फर्स्ट ग्लोबल की संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक देविना मेहरा
वैश्विक वित्तीय बाजार अप्रैल के अपने निचले स्तर से उबर चुके हैं। फर्स्ट ग्लोबल की संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक देविना मेहरा ने पुनीत वाधवा को टेलीफोन इंटरव्यू में बताया कि वे अपने वैश्विक फंडों में यूरोप, चीन और कुछ हद तक भारत पर अधिक ध्यान दे रही हैं। साथ ही उन्होंने फिक्स्ड इनकम में भी अपना आवंटन बढ़ा दिया है। बातचीत के अंश:
क्या बाजार ट्रंप के टैरिफ झटकों से पूरी तरह उबर चुके हैं या फिर निवेशकों को मई में बेचने और निकल जाने की रणनीति अपनानी चाहिए?
ट्रंप के शुल्कों के झटकों से बाहर निकलने में दुनिया को काफी समय लगेगा। यह भी स्पष्ट नहीं है कि वह (डॉनल्ड ट्रंप) किस तरह की रियायतें चाहते हैं। इसके अलावा, विरोधाभासी बयान सिर्फ अनिश्चितता बढ़ाते हैं। ये घटनाक्रम पहले से ही अमेरिकी शेयरों के 12 साल के शानदार प्रदर्शन की परीक्षा ले रहे हैं। यूरोपीय बाजारों का प्रदर्शन कहीं बेहतर रहा है। जर्मनी के बाजार में 12, स्पेन में 16 और इटली में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि एसऐंडपी-500 में 9 प्रतिशत की गिरावट आई है। हम अपने वैश्विक फंडों में यूरोप, चीन और कुछ हद तक भारत पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और फिक्स्ड इनकम पर भी अपना ध्यान बढ़ाया है। भारत पर असर कम हो सकता है क्योंकि हम बड़े निर्यातक नहीं हैं।
भारत-पाकिस्तान तनाव के बारे में आपका क्या कहना है?
इस बारे में कुछ भी कहना असंभव है क्योंकि यह नहीं पता कि अगर हुई तो किस तरह की कार्रवाई होगी। लेकिन अगर हमें केवल बाजारों से ही मतलब है तो पिछला अनुभव बताता है कि अगर सीमा पर कुछ होता भी है, इसका स्थायी असर नहीं पड़ेगा।
क्या टैरिफ के झटकों का सबसे ज्यादा असर अमेरिकी डॉलर पर पड़ेगा, उसे सुरक्षित मुद्रा नहीं माना जाएगा?
ट्रंप ने न केवल बहुराष्ट्रीय संस्थाओं पर बल्कि अमेरिका की सॉफ्ट पावर पर भी प्रहार किया है। अमेरिकी डॉलर की स्थिति को कुछ स्थायी नुकसान होने की संभावना है। मेरे विचार से, बॉन्ड बाजार इस समय संभावित दरों में कटौती की तुलना में दरों में ज्यादा कमी की उम्मीद कर रहा है।
क्या वैश्विक वित्तीय बाजारों के लिए उम्मीद की कोई किरण है?
भारत के पास निश्चित रूप से अपना निर्यात बढ़ाने का अवसर है और मुझे उम्मीद है कि यह मौका बेकार नहीं जाएगा। ऊंचे टैरिफों की घोषणा के बाद भी भारत पर उसके कई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में शुल्क काफी कम है। चाहे जरूरी हो या नहीं, वैश्विक रक्षा खर्च में भी वृद्धि होगी क्योंकि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य देश अब अमेरिका पर अपनी सहायता के लिए निर्भर नहीं रह सकते। इससे व्यापार के अवसर खुलेंगे।
क्या विकसित बाजार वित्त वर्ष 2026 में अपने उभरते बाजारों वाले देशों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेंगे?
यूरोप अब अमेरिका से अलग हो रहा है। इसलिए सभी विकसित बाजार एक ही श्रेणी में नहीं आ सकते। उभरते बाजारों में हम चीन को लेकर सकारात्मक हैं और हम काफी हद तक ओवरवेट हैं। हम भारत पर भी कुछ हद तक ओवरवेट हैं। बेशक, चीन चौंकाने वाला रहा है, जहां के बाजार ने 2007 में ऊंचाई हासिल की थी मगर वह अभी तक इससे ऊपर नहीं बढ़ सका है जबकि तब से उसके सकल घरेलू उत्पाद में छह गुना वृद्धि हुई है।
अगर अमेरिका में मंदी आई तो निवेशकों को भारत में शेयरों का चयन किस तरह करना चाहिए?
मुझे भारतीय अर्थव्यवस्था या बाजार पर अमेरिकी मंदी का ज्यादा असर पड़ने की आशंका नहीं दिख रही है। सीधे प्रभावित होने वाला एकमात्र सेक्टर सूचना प्रौद्योगिकी सेवा है, क्योंकि फार्मास्युटिकल्स गैर-जरूरी खर्च में नहीं आता है। पिछले आंकड़ों से पता चलता है कि मंदी सी स्थिति में असल में समय के साथ भारतीय आईटी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ जाती है।
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश के लिहाज से इसके क्या मायने हैं?
मैं विदेशी प्रवाह पर बारीकी से नजर नहीं रखती। इसलिए कि दीर्घावधि आंकड़े से यह नहीं बताते कि जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक खरीदते हैं तो बाजार ऊपर जाता है या बेचते हैं तो गिर जाता है। ऐसा कभी नहीं रहा।
ऐसी कौन सी थीम/सेक्टर हैं जिन पर वित्त वर्ष 2026 में निवेशकों को ध्यान देना चाहिए?
इस समय हमारी पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवा हेल्थकेयर एवं फार्मास्युटिकल और वाहन कंपनियों पर ओवरवेट है। ये ऐसे थीम हैं जो हमें एक साल से ज्यादा समय से पसंद है। इस कैलेंडर वर्ष में हमने एफएमसीजी से कई शेयर शामिल किए।