भाजपा में शामिल हुए आरपीएन सिंह

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:41 PM IST

वह कई साल से कांग्रेस को चेतावनी देते रहे कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की लोकप्रियता काफी घट गई है। लेकिन उन्होंने कांग्रेस में बने रहने का विकल्प चुना और जोखिम उठाने की वजह से ही उन्हें झारखंड का प्रभारी बनाया गया जहां कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन सरकार बनाई थी। लेकिन दोस्तों के बीच ‘रिची’ नाम से मशहूर पडरौना के राजा आरपीएन सिंह मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। वह स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ  निश्चित रूप से चुनाव लड़ेंगे जो कुछ समय पहले ही भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) से जुड़ गए। मौर्य पडरौना के विधायक थे। सिंह ने भले ही केवल एक बार (2009 में कुशीनगर सीट से) लोकसभा चुनाव जीता हो लेकिन उन्होंने 2003 और 2007 में विधानसभा में पडरौना का प्रतिनिधित्व किया। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वह गृह राज्य मंत्री बने और मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में अन्य विभागों की जिम्मेदारी भी उन्होंने संभाली थी। साल 2019 में भी वह लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरे लेकिन भाजपा और सपा के बाद वह तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें केवल 13 प्रतिशत वोट मिले।
कांग्रेस ने उन पर कितना दांव लगाया था यह इस तथ्य से भी स्पष्ट हो जाता है कि वह पार्टी के ‘स्टार प्रचारकों’ की सूची में शामिल थे। हालांकि पार्टी ने विधानसभा चुनाव में उनके समर्थकों को चुनावी मैदान में उतारने के उनके दावे को नजरअंदाज कर दिया। आरपीएन सिंह को नरेंद्र मोदी के खिलाफ  कांग्रेस नेतृत्व द्वारा शुरू किए गए व्यक्तिगत हमलों, विशेष रूप से ‘चौकीदार चोर है’ के नारे को लेकर आपत्ति थी और कांग्रेस की आंतरिक बैठकों में भी उन्होंने इस पर सवाल उठाया था।
कांग्रेस ने दलबदल पर गुस्से में प्रतिक्रिया दी। पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इसे भाजपा और कांग्रेस के बीच की लड़ाई को विचारधारा की लड़ाई कहा है। सुप्रिया का ताल्लुक पूर्वी उत्तर प्रदेश से है और उन्होंने महाराजगंज से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। वह कहती हैं, ‘इस लड़ाई को जीतने के लिए आपको बहादुर होना होगा। केवल एक कायर ही विपरीत विचारधारा वाली पार्टी में जा सकता है।’
आरपीएन सिंह का ताल्लुक अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के राजसी घराने के एक छोटे समूह से हैं। वह कुर्मी हैं और भाजपा ने उन्हें इतनी जल्दबाजी में पार्टी में इसलिए शामिल कराया क्योंकि वह चाहती थी कि कोई ओबीसी ही सपा में शामिल हुए मौर्य से मुकाबला करे। पडरौना की चुनावी लड़ाई इस दौर में सबसे दिलचस्प हो सकती है।

First Published : January 25, 2022 | 11:18 PM IST