बिना ब्रांड वाले या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों को जीएसटी दायरे में लाने के खिलाफ कारोबारी संगठन लामबंद हो रहे हैं और सरकार से इन पर जीएसटी लगाने के फैसले को वापस लेने के लिए दबाव डाल रहे हैं। कारोबारी संगठनों ने ऐसा न करने पर आंदोलन की धमकी दी है।
अनाज कारोबारी विरोध स्वरूप एक दिन अनाज मंडियां भी बंद कर चुके हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी आज केंद्र सरकार से खाने-पीने की वस्तुओं पर लगाए गए जीएसटी को वापस लेने की मांग की है। हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की 25 किलो/लीटर तक खुदरा बिक्री करने पर ही जीएसटी लगेगा। इससे ज्यादा वजन के पदार्थो की बिक्री पर जीएसटी नहीं लगेगा। जिससे जीएसटी दायरे में आए डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के थोक कारोबारी इस दायरे से बाहर हो गए हैं।
भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महामंत्री हेमंत गुप्ता ने कहा कि जीएसटी परिषद ने गैर ब्रांड पैकिंग वाले गेहूं, आटा, दाल, चावल, गुड, शहद आदि जैसी जरूरी खाद्य वस्तुओं पर 5 फीसदी जीएसटी लगा दिया है, जिसका मध्यवर्गीय कारोबारी और उपभोक्ताओं पर बुरा प्रभाव पडेगा। इसलिए सरकार को इस निर्णय को वापस लेना चाहिए। अगर सरकार ने इन जरूरी खाद्य वस्तुओं को जीएसटी दायरे से बाहर नहीं किया तो मंडल को मजबूरी में आंदोलन करना पडेगा। चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआई) के चेयरमैन बृजेश गोयल ने बताया कि आजादी के बाद से ऐसा पहली बार हो रहा है कि दाल,चावल, आटा अनाज, दही,लस्सी आदि आम आदमी के जरूरत की चीजों पर कर लगा दिया गया है जबकि ये सभी उत्पाद कर मुक्त थे।
सीटीआई ने कारोबारियों की महापंचायत बुलाई है जिसमें दिल्ली के 100 बड़े बाजारों के कारोबारी नेता इसके विरोध में आंदोलन की रणनीति तय करेंगे। कन्फ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि जीएसटी कानून एवं नियमों की नए सिरे से समीक्षा कर एक नया जीएसटी कानून एवं उसके नियम बनाने की मांग को लेकर कैट आगामी 26 जुलाई से एक देशव्यापी आंदोलन करेगा। आवश्यक वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने से कारोबारियों में रोष है और इसका व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा।