प्रतीकात्मक तस्वीर
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के प्रति संघ परिवार से जुड़े संगठन आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि अमेरिका जेनेटिकली-मॉडिफाइड (जीएम) फसलों, डेरी उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों और डेटा स्थानीयकरण पर बाजार पहुंच हासिल करने के बारे में अड़ियल रुख अख्तियार करता है तो यह समझौता होने की संभावना नहीं है। भारतीय किसान संघ (बीकेएस), लघु उद्योग भारती और स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) जैसे संघ परिवार के सहयोगियों ने संकेत दिया है कि डेरी उत्पादों सहित कृषि क्षेत्र में अमेरिका को रियायतें देने से देश की खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ेगा।
संघ परिवार ने अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम द्वारा एक विधेयक पेश करने के प्रयासों की ओर भी इशारा किया है जो रूसी तेल का आयात जारी रखने के लिए भारत और चीन पर भारी आर्थिक जुर्माना लगाने का प्रस्ताव करता है। इस विधेयक में यूक्रेन का समर्थन नहीं करने वाले देशों से आयात पर 500 प्रतिशत शुल्क लगाने का प्रस्ताव किया जा सकता है।
एसजेएम के नैशनल को-कन्वीनर अश्विनी महाजन ने सोमवार को एक्स पर पोस्ट किया, ‘अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप चाहे कुछ भी कहें, अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नहीं हो सकता, क्योंकि अमेरिका जो मांग रहा है, वह भारत नहीं दे सकता।’ महाजन ने कहा कि भारत अमेरिका की जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों और अन्य कृषि उत्पादों को बाजार में पहुंच देने पर रियायत नहीं दे सकता है।
महाजन ने कहा, ‘अमेरिका की जिद के आगे देश के कृषि और छोटे उद्योगों को कैसे कुर्बान किया जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि भारत मांसाहार, दूध और डेरी की अनुमति नहीं दे सकता है, उन्होंने आगे कहा कि ऐसा कोई एग्रीमेंट नहीं हो सकता है जो भारत के किसानों और डेरी के हितों से समझौता करता हो। बिजनेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए महाजन ने कहा कि एसजेएम ने रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) का भी विरोध किया था, क्योंकि इससे भारत के किसानों के हितों से समझौता होता। उन्होंने सवाल किया, ‘अमेरिका सरकार अपने किसानों को जो सब्सिडी देती है, उसे देखते हुए भारत के किसान अमेरिका सरकार के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं होंगे। क्या होगा अगर भारत के किसान उत्पादन बंद कर दें? क्या कोई और देश है जो 1.45 अरब भारतीयों को खिला सकता है?’
इस महीने की शुरुआत में भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने नीति आयोग द्वारा भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार को बढ़ाने की सिफारिश करने वाले अपने वर्किंग पेपर की आलोचना की थी। बीकेएस ने नीति आयोग पर अमेरिका के साथ टैरिफ वॉर में घुटने टेकने का आरोप लगाया। रविवार को एक्स पर एक पोस्ट में कांग्रेस के महासचिव और संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने आश्चर्य जताया कि नीति आयोग का ‘प्रमोटिंग इंडिया-यूएस एग्रीकल्चर ट्रेड अंडर द न्यू यूएस ट्रेड रेजीम’ शीर्षक वाला वर्किंग पेपर 30 मई को जारी किया गया था। लेकिन अब उसे वापस क्यों ले लिया गया है। उन्होंने सवाल किया कि इसकी रिपोर्टिंग हुई और कुछ क्रिटिकल कमेंट्स भी आए। अब वर्किंग पेपर आयोग की वेबसाइट से गायब हो गया है। कथित तौर पर इसे वापस ले लिया गया है। आश्चर्य है क्यों?
बीकेएस के महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने कहा कि नीति आयोग ने वर्किंग पेपर में अपनी सिफारिशों में कहा है कि भारत को प्रस्तावित भारत-अमेरिका बीटीए के तहत चावल, मिर्च, सोयाबीन तेल, झींगा, चाय, कॉफी, डेरी प्रोडक्ट्स, पोल्ट्री, सेब, बादाम, पिस्ता, मक्का और जीएम सोया प्रोडक्ट्स के लिए अपना बाजार खोलना चाहिए। मिश्रा ने कहा कि ऐसा करने से कृषि क्षेत्र पर निर्भर 70 करोड़ भारतीयों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है। बीकेएस ने कहा कि नीति आयोग अमेरिका के साथ टैरिफ वॉर में घुटने टेक रहा है।