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बाजार में उछाल नहीं शेयर के दाम देखिए

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:22 PM IST

तेजी और मंदी विकास का एक अहम हिस्सा होते हैं। मंदी की मार कम करने के लिए उठाए गए नीतिगत कदम विकास की रफ्तार को धीमा कर देते हैं।


लाइसेंस राज के दौर ने गलत नीतियों का दर्द झेला है। चालीस साल चलीं सख्त आर्थिक नीतियों ने साल दर साल ग्रोथ की इस रफ्तार को धीमा करने में पूरी मदद की है, लेकिन मंदी की मार इस दौर में बरकरार रही। महंगाई की दर दो अंकों यानी हमेशा दस फीसदी से ऊपर रही।


खाद्य सामग्री के गलत वितरण से हमेशा इनकी कमी बनी रही और कई बार तो इसने क्षेत्रीय स्तरों पर अकाल का रूप ले लिया। सुधारीकरण ने विकास की रफ्तार को कुछ तेज किया और महंगाई पर कुछ काबू पाया। लेकिन राजनीतिक प्रणाली को सुधारना इतना आसान नहीं है। जब भी मंदी का खौफ मंडराता है, सबसे पहले जो प्रतिक्रिया होती है वही यही कि सब्सिडी को बढ़ा दिया जाए और मुक्त बाजार की प्रणाली पर लगाम लगाने के लिए कीमतों पर फिर से अंकुश लगाया जाए।


सरकार इस समय ठीक यही कर रही है और वह ऐसा तब तक करती रहेगी जब तक कि मंदी का खौफ खत्म न हो जाए। जाहिर है इससे मंदी की मार कहीं से कम न होगी। घरेलू बाजार में तेजी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में आई कमोडिटी की कीमतों में तेजी से आई है। ऐसे में कीमतों पर लगाम लगाने की कोशिश करने से कालाबाजारी को प्रोत्साहन मिलेगा और सही मायने में ये महंगाई को कम नहीं कर सकेगा।


बदकिस्मती से ऐसी सरकारी नीतियां निवेशकों को भी उचित रिटर्न दिलाने में मुश्किलें पैदा करती हैं। आप किसी हाई राइस एरिया में निवेश कर बेहतर रिटर्न नहीं कमा सकते क्योंकि सरकारी नियंत्रण इसे रोक देता है और साथ ही आप महंगाई के पड़ रहे असर को झेलने के लिए भी बाध्य होते हैं। एनर्जी सेक्टर इसका उदाहरण है।


इराक पर हमले के तुरंत बाद ओएनजीसी के स्टॉक को खरीदने की सिफारिश होती है लेकिन सब्सिडी का जादू ओएनजीसी की तेजी के असर को पूरी तरह खत्म कर देता है क्योंकि सरकारी कंपनियां तेल के दाम नहीं बढ़ा पातीं।


यही हाल सीमेंट और कुछ हद तक स्टील कंपनियों के साथ हो रहा है। ऐसे में निवेशक केवल अपने स्टॉक होल्ड किये रहने और मंदी खत्म होने का इंतजार करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। स्टॉक होल्डिंग की बात हो तो मंदी के माहौल में भारी बिकवाली का कोई तुक नहीं बनता। अगर आपकी खरीद सही भावों पर हुई है तो ऐसे में बिकवाली इस अस्थायी माहौल में आपको नुकसान दे सकती है।


मंदी के दौर में असेट एलोकेशन में फेरबदल करना चाहिए या नहीं, इसका जवाब आसान नहीं है। डेट इंस्ट्रूमेंट्स में भी महंगाई की मार असर डालती है। लिहाजा असेट एलोकेशन का कोई एक सही जवाब नहीं हो सकता। इसका जवाब कई बातों पर निर्भर करता है। अगर मंदी लंबे समय तक रहनी है तो डेट एलोकेशन का मतलब बनता है।


लेकिन मंदी थोडे समय की ही है तो आपको स्टॉक का वै्ल्युएशन समझना होगा और अगर आपने ऐसे में सही भावों पर शेयर खरीद लिए तो बेहतर। लेकिन मौजूदा मंदी की बात करें तो यह कम से कम अगली सरकार आने तक बनी रहेगी। ऐसा भी नहीं लगता कि शेयर भाव अपने निचले स्तर पर आ चुके हैं। फंडामेंटल्स की गरज से बात हो तो अगर ब्याज दरें चढ़ती है तो बाजार की मौजूदा वैल्युएशंस बनी नहीं रह पाएंगीं।


अगर दरें स्थिर भी रहती हैं तो 2008-09 के लिए 14-15 के पीई को सही वैल्युएशन कहा जाएगा और इसका असर यह होगा कि निफ्टी मौजूदा स्तरों से और गिरेगा क्योंकि निफ्टी फिलहाल 2008-09 के लिए 17-18 के पीई पर है।  ऐसे में ऐसे स्टॉक ढूंढने चाहिए जिनका पीई 2008-09 के लिए 15 से नीचे हो।  फोकस ग्रोथ केबजाए वैल्यू पर होना चाहिए।

First Published : April 14, 2008 | 12:59 AM IST