सरकार ने दवाओं के आयात पर प्रतिपूर्ति शुल्क यानी काउंटरवेलिंग डयूटी में पिछले माह कटौती तो कर दी है लेकिन बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां आयातित दवाओं की कीमतें घटाने में असमर्थ हैं।
इन कंपनियों का कहना है कि जिन दवाओं को वे अपनी विदेश स्थित शीर्ष कंपनियों से मंगाती हैं उनके दामों में जून तक कमी कर पाना संभव नहीं हो पाएगा।इसकी वजह यह बतायी जा रही है कि विदेशी कंपनियों से जो दवाइयां मंगाई जा रही है उनकी खेप का ऑर्डर दिसंबर 2007 में ही दे दिया गया था और प्रतिपूर्ति शुल्क में उसके दो महीने बाद कटौती की गई थी। सरकार ने इस शुल्क में कटौती कर इसे 8 प्रतिशत कर दिया है जो पहले 16 प्रतिशत था।
लगभग सारे इंसुलिन, कैंसर और एड्स की दवाइयां भारत अधिकतम खुदरा मूल्यों (एमआरपी) पर पहुंचती है जिसके पैकेट पर मूल्य सारे कर सहित अंकित रहता है।बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने जो नई दरें तय की हैं उसमें प्रतिपूर्ति शुल्क को हटा कर इसकी गणना की गई है।
इससे दवाइयों की कीमतें 4 से 5 प्रतिशत कम हो गई है। विदेशों से अंकित एमआरपी वाली दवाइयों की जो खेप आती है उसका बाजार 2000 करोड़ रुपये का है। जबकि एनपीपीए चाहती है कि सरकार ने प्रतिपूर्ति शुल्क में जो कटौती की है उसका प्रभाव खुदरा दामों में जल्द से जल्द दिखना चाहिए। इस पर दवा निर्यातक कहते हैं कि दवाओं के दामों में जून तक किसी प्रकार की कमी कर पाना संभव नहीं होगा क्योंकि इससे पहले संशोधित दरों की खेप नहीं आने वाली है।
एक दवा उद्योग विशेषज्ञ ने कहा कि इन दवा कंपनियों को अपनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से तीन चार महीने की खेप का ऑर्डर पहले ही देना होता है और इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बहुत बडा क्षेत्र कवर करना होता है। वैसे भी जहां ये दवाइयां बनती है वहीं इसकी पैकेजिंग और दामों को अंकित किया जाता है। जब तक इन अंकित मूल्यों में संशोधन नहीं होगा तब तक इसे नए दामों पर बेचना काफी मुश्किल होगा।
सूत्रों ने क हा कि एनपीपीए को चाहिए कि इन दवा कंपनियों को इन खेपों को पूरा करने के लिए थोडा और वक्त देना चाहिए ताकि उन्हें इस तरह की समस्याओं से जूझना नहीं पडे। वैसे भी जिन पैकेटों पर एमआरपी अंकित हो चुके हैं उनके दामों में किसी प्रकार की कमी कर पाना काफी मुश्किल है।
इस स्थिति में दवा कंपनियां चाहती है कि उपभोक्ता को प्रतिपूर्ति शुल्क कम होने के कारण दामों में रियायत जरूर मिलनी चाहिए। हालांकि अंकित एमआरपी में तो कुछ नहीं किया जा सकता है लेकिन उपभोक्ता अथॉरिटी को चाहिए कि वे एक खुदरा लिस्ट जारी करें जिसमें संशोधित कीमतों का जिक्र हो। वैसी कंपनियां जो विदेशी कंपनियों से जुड़ी हैं, इस मुद्दे को हल करने के लिए एनपीपीए से सीधे संपर्क बना रही है।
दवा कंपनियों का दर्द
एनपीपीए चाहता है कि सरकार ने प्रतिपूर्ति शुल्क में जो कटौती की है उसका प्रभाव खुदरा दामों में जल्द से जल्द दिखना चाहिए। इस पर दवा निर्यातक कहते हैं कि दवाओं के दामों में जून तक किसी प्रकार की कमी कर पाना संभव नहीं होगा।