आजाद भारत के अब तक के इतिहास में टी वी सोमनाथन मात्र दूसरे ऐसे वित्त सचिव हैं जो कैबिनेट सचिव बनेंगे। कैबिनेट सचिव यानी अफसरशाही का सबसे वरिष्ठ और सबसे ताकतवर पद। इससे पहले फरवरी 1985 में पी के कौल वित्त सचिव से कैबिनेट सचिव बनने वाले पहले अफसरशाह थे। यानी एक अन्य वित्त सचिव को कैबिनेट सचिवालय के मुखिया के इस पद तक पहुंचने में तकरीबन चार दशक का वक्त लगा है।
ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि बीते सालों में अपना कार्यकाल पूरा करने वाले वित्त सचिव आखिर कहां गुम हो गए? उनमें से एक तो वित्त मंत्री भी बने (हम यहां एच एम पटेल का जिक्र कर रहे हैं, न कि मनमोहन सिंह का जो आर्थिक मामलों के सचिव थे) जबकि कुछ अन्य निर्वाचन आयोग या वित्त आयोग में चले गए। एक वित्त सचिव ऐसे भी रहे जिन्होंने पहले योजना आयोग के सदस्य के रूप में काम किया और फिर उसके उपाध्यक्ष के रूप में। परंतु सबसे अधिक वित्त सचिवों ने यानी करीब छह लोगों ने मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभाला।
ऐसे में जानकार हलकों में यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर सोमनाथन को कुछ और महीनों तक उनके मौजूदा पद पर बनाए रखकर रिजर्व बैंक का अगला गवर्नर क्यों नहीं बनाया गया? उनके अकादमिक बैकग्राउंड को देखते हुए अटकलें तो यही थीं कि वह मुंबई जरूर जाएंगे। उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि हासिल की है, वह विश्व बैंक में दो कार्यकालों के दौरान नौ वर्ष का समय बिता चुके हैं और दो साल तक प्रधानमंत्री कार्यालय में आर्थिक नीति निर्माण से जुड़े रहे हैं। उनके एक सक्षम और विश्वसनीय अफसरशाह होने के साथ-साथ उनके छह पूर्ववर्तियों द्वारा केंद्रीय बैंक का दायित्व संभालने की बात भी इसी ओर संकेत कर रही थी।
रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर शक्तिकांत दास ने दिसंबर 2018 में तीन साल के लिए पद संभाला था और उनकी विस्तारित कार्यावधि चार महीने के भीतर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में इस समय सोमनाथन को कैबिनेट सचिव के रूप में नामित करना दास के भविष्य के साथ-साथ देश के सुधारों के लिए भी मायने रखता है।
सोमनाथन एक ऐसे अफसरशाह हैं जिन्होंने अपनी अकादमिक योग्यता का इस्तेमाल सरकार की आर्थिक नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में किया है। उन्हें शीर्ष अफसरशाह बनाया जाना दरअसल एक ऐसे लक्ष्य का पूरा होना है जिसका सपना तमाम अफसरशाहों की तरह उन्होंने भी ताउम्र देखा होगा। उनकी पदोन्नति में उन ख्वाहिशों का भी योगदान होगा जो उन्होंने देश का शीर्ष अफसरशाह बनने को लेकर पाली होंगी।
बीते वर्षों के दौरान सोमनाथन ने एक ऐेसे अफसरशाह के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित की जो विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ समान सहजता और प्रभाव के साथ काम कर सकते हैं। इस दौरान उन्होंने कभी सच्चाई के बुनियादी मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया। आश्चर्य नहीं कि दिसंबर 2019 में जब उन्होंने व्यय सचिव के रूप में वित्त मंत्रालय में कदम रखा तब तक उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आर्थिक नीति निर्माण और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों एम करुणानिधि और ई के पलनिस्वामी के लिए काम करने का अनुभव हासिल हो चुका था।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के साथ उनका जुड़ाव कुछ उथलपुथल के बीच ही हुआ। जुलाई 2019-20 में बजट पेश होने के कुछ ही सप्ताह के भीतर तत्कालीन वित्त सचिव सुभाष सी गर्ग को तत्कालीन वित्त मंत्री के साथ कथित मतभेदों के कारण विद्युत मंत्रालय भेज दिया गया। वित्त मंत्रालय में एक नई टीम बन रही थी और सोमनाथन जल्दी ही उसकी धुरी बन गए।
जब महामारी आई तो सोमनाथन ने सरकार की पूंजीगत-व्यय रणनीति को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई ताकि चुनौतियों से निपटा जा सके। व्यय में लीकेज रोकने पर ध्यान देने और सरकार के राजकोषीय घाटे को वास्तविक और ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए बजट से इतर उधारी को कम करने पर जोर देने के साथ ही सोमनाथन राजकोषीय विवेक और जिम्मेदारी के मजबूत समर्थक के रूप में उभरे।
कर्मचारियों के एक तबके और कुछ राज्य सरकारों की चिंताओं को दूर करने के लिए नई पेंशन योजना में सुधार पेश करने वाली समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने समस्या को लगभग हल करने में अहम भूमिका निभाई। कैबिनेट सचिव के रूप में सरकार में सोमनाथन की भूमिका थोड़ी अलग होगी। इस दौरान वरीयता में उनका दर्जा वित्त सचिव के 23वें स्थान से सुधरकर अटॉर्नी जनरल के साथ 11वें स्थान पर हो जाएगा। आशा है कि नए गृह सचिव की घोषणा जल्दी की जाएगी ताकि नए कैबिनेट सचिव के गृह सचिव से जूनियर होने की स्थिति बनने से रोकी जा सके।
वर्ष 2022 में सोमनाथन ने गुलजार नटराजन के साथ मिलकर शासन पर एक चर्चित किताब लिखी जिसका शीर्षक है- ‘स्टेट कैपेबिलिटी इन इंडिया,’ जो ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित हुई। पुस्तक में देश के सिविल सेवा ढांचे को मजबूत बनाने को लेकर कई शानदार सुझाव तो हैं ही, साथ ही अफसरशाहों के स्थानांतरण की नीति में बदलाव तथा अफसरशाहों को बेहतर नीति निर्माता बनाने को लेकर भी अहम राय दी गई है। यह माना जा सकता है कि नए कैबिनेट सचिव इनमें से कई सुझावों को अमल में लाएंगे।