वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) बहुत अहम रही है। कठोर लॉकडाउन के दौरान शहरों से विस्थापित होकर गांवों में पहुंचे लाखों लोगों को इसके माध्यम से रोजगार मिला। और पिछले साल जून में लॉकडाउन खत्म किए जाने के बाद भी इस योजना में अस्थायी कामगार आते रहे क्योंकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में वक्त लग रहा था।
अब कोविड-19 की दूसरी लहर में एक बार फिर शहरों में आर्थिक गतिविधियों के पटरी से उतरने का खतरा है। ऐसे में मनरेगा एक बार फिर उन लोगों के लिए जीवन रक्षक बन सकती है, जो दूसरी बार गांव लौटेंगे।
इस योजना के तहत वित्त वर्ष 21 में 11 करोड़ लोगों को काम मिला, जो 2006 में योजना लागू होने के बाद सबसे बड़ी संख्या है। इस दौरान करीब 390 करोड़ कार्यदिवस का सृजन हुआ, यह भी योजना लागू होने के बाद सर्वाधिक है।
इस योजना के तहत वेतन और सामग्रियों के साथ प्रशासनिक खर्च 1.1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रहा। इसमें से 78,000 करोड़ रुपये मजदूरी भुगतान में खर्च हुआ, यह भी रिकॉर्ड है।
आंकड़ों से पता चलता है कि करीब 83 लाख कामों का सृजन इस योजना के तहत वित्त वर्ष 21 में किया गया, जो वित्त वर्ष 20 की तुलना में 11.26 प्रतिशत ज्यादा है।
करीब 78 लाख परिवारों ने इस योजना के तहत 100 दिन काम पूरा किया, जबकि औसत रोजगार 52 दिन का मिला है, जो पिछले कुछ साल में मिले 40-42 दिन औसत काम की तुलना में बहुत ज्यादा है।
केंद्र की योजनाएं न लागू करने के कारण पश्चिम बंगाल की आलोचना होती है, वहां मनरेगा में सबसे ज्यादा काम हुआ। राज्य में इस योजना के तहत 1.18 करोड़ लोगों को काम मिला, जो देश में सर्वाधिक है और इस पर 10,403.13 करोड़ रुपये खर्च हुए, जो उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के बाद तीसरे स्थान पर है।
लेकिन वित्त वर्ष 21 में मनरेगा के मामले में सब कुछ ठीक नहीं रहा। मनरेगा के खर्च में केंद्रीय बजट के संशोधित अनुमान में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई और यह 1,10,829 करोड़ रुपये हो गया, जिसमें 17,370.58 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं हो सका और इसे अगले वित्त वर्ष में ले जाया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मतलब यह है कि मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये बजट आवंटन में से कम से कम 24 प्रतिशत बकाया भुगतान पर खर्च होगा।
14 अप्रैल, 2021 तक लंबित मजदूरी बकाया करीब 1,555.29 करोड़ रुपये (कुल बकाये का करीब 9 प्रतिशत) था, जबकि शेष बकाया सामग्री के भुगतान का है जो करीब 15,444.56 करोड़ रुपये है। इसके अलावा प्रशासनिक खर्च भी लंबित है।
पीपुल्स ऐक् शन फार इंप्लाइमेंट गारंटी ने एक बयान में कहा, ‘पिछले 5 साल के दौरान बजट का 20 प्रतिशत से ज्यादा पहले की देनदारियों के भुगतान में खर्च होता रहा है। अगर हम आने वाले वर्ष में ही इतने की ही कल्पना रें तो करीब 60,000 करोड़ रुपये ही रोजगार सृजन के लिए बचते हैं।’