज फिनसर्व एएमसी के प्रमुख (इक्विटी) सौरभ गुप्ता ने कहा, ‘क्षेत्रों और बाजार पूंजीकरण में विविधता से यह सुनिश्चित होती है कि वृद्धि के तमाम अवसरों का दोहन किया जाए जबकि जोखिम को अधिक दायरे में फैला दिया जाए। उपयुक्त समय सीमा और जोखिम लेने की क्षमता के साथ ईएलएसएस लंबी अवधि में धन सृजन के लिए एक आकर्षक विकल्प हो सकता है।’

फिसडम के अनुसंधान प्रमुख नीरव आर. करकेरा ने कहा, ‘ईएलएसएस आयकर की धरा 80सी के तहत सबसे कम लॉक-इन के साथ इक्विटी आधारित वृद्धि की पेशकश करती है।’ थॉमस ने कहा कि ईएलएसएस में लॉक-इन अवधि महज 3 साल है जबकि कर बचत वाले अन्य विकल्पों में यह 5 से 15 साल है।

धारा 80सी के तहत सालाना 1.5 लाख रुपये तक के निवेश पर कर कटौती का लाभ मिलता है।

इक्विटी में जोखिम

इक्विटी-लिंक्ड बचत योजनाओं में उतार-चढ़ाव दिख सकता है। गुप्ता ने कहा, ‘इक्विटी योजना होने के कारण ईएलएसएस में बाजार जोखिम बरकरार रहता है और उसके रिटर्न में भी बदलाव की संभावना होती है। इसके नतीजे व्यापक बाजार चक्रों से प्रभावित होते हैं।’

तीन साल लॉक-इन अवधि निवेशकों को उतार-चढ़ाव से निपटने में मदद करती है, लेकिन यह एक बाधा भी हो सकती है। करकेरा ने कहा, ‘इसका सबसे बड़ा नुकसान तरलता है क्योंकि तीन साल का लॉक-इन फंड तक पहुंच को रोकता है।’

जोखिम उठाने वाले निवेशक

कम अथवा मध्यम जोखिम लेने की क्षमता वाले निवेशकों के लिए ईएलएसएस में निवेश सही नहीं हो सकता है। गुप्ता ने कहा, ‘उपयुक्त समय-सीमा और जोखिम लेने की क्षमता वाले निवेशकों के लिए ईएलएसएस को उनके लंबी अवधि के पोर्टफोलियो में शामिल किया जा सकता है।’

करकेरा ने कहा, ‘मध्यम जोखिम सहने वाले निवेशकों को ईएलएसएस में धारा 80सी की सीमा का 25 से 40 फीसदी उपयोग करते हुए कर में बचत करने और विविधीकरण के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण मिलता है। अधिक जोखिम लेने की क्षमता और लंबी अवधि वाले आक्रामक निवेशक ईएलएसएस में पूरी 1.5 लाख रुपये तक का निवेश कर सकते हैं।’

तीन साल का अनिवार्य लॉक-इन खत्म होने के बाद भी निवेशकों को ईएलएसएस में निवेश बरकरार रखना चाहिए। ये इक्विटी केंद्रित फंड हैं और इसलिए इन्हें बेहतर रिटर्न देने और ऋण आधारित कर बचत वाले विकल्पों से बेहतर प्रदर्शन करने के लिए कम से कम 7 साल की अवधि की जरूरत होती है। लंबी होल्डिंग अवधि निवेशकों को लघु अवधि के उतार-चढ़ाव से निपटने में भी मदद करती है।

नए निवेशकों को यह आकलन कर लेना चाहिए कि फंड का झुकाव लार्जकैप शेयरों की ओर है या मिडकैप और स्मॉलकैप में अधिक आवंटन है। मिडकैप और स्मॉलकैप की ओर अधिक झुकाव वाले फंड में आम तौर पर उतार-चढ़ाव अधिक होता है। इसलिए इन योजनाओं में निवेश करने से पहले केवल पिछले साल के प्रदर्शन पर ध्यान देने से भी बचना चाहिए क्योंकि इस श्रेणी में लंबी अवधि का रिटर्न दमदार रहा है।


(लेखक गुरुग्राम के स्वतंत्र पत्रकार हैं)

First Published : December 21, 2025 | 9:15 PM IST