गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजित राणे द्वारा कोरोना संक्रमण के चलते मौतों में लगातार हो रही वृद्धि को रोकने के लिए सभी वयस्कों को आइवरमैक्टिन दवा देने की घोषणा के बाद इस दवाई की सुरक्षा एवं असर को लेकर बहस छिड़ गई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ ही कई वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों ने कोरोना के लिए आइवरमैक्टिन के उपयोग के खिलाफ अपनी बात रखी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, ‘नए वायरसों एवं उनमें आने वाले बदलावों के खिलाफ किसी भी दवाई का उपयोग करते समय सुरक्षा एवं असर बहुत अहम होते हैं। डब्ल्यूएचओ चिकित्सकीय परीक्षणों के अलावा कोविड-19 के लिए आइवरमैक्टिन का उपयोग नहीं करने की सिफारिश करता है।’
राणे ने कहा था कि ब्रिटेन, इटली, स्पेन और जापान के विशेषज्ञ पैनल ने आइवरमैक्टिन के साथ इलाज किए गए कोविड-19 रोगियों में ठीक होने की दर, मृत्यु दर में कमी और वायरस के खत्म होने की दर में बड़ा बदलाव देखा गया है। उन्होंने कहा, ‘यह कोविड-19 संक्रमण को नहीं रोकती है। हालांकि सभी को इस बीमारी को गंभीरता से लेना चाहिए और सुरक्षा की झूठी भावना नहीं होनी चाहिए। हमें सभी एहतियाती उपायों का सख्ती के साथ पालन करना चाहिए।’ अमेरिका के एक गैर-लाभकारी संगठन, फ्रंटलाइन कोविड क्रिटिकल केयर अलायंस ने भी सिफारिश की है कि वर्तमान संकट के समय में सामान्य आबादी के बीच कोरोना के फैलाव को कम करने के लिए वयस्कों के लिए आइवरमैक्टिन की साप्ताहिक तौर पर 0.2एमजी/किग्रा (60 किग्रा के व्यक्ति के लिए 12एमजी) की खुराक दी जानी चाहिए। संस्था ने कहा, ‘हम मानते हैं कि यह हजारों लोगों की जान बचाएगा और लाखों लोगों की पीड़ा को कम करेगा।’ हालांकि इस दवा के एक निर्माता, मर्क ने अपने एक अध्ययन में पाया कि इस दवाई का कोविड -19 के खिलाफ संभावित चिकित्सीय प्रभाव का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
अध्ययन में यह भी कहा गया कि कोविड-19 रोग के रोगियों में इसके चिकित्सकीय परीक्षण या चिकित्सकीय प्रभाव को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं था। कंपनी ने ‘अधिकांश अध्ययनों में सुरक्षा डेटा की कमी’ पाई।
भारत में चिकित्सकों ने इसके सस्ता होने और इसका कोई बड़ा दुष्प्रभाव नहीं दिखने के कारण सुझाया है। हालांकि देश के चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ इस बात से सहमत थे कि दवा का उपयोग केवल हल्के मामलों में किया जा सकता है लेकिन इससे मौतों को नहीं रोका जा सकता है। सिप्ला, सन फार्मास्यूटिकल्स, जुवेंटस जैसी लोकप्रिय कंपनियां बाजार में आइवरमैक्टिन ब्रांड उपलब्ध कराती हैं। आइवरमैक्टिन, एफडीए द्वारा अनुमोदित परजीवी संक्रमण का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाई है लेकिन कोरोना संक्रमण के मामलों में इसके इस्तेमाल के चलते दवाई की बिक्री 25 गुना अधिक हो चुकी है। कोविड-19 रोगियों का इलाज करने वाले चिकित्सकों ने यह भी बताया कि एक इलाज के तौर पर इस दवाई की मात्रा भी निश्चित नहीं है। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक प्रवीण गुप्ता कहते हैं, ‘चिकित्सकीय अध्ययन में आइवरमैक्टिन के उपयोग के कारण रोगियों पर कोई बड़ा प्रभाव या अस्पताल में भर्ती होने से राहत जैसे किसी निर्णायक असर के सबूत नहीं मिले हैं। इसका उपयोग इस उम्मीद में किया जा रहा है कि दवाई कुछ काम करेगी।’