जांच में लगने वाला समय कम हो

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 5:27 AM IST

रमणिक शाह ने आरटी-पीसीआर जांच के लिए अपने नमूने पिछले सप्प्ताह मंगलवार को 4 घंटे के इंतजार के बाद अहमदाबाद की एक निजी लैब को दिए थे। उन्हें शुक्रवार को जाकर जांच रिपोर्ट मिल पाई जिससे वह इतने दिनों तक कोविड संक्रमण की वस्तुस्थिति को लेकर असमंजस में बने रहे। रमणिक की ही तरह देश के तमाम अन्य मरीजों को भी कोविड संक्रमण की जांच में काफी दिक्कतें पेश आ रही हैं। कोविड महामारी की दूसरी लहर के उफान पर रहने के बीच देश भर में संक्रमण लगातार नए रिकॉर्ड बनाता जा रहा है। ऐसे में समय पर जांच न होना और रिपोर्ट मिलने में हो रही देरी मरीजों के जल्द स्वस्थ होने की संभावना पर असर डाल रही है। आरटी-पीसीआर जांच किट की किल्लत, प्रशिक्षित लोगों एवं क्षमता की कमी होने से यह स्थिति पैदा हुई है।  आरटी-पीसीआर का त्वरित विकल्प मानी जा रही फेलूदा जांच अभी व्यापक स्तर पर इस्तेमाल नहीं हो रही है। फेलूदा जांच में क्रिस्पर-कैस तकनीक की मदद से कोरोनावायरस के जीन की पहचान की जाती है।
पिछले साल अपोलो हॉॅस्पिटल्स ने टाटा मेडिकल ऐंड डायग्नोस्टिक्स (टाटा एमडी) के साथ भागीदारी में फेलूदा जांच करने की घोषणा की थी। अपोलो हॉॅस्पिटल्स को देश भर के अपने अस्पतालों एवं जांच केंद्रों में कोविड संक्रमण के लिए फेलूदा जांच की पेशकश करनी थी। अपोलो का अहमदाबाद केंद्र कहता है कि वह फेलूदा जांच प्रक्रिया कभी भी शुरू करने को तैयार है लेकिन समूह कार्यालय से अभी तक कोई सूचना नहीं मिली है। एक सूत्र ने कहा,’ निश्चित रूप से हमें अतिरिक्त लोगों को तैनात करने की जरूरत पड़ेगी लेकिन हमारी लैब में बुनियादी व्यवस्था पहले से मौजूद है।’ इस बारे में जब अपोलो समूह से संपर्क साधने की कोशिश की गई तो कोई जवाब नहीं मिला।
ऐबट ने भी कोविड संक्रमण की शीघ्र पहचान के लिए अपना ‘रैपिड मॉलेक्युलर टेस्ट’ पेश किया था। महज 15-20 मिनट में जांच के नतीजे देने का दावा करने वाली रैपिड जांच को अमेरिकी औषधि नियामक से आपात उपयोग की अनुमति भी मिल गई थी। न्यूबर्ग-सुप्राटेक और चेन्नई स्थित मेडाल जैसे कुछ लैब भारत में इस किट का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन सूत्रों के मुताबिक इस टेस्ट किट का सीमित उपयोग ही हो सकता है। एक लैब मालिक कहते हैं, ‘हमने जांच में पाया है कि गलत ढंग से नकारात्मक नतीजा देने की आशंका है। इस वजह से अब हम इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।’ वैसे एक साथ 17 नमूनों की जांच करने में सक्षम होने और चंद मिनटों में नतीजे देने की क्षमता होने से ऐबट का रैपिड मॉलेक्युलर टेस्ट उन जगहों पर उपयोगी हो सकता है जहां पर त्वरित नतीजे चाहिए होते हैं, मसलन हवाईअड्डा या आपात सर्जरी। इसके उलट आरटी-पीसीआर मशीन में एक साथ 92-400 नमूनों की जांच हो जाती है।
न्यूबर्ग डायग्नोस्टिक्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (परिचालन) डॉ अश्विनी बंसल कहते हैं, ‘पीसीआर मशीनों में नमूनों का विश्लेषण अलग-अलग तापमान पर होता है। लेकिन रैपिड टेस्ट एक समय में एक ही नमूने को स्थिर तापमान पर परखता है जिससे जल्द नतीजे आते हैं। लेकिन मानदंड के मामले में आरटी-पीसीआर सबसे आगे है।’
कोरोना की दूसरी लहर में सटीक साबित होने वाली जांचों की राह में एक बड़ी बाधा आरटी-पीसीआर मशीनों में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल और श्रमशक्ति की कमी भी है। इस बिंदु पर किट बनाने वाला उद्योग और निजी लैब एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े नजर आते हैं। स्वदेशी किट विनिर्माताओं के मुताबिक, लोकप्रिय धारणा के उलट देश में आरटी-पीसीआर जांच के बदहाल ढांचे का कच्चे माल की किल्लत से कम और मानव-श्रम से अधिक लेना-देना है। इसके अलावा जांच के तरीके का मूल स्वभाव भी असर डालता है।
स्वदेशी किट निर्माता माईलैब रोजाना 5-6 लाख किट के उत्पादन का दावा करती है। वह अपने पास करीब 20 लाख किट का भंडार होने की भी बात करती है। कंपनी के एक प्रवक्ता कहते हैं, ‘हम ऑर्डर मिलने के 24 घंटे के भीतर पूरे भारत में कहीं भी जांच किट भेज रहे हैं।’
इसी तरह अहमदाबाद स्थित कोसारा डायग्नोस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड भी महीने भर में करीब 3.5 लाख किट की आपूर्ति कर रही है। सिन्बायोटिक्स लिमिटेड और कोडायग्नोस्टिक्स इंक यूएसए के संयुक्त उद्यम के रूप में संचालित कोसारा कंपनी लैबों से मांग बढऩे पर इस आपूर्ति को बढ़ाकर दोगुना करने की क्षमता भी रखती है। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी मोहल साराभाई कहते हैं, ‘हमने अपनी मासिक उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 3.5 लाख किट किया है और आसानी से इसे दोगुना भी कर सकते हैं। लेकिन लैबों से आने वाली मांग बढ़ नहीं रही है। यहां पर देरी किट या पीसीआर मशीन की किल्लत के कारण नहीं बल्कि जांच लैबों में स्टाफ की कमी और अपर्याप्त पीसीआर मशीनों के कारण है।’
साराभाई की मानें तो फिलहाल भारत में पीसीआर मशीनें मोटे तौर पर आयात ही की जाती हैं। फिर भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में पीसीआर मशीनों की किल्लत नहीं है। इसके बजाय आयात का ऑर्डर जारी करने से लेकर पीसीआर मशीन की तैनाती तक और उसके इस्तेमाल लायक प्रशिक्षण देने में लगने वाला समय दूसरी लहर के बीच बढ़ रही आरटी-पीसीआर की मांग से मेल नहीं खाता है।
हालांकि जांच लैब उद्योग ऐसी जांच किट पसंद करता है जिनमें सार्स कोरोनावायरस की पहचान के लिए 3 जीन का इस्तेमाल किया जाता है। एक लैब संचालक कहते हैं, ‘जिन किट में 2 जीन वाली व्यवस्था होती है वे इस वायरस की शिनाख्त कर पाने में नाकाम हो सकते हैं और गलत नतीजे बता सकते हैं।’
कुछ परीक्षण लैब किट विनिर्माताओं से सहमत नजर आती हैं। थायरोकेयर के संस्थापक ए वेलुमणि कहते हैं कि मौजूदा संकट का बड़ा कारण किट न होकर मानवश्रम की किल्लत और जांच प्रक्रिया की क्षमता है। मेट्रोपोलिस का भी कहना है कि उपभोज्य वस्तुओं की थोड़ी कमी रही है।
आरटी-पीसीआर जांच के मौजूदा ढांचे से वायरस के म्यूटेंट रूपों की शिनाख्त नहीं हो पा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक हालिया बयान के मुताबिक, जहां भारत में इस्तेमाल हो रही आरटी-पीसीआर जांच में दो से अधिक जीन होने से वायरस म्यूटेशन का पता चल जाता है वहीं कई राज्य जीनोम सीक्वेंसिंग नमूने साझा नहीं कर रहे हैं। इन नमूनों से देश में कोरोनावायरस की नई किस्मों के बारे में पता चल जाता। इस बीच उद्योग एवं अकादमिक जगत आरटी-पीसीआर जांच प्रक्रिया को तेज करने के तरीके तलाशने में लगे हुए हैं। ऐसा ही एक तरीका यह सुझाया गया है कि इन आयातित आरटी-पीसीआर मशीनों को देश में भी बनाया जाए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खडग़पुर के शोधकर्ताओं ने पिछले साल एक नई कोविड निदान पद्धति कोविरैप को विकसित किया था जिसमें लगी एक कम लागत वाली इकाई आरटी-पीसीआर के उच्च मानदंड के करीब का नतीजा दे रही थी। इस मशीन को बनाने में 5,000 रुपये से भी कम की लागत आनी है। इस मशीन में करीब 500 रुपये की लागत वाली जांच किटों का इस्तेमाल होगा और घंटे भर में नतीजा आ जाएगा।

First Published : April 27, 2021 | 12:22 AM IST