कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के कारण वैश्विक बाजारों में गिरावट के साथ घरेलू बाजार भी आज 2 फीसदी से ज्यादा फिसल गया। रूस-यूक्रेन युद्घ का आज सातवां दिन था, जिससे मुद्रास्फीति में तेजी, वैश्विक आपूर्ति शृंखला में बाधा और वैश्विक अर्थव्यवस्था में नरमी की चिंता बढ़ गई है।
कारोबार के दौरान बेंचमार्क सेंसेक्स 1,227 अंक तक लुढ़क गया था। हालांकि बाद में यह थोड़ा संभला और कारोबार की समप्ति पर 778 अंक के नुकसान के साथ 55,469 पर बंद हुआ। निफ्टी भी 188 अंक गिरकर 16,606 पर बंद हुआ। बैंकिंग और वाहन कंपनियों के शेयरों में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई मगर जिंस से जुड़ी कंपनियों के शेयर बढ़त पर बंद हुए।
टाटा स्टील में सबसे ज्यादा 5.5 फीसदी की तेजी देखी गई। बीएसई धातु सूचकांक 4.6 फीसदी बढ़ा क्योंकि युद्घ के कारण आपूर्ति बाधित होने की आशंका में कई जिसों के दाम 2009 के बाद उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं।
अवेंडस कैपिटल अल्टरनेट स्ट्रैटजीज के मुख्य कार्याधिकारी एंड्रयू हॉलैंड ने कहा, ‘बाजार को लग रहा था कि रूस हफ्ते भर के अंदर कीव पर कब्जा कर लेगा। लेकिन लड़ाई लंबी खिंचने से जिसों के दाम बढ़ रहे हैं। कई कंपनियां रूस के साथ अपना कारोबार बंद कर रही हैं। कंपनियों की आय पर इनका क्या असर होगा, इस पर अनिश्चितता बनी हुई है।’
ब्रेंट क्रूड कारोबार के दौरान 117.2 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था, जो 29 अगस्त, 2013 के बाद इसका उच्चतम स्तर है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर कच्चे तेल के दाम में तेजी से भारत में मुद्रास्फीति बढ़ती है, चालू खाते का घाटा बढ़ता है और बॉन्ड प्रतिफल तथा ब्याज दरों में इजाफा होता है जो वृहद आर्थिक स्थिरता पर इसका असर पड़ सकता है। आर्थिक समीक्षा में वित्त वर्ष 2023 में कच्चे तेल के दाम 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान लगाकर विकास दर आंकी गई थी। इस बीच कुछ विश्लेषकों का कहना है कि तेल निकट अवधि में 125 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच सकता है।