अंतरराष्ट्रीय

आसियान से व्यापार समझौते पर भारत कर रहा गहन चर्चा

भारत के लिए चिंता की एक और बात यह भी है कि व्यापार संतुलन आसियान देशों के पक्ष में है। इसका मतलब आसियान देशों से आयात तेजी से बढ़ रहा है और भारत से निर्यात उतना नहीं बढ़ रहा।

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श्रेया नंदी   
Last Updated- March 07, 2024 | 9:57 PM IST

भारत और दक्षिण एशियाई देशों के संघ आसियान के बीच व्यापार समझौते की समीक्षा में आयातित माल के लिए मूल्यवर्धन मानकों, उत्पादों के लिए बाजार तक व्यापक पहुंच और गैर शुल्क बाधाओं को सुव्यवस्थित करने पर गहन चर्चा हो सकती है। इस मामले से जुड़े लोगों ने यह जानकारी दी है।

भारत और आसियान के बीच व्यापार के लिए 2010 से समझौता है। दोनों पक्षों ने मौजूदा समझौते पर बातचीत और उसकी समीक्षा अगले साल तक पूरी करने का लक्ष्य रखा है, जिससे यह समझौता बदलती जरूरतों के मुताबिक ज्यादा आधुनिक और उन्नत हो सके। जानकारों ने कहा कि इस समझौते पर एक दशक से ज्यादा पहले हस्ताक्षर हुए थे, ऐसे में ‘ओरिजिन के नियमों’ को लेकर विस्तार से ब्योरा नहीं है।

आसियान देशों में ब्रुनेई दारुस्मलाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।

जानकारों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हम उत्पाद केंद्रित नियमों, कुछ उत्पादों की बाजार तक व्यापक पहुंच के साथ गैर शुल्क बाधाओं को खत्म करने जैसे मसलों पर आसियान देशों के साथ बात कर रहे हैं। वे (आसियान देश) भी इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स जैसे सामान के मामले में उदार उत्पाद केंद्रित नियमों (पीएसआर) की मांग कर रहे हैं।’

उन्होंने कहा, ‘हम संतुलन पर जोर देंगे।’ किसी भी मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में उन आयातित वस्तुओं पर शुल्क छूट दी जाती है, जिन्हें निर्यात करने वाले देश में तैयार किया जाता है। इसके पीछे व्यापक विचार यह है कि किसी तीसरे देश में उत्पादित वस्तुओं को उस देश के माध्यम से भारत भेजने जैसी स्थिति से बचा जा सके।

सामान्यतया इसका निर्धारण ओरिजिन मानकों के नियमों के तहत विनिर्माण के समय किए गए मूल्यवर्धन के प्रतिशत से किया जाता है।

भारत द्वारा किए गए ज्यादातर व्यापार समझौतों में सभी उत्पादित वस्तुओं के लिए एक नियम है।

बहरहाल ज्यादातर नए व्यापार समझौतों में भारत ने उत्पाद के ओरिजिन को लेकर उत्पाद केंद्रित नियमों पर भी बात की है। इसमें सावधानी से मूल्यवर्धन के मानकों को लेकर लचीले रुख की पेशकश की गई है।

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रियर) में प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी ने कहा कि वैश्विक मूल्यवर्धन के दौर में हर देश पूरे मूल्यवर्धन में थोड़ा अंशदान कर रहा है। खासकर मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में ऐसा हो रहा है, जहां ज्यादा मूल्यवर्धन के मानक संभवतः काम नहीं करते।

उन्होंने कहा, ‘उत्पाद विशेष के लिए मूल्यवर्धन मानक तय करने के लिए एचएस कोड के मुताबिक मूल्य श्रृंखला पर शोध व मैपिंग की जरूरत है। उदाहरण के लिए अगर ढेर सारे ओरिजिन के नियम बनाए जाएंगे और एफटीए के तहत छूट कम मिलेगी तो उद्योग जगत गैर एफटीए मार्ग को प्राथमिकता दे सकता है, जिससे कि प्रक्रिया संबंधी औपचारिकताओं से बचा जा सके। इससे एफटीए का इस्तेमाल प्रभावित हो सकता है।’

भारत के लिए चिंता की एक और बात यह भी है कि व्यापार संतुलन आसियान देशों के पक्ष में है। इसका मतलब यह है कि आसियान देशों से आयात तेजी से बढ़ रहा है और उसकी तुलना में भारत से निर्यात नहीं बढ़ रहा है। नीति निर्माता यह संभावना भी तलाशेंगे कि व्यापार समझौते के तहत भारत से तीसरे देशों को सामान भेजा जा सके।

वित्त वर्ष 2023 में आसियान देशो को भारत से निर्यात बढ़कर 44 अरब डॉलर हो गया, जो एक साल पहले 42.32 अरब डॉलर था। बहरहाल आयात तेजी से बढ़ा है और यह वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 87.57 अरब डॉलर हो गया, जो वित्त वर्ष 2022 में 68 अरब डॉलर था।

वित्त वर्ष 2023 में व्यापार घाटा बढ़कर 43.57 अरब डॉलर हो गया है, जो एक साल पहले 25.76 अरब डॉलर था। यह वित्त वर्ष 2011 में महज 5 अरब डॉलर था।

First Published : March 7, 2024 | 9:57 PM IST