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Sikkim Flash Floods: तीस्ता की अनदेखी का नतीजा है यह आपदा

तीस्ता 3 पनबिजली परियोजना की परिकल्पना 2004 में की गई थी। पहले इसकी अनुमानित लागत 5,000 करोड़ रुपये थी।

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श्रेया जय   
शाइन जेकब   
Last Updated- October 05, 2023 | 10:53 PM IST

हाल में करीब 13,000 करोड़ रुपये की लागत से बनी तीस्ता-3 पनबिजली परियोजना का 60 मीटर ऊंचा बांध महज 10 सेकंड में अचानक आए बाढ़ के पानी में पूरी तरह बह गया। यह बाढ़ दक्षिण लोनक हिमनद झील में बादल फटने की वजह से आई।

दिलचस्प बात यह है कि इस परियोजना का काम पूरा होने में दो दशक लग गए और यह निजी कंपनियों के हाथों से राज्य सरकार के जिम्मे आई और अब इस पर सार्वजनिक-निजी संयुक्त उद्यम का ठप्पा है। फिलहाल इसका भविष्य अनिश्चित है और इसकी व्यवहार्यता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

इस घटना से सिक्किम के आसपास के हिमनद क्षेत्रों के पारितंत्र की संवेदनशीलता, मौसम में तीव्र बदलाव से जुड़ी घटनाओं की आशंका, बुनियादी ढांचे का तेजी से निर्माण और जलवायु अनुकूल प्रयासों की कमी के विषय में भी बड़े सवाल उभरे हैं।

तीस्ता नदी राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-10) 10 के कुछ हिस्सों को भी बहा ले गई है, जिससे गंगटोक और सिक्किम के बाकी हिस्से से शेष देश का संपर्क प्रभावित हुआ है। एनएच-10 पिछले महीने भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ में पहले ही क्षतिग्रस्त हो चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कम से कम 14 पुल ढह गए हैं।

इस घटना की मुख्य वजह हिमनद झील पर बादल फटने से आई अचानक बाढ़ बताई जा रही है। दक्षिण लोनक झील सिक्किम के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में समुद्र तल से 17,000 फुट की ऊंचाई पर है।

लोनक हिमनद के पिघलने से बनने वाली झील को भूवैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने पहले ही अतिसंवेदनशील बताया था और इसे खतरनाक झीलों में से एक माना जाता है। हिमनद वाले झील पर बादल फटने से अचानक बाढ़ (जीएलओएफ) वाली आपदाजनक स्थिति बनती है। ऐसा इस वजह से होता है क्योंकि प्राकृतिक रूप से बने हिम की दीवारें झील के पानी को नहीं रोक सकती हैं। ऐसी बाढ़ की स्थिति कई कारणों से देखी जा सकती है चाहे वह भूकंप हो या भूस्खलन की स्थिति हो।

अब तक भारत के हिमालय क्षेत्र में हिमनद वाले झील से अचानक बाढ़ की घटनाएं देखी गई हैं जिसमें 2013 में केदारनाथ त्रासदी से लेकर 2021 में चमोली आपदा तक शामिल है। हालांकि ऐसा पहली बार हुआ है, जब देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर हिमनद झील से अचानक आई बाढ़ की घटना देखी गई है। इसमें अहम बात यह भी है कि वैज्ञानिक चेतावनियों की उपेक्षा की गई है।

पिछले कुछ वर्षों में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि सिक्किम में हिमनद झीलों का आकार बढ़ रहा है। वर्ष 2012 में सिक्किम सरकार ने सी-डैक से एक अध्ययन कराया जिसमें यह बात सामने आई कि वर्ष 1965 और 1989 के बीच लोनक और दक्षिण लोनक हिमनद झीलों के क्षेत्र में दोगुनी वृद्धि देखी गई है। इस अध्ययन में इन दोनों को संभावित जीएलओएफ के केंद्र के तौर पर सूचीबद्ध किया गया था।

वर्ष 2021 में जियोमॉर्फोलॉजी जर्नल द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया, ‘ऊंचे पर्वतों वाले परिवर्तनशील माहौल’ में बड़ी मात्रा में पानी वाले इस झील में बादलों के फटने से अचानक बाढ़ जैसी स्थिति के लिए जोखिम प्रबंधन को प्राथमिकता देना जरूरी है।‘

इस शोध रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जीएलओएफ से बन रही खतरे की स्थिति की तीव्रता का आकलन करने पर अंदाजा मिलता है कि सबसे बड़े शहर चुंगथांग सहित घाटी की कई बस्तियां बेहद जोखिम वाली स्थिति में हैं।’

शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015 में चुंगथांग में पनबिजली के लिए बांध निर्माण के कारण, दक्षिण लोनक और घाटी की अन्य महत्त्वपूर्ण झीलों में जीएलओएफ जैसी स्थिति के लिए जोखिम का समाधान निकालना बेहद महत्वपूर्ण है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कानूनी और जलवायु अनुकूल मुद्दों पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। आईपीई-ग्लोबल के क्षेत्र प्रमुख (जलवायु परिवर्तन) और आईपीसीसी की छठे मूल्यांकन रिपोर्ट के विशेषज्ञ समीक्षक अविनाश मोहंती ने कहा, ‘अगर 20 साल पहले बना बांध जीएलओएफ घटनाओं के साथ-साथ लगातार और अनियमित होने वाली बारिश का सामना नहीं कर सकता है तब बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से जुड़ी मौजूदा कानूनी और जलवायु अनुकूल स्थितियों के आकलन पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।‘

चुनौतियां नहीं हुईं कम

तीस्ता 3 पनबिजली परियोजना की परिकल्पना 2004 में की गई थी। पहले इसकी अनुमानित लागत 5,000 करोड़ रुपये थी, लेकिन देर और इसमें कई हिस्सेदारी की बिक्री के कारण लागत बढ़ाकर 13,000 करोड़ रुपये तक कर दी गई। यह परियोजना मूल रूप से हैदराबाद की एथेना एडवाइजर्स को आवंटित की गई थी, जिनकी आंध्र प्रदेश जेनको के साथ साझेदारी थी।

इसके बाद इसने तत्कालीन सिक्किम राज्य सरकार के साथ एक संयुक्त उद्यम भी बनाया और बिना किसी निविदा के एक समझौता ज्ञापन के जरिये परियोजना हासिल कर ली। इस परियोजना को पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करने और पनबिजली में बिना अनुभव वाली कंपनी को यह जिम्मेदारी सौंपने के लिए काफी आलोचना भी हुई। हालांकि परियोजना का निर्माण धीरे-धीरे आगे बढ़ा लेकिन 2011 में इस क्षेत्र में भूकंप आने के बाद काम रुक गया।

लगभग एक दशक के लंबे विवाद के बाद सिक्किम सरकार ने आखिरकार 2012 में 290 करोड़ रुपये में परियोजना में 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी।

वर्ष 2020 में हैदराबाद की एक अन्य स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र की कंपनी ग्रीनको ग्रुप ने परियोजना में 35 प्रतिशत हिस्सेदारी ली। ग्रीनको के संस्थापक महेश कोल्ली ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को फोन पर बताया, ‘फिलहाल हमारा ध्यान सिर्फ बचाव कार्यों पर है। हमें अभी इसके कारणों का आकलन करना है। हमारे सभी कर्मचारी सुरक्षित हैं।’ उन्होंने संकेत दिया कि बांध में पानी का बहाव काफी अधिक था।

तीस्ता नदी पर बांधों के निर्माण के खिलाफ एक स्थानीय समुदाय लेप्चा वर्ष 2002-03 से ही तीस्ता के प्रभावित नागरिक (एक्ट) के बैनर तले विरोध प्रदर्शन कर रहा है। एसीटी और सिक्किम लेप्चा एसोसिएशन के एक नेता त्सेतेन लेप्चा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम दो दशक से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे थे और आज हमें यह आपदा देखने को मिली है। निचले इलाकों में बचाव कार्य समय पर हुआ जिससे कई लोगों की जान बचाने में मदद मिली है। हम ऊपरी इलाकों में तीव्र बहाव से होने वाले नुकसान के बारे में निश्चित तौर पर अभी कुछ नहीं कह सकते हैं।’

First Published : October 5, 2023 | 10:53 PM IST