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सुप्रीम कोर्ट ने लगाई बुलडोजर पर रोक

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि प्रभावित व्यक्ति नोटिस को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है तो उसे मकान खाली करने के लिए समय दिया जाना चाहिए।

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- November 13, 2024 | 10:37 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी की संपत्ति को इस आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता कि उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि आपराधिक है अथवा उसे किसी मामले में आरोपी या दोषी पाया गया है। हाल में चलन में आए ‘बुलडोजर न्याय’ की तुलना अराजकता की स्थिति से करते हुए अदालत ने देशभर के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए। साथ ही सख्त टिप्पणी करते हुए हिदायत दी, ‘अधिकारी जज की भूमिका नहीं निभा सकते।’

नई व्यवस्था के अनुसार घर गिराने से पहले प्रभावित व्यक्ति को नोटिस दिया जाएगा और जवाब देने के लिए उसे 15 दिन का वक्त देना होगा। अदालत ने कहा कि संबंधित पक्ष को नोटिस का जवाब देने अथवा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को उपयुक्त मंच पर चुनौती देने के लिए कुछ समय अवश्य देना चाहिए।

सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट कहा कि यदि अधिकारी तय दिशानिर्देशों का पालन नहीं करते हैं तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा और उनके खिलाफ मानहानि की कार्यवाही शुरू की जा सकती है। साथ ही गिराए गए घर या संपत्ति को दोबारा बनाने के लिए रकम संबंधित अधिकारियों से वसूली जाएगी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि प्रभावित व्यक्ति नोटिस को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है तो उसे मकान खाली करने के लिए समय दिया जाना चाहिए। यह अच्छी बात नहीं है कि किसी को रातोरात घर खाली करने के लिए कहा जाए और बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया जाए। यदि प्रभावितों को तोड़ा जाने वाला घर खाली करने के लिए कुछ समय दे दिया जाएगा तो इससे संबंधित अधिकारियों के सिर पर आसमान नहीं टूट पड़ेगा।

न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना नागरिकों की संपत्ति को ध्वस्त कर उन्हें दंडित नहीं कर सकते हैं। न्यायालय ने ऐसी ज्यादतियों को ‘मनमाना’ करार दिया और कहा कि इससे सख्ती से निपटे जाने की जरूरत है।

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन के पीठ ने अपने 95 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘यदि प्राधिकारी न्यायाधीश की तरह काम करते हैं और किसी नागरिक पर इस आधार पर मकान ढहाने का दंड लगाते हैं कि वह एक आरोपी है तो यह ‘शक्तियों के बंटवारे’ के सिद्धांत का उल्लंघन है।’

इसमें कहा गया है, ‘जब प्राधिकारी नैसर्गिक न्याय के मूल सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहते हैं और वाजिब प्रक्रिया के सिद्धांत का पालन किए बिना काम करते हैं, तो बुलडोजर द्वारा इमारत को ध्वस्त करने का भयावह दृश्य एक अराजक स्थिति की याद दिलाता है, जहां ‘ताकतवर ही जीतेगा।’

पीठ ने कहा कि इस तरह की मनमानी कार्रवाई के लिए संविधान में कोई जगह नहीं है, जो कानून के शासन की बुनियाद पर टिका हुआ है। पीठ ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेल पटरी या नदी या जलाशय जैसे किसी सार्वजनिक स्थल पर कोई अनधिकृत ढांचा खड़ा कर लिया गया है। उन मामलों में भी ये दिशानिर्देश प्रभावी नहीं होंगे, जहां न्यायालय ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है।

पीठ ने कहा, ‘कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना (संपत्ति) ढहाने की कोई भी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। इस नोटिस का जवाब स्थानीय नगर निकाय कानून के अनुरूप निर्धारित अवधि या नोटिस तामील होने के 15 दिन के भीतर देना होगा।’ शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि संवैधानिक लोकाचार और मूल्य शक्ति के इस तरह के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते और इस तरह के दुस्साहस को अदालत द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा, ‘प्राधिकारी न्यायाधीश बनकर यह निर्णय नहीं ले सकते कि आरोपी व्यक्ति दोषी है और इसलिए उसकी आवासीय/व्यावसायिक संपत्ति/संपत्तियों को ध्वस्त कर उसे दंडित किया जाए। अधिकारी का ऐसा कृत्य उसकी सीमाओं का उल्लंघन होगा।’

अदालत ने कहा कि राज्य के अधिकारियों की ओर से शक्तियों के मनमाने इस्तेमाल के संबंध में नागरिकों के मन में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कुछ निर्देश जारी करना आवश्यक समझते हैं। अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी ‘डिक्री’ या आदेश पारित करने का अधिकार देता है।

पूरे परिवार को ‘सामूहिक दंड’ देने के समान

न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी मकान को सिर्फ इसलिए ध्वस्त करना कि उसमें रहने वाला व्यक्ति आपराधिक मामले में आरोपी है या दोषी करार दिया गया है, तो यह पूरे परिवार को ‘सामूहिक दंड’ देने के समान होगा। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपने महत्त्वपूर्ण फैसले में ये टिप्पणियां कीं। इस फैसले में संपत्तियों को ढहाने पर देशभर के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं। न्यायालय ने कहा कि जब किसी विशेष ढांचे को अचानक ध्वस्त करने के लिए चुना जाता है और उसी क्षेत्र में स्थित अन्य समान ढांचों को छुआ तक नहीं जाता, तो ‘बहुत ही दुर्भावना से ऐसा किया जाता होगा।’

पीठ ने कहा कि मकान का निर्माण सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का एक पहलू है और एक आम नागरिक के लिए यह अक्सर वर्षों की कड़ी मेहनत, सपनों और आकांक्षाओं की परिणति होती है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हमारे विचार में, यदि किसी मकान को गिराने की अनुमति दी जाती है, जिसमें एक परिवार के कई लोग या कुछ परिवार रहते हैं, केवल इस आधार पर कि ऐसे घर में रहने वाला एक व्यक्ति या तो आरोपी है या आपराधिक मामले में दोषी करार दिया गया है, तो यह पूरे परिवार या ऐसे भवन में रहने वाले परिवारों को सामूहिक दंड देने के समान होगा।’ न्यायालय ने कहा कि संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र कभी भी इसकी अनुमति नहीं देगा।

First Published : November 13, 2024 | 10:27 PM IST