कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रबंधन को लेकर भारत के प्रबंधन की व्यापक तौर पर आलोचना हुई। आलोचना करने वालों में देश और विदेश के आम आदमी से लेकर विशेषज्ञ तक शामिल हैं।
मार्च महीने में वायरस से जंग के दौरान आवश्यक दवाओं, जीवन रक्षक मेडिकल ऑक्सीजन, अस्पतालों में बेड को लेकर अफरातफरी शुरू हुई और कोविड-19 के टीके की नीति को लेकर भी अस्पष्टता थी, जिसकी वजह से व्यापक आलोचना हुई।
शवदाहगृहों से आ रही तस्वीरों, एंबुलेंस के लिए कतारों, अस्पतालों के बाहर पड़े मरीजों, बगैर मदद के पड़े अनाथ बच्चों, रेमडेसिविर, जैसी कोविड-19 की दवाओं की कालाबाजारी, ऑक्सीजन बेड या दवाओं या एंबुलेंस के लिए सोशल मीडिया पर चींख पुकार ने सरकार की छवि खराब की। मार्च महीने में भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने कोविड-19 महामारी में भारत को विजेता घोषित कर दिया था। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना में लगे थे और दुनिया के लिए एक उदाहरण के रूप में स्थापित कर रहे थे। संभवत: वह लगातार आंकड़ों की उपेक्षा कर रहे थे।
भारत जनवरी से मार्च के बीच में वैक्सीन डिप्लोमेसी में लगा हुआ था। करीब 6.6 करोड़ कोरोना टीके की खुराकें इस दौरान वाणिज्यिक निर्यात या अनुदान के रूप में विदेश भेजी गईं।