सरकार पिछले साल घोषित EV पॉलिसी के तहत ग्लोबल कंपनियों को आसानी से निवेश पात्रता मानदंडों ( investment eligibility criteria) को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क (charging infrastructure) बनाने में किए गए निवेश को भी शामिल करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। वर्तमान पॉलिसी के तहत, विदेशी कंपनियों को भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए तीन साल में $500 मिलियन का निवेश करना जरूरी था। इसके बदले में, उन्हें देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के आयात (imports) पर रियायती कस्टम ड्यूटी (Concessional Duty) का लाभ मिलने वाला था।
मार्च 2024 में घोषित इस पॉलिसी को भारत में Tesla को आकर्षित करने की कोशिश के रूप में देखा गया था। हालांकि, VinFast, Jaguar Land Rover (Tata), और BMW जैसी कंपनियां भी इस पॉलिसी में रुचि दिखा रही थीं। लेकिन, यह पॉलिसी ग्लोबल ऑटोमोबाइल कंपनियों को लुभाने में असफल रही, जिसके बाद भारी उद्योग मंत्रालय (Ministry of Heavy Industries) ने उद्योग जगत के हितधारकों के साथ नए सिरे से चर्चा शुरू की है।
कई उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि EV प्लांट में पहले से किए गए निवेश को भी इस पॉलिसी के तहत शामिल किया जाना चाहिए। मौजूदा नियम पहले से निवेश कर चुकी कंपनियों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहे हैं, जबकि वे कंपनियां, जिन्होंने भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में अब तक कोई निवेश नहीं किया, उन्हें लाभ मिल रहा है।
सरकार की EV पॉलिसी के तहत, कंपनियों को तीन साल के भीतर भारत में अपना मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाना होगा। इसके अलावा, ऑपरेशन शुरू करने के पांच साल के अंदर 50% लोकलाइजेशन (स्थानीय उत्पादन) हासिल करना जरूरी होगा। इसके अलावा, भारत में आयात किए जाने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की संख्या पर भी सीमा तय की गई थी।
इसके बदले में, सरकार ने EV निर्माताओं के लिए आयात शुल्क को घटाकर 15% करने पर सहमति दी थी। पहले, $35,000 या उससे अधिक की लागत, बीमा और मालभाड़ा (CIF) मूल्य वाले वाहनों पर 70% से 100% तक कस्टम ड्यूटी लगती थी। यह रियायत मंजूरी मिलने के बाद पांच वर्षों तक लागू रहने वाली थी।
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एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने बताया कि उद्योग जगत से चर्चा के बाद, सरकार EV निवेश नियमों में ढील देने पर विचार कर रही है। इसमें मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के साथ-साथ चार्जिंग स्टेशन में किया गया निवेश भी शामिल किया जा सकता है।
यह फैसला हाल ही में पेश हुए केंद्रीय बजट के बाद लिया गया है। बजट में ₹10,000 करोड़ के पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप फंड की घोषणा की गई थी, जो चार्जिंग स्टेशनों सहित अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।इसके अलावा, राज्यों को ₹1.5 लाख करोड़ का बिना ब्याज वाला लोन दिया जाएगा, जिससे वे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को तेजी से आगे बढ़ा सकें।
सूत्रों के मुताबिक, सरकार की यह सहायता भारतीय कंपनियों को ग्लोबल EV मैन्युफैक्चरर के साथ मिलकर चार्जिंग नेटवर्क विकसित करने में मदद करेगी। अब, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में किया गया निवेश भी $500 मिलियन के निवेश प्रतिबद्धता (investment commitment) का हिस्सा माना जाएगा।
अगर यह बदलाव लागू होता है, तो Tesla के लिए यह एक बड़ा बूस्ट हो सकता है। हाल ही में कंपनी ने भारत में हायरिंग शुरू की है, जिसकी पुष्टि LinkedIn पर पोस्ट किए गए जॉब लिस्टिंग से हुई। यह कदम Tesla के CEO ईलॉन मस्क और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन में हुई मुलाकात के कुछ दिनों बाद आया है। मोदी वहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने गए थे।
भारत में Tesla की दिलचस्पी नई नहीं है। 2020 में मस्क ने भारत में Tesla के शोरूम खोलने और कारों का आयात करने की योजना बनाई थी, लेकिन हाई कस्टम ड्यूटी के कारण यह योजना रद्द कर दी गई। 2022 में उन्होंने कई बार भारत में एंट्री को लेकर बयान दिए, लेकिन बाद में घोषणा की कि Tesla फिलहाल भारत में निवेश की योजना टाल रही है।
मार्च 2024 में, सरकार ने कुछ शर्तों के साथ खास कीमत वाली पैसेंजर कारों पर आयात शुल्क में भारी कटौती करने का फैसला लिया। लेकिन, इसके बदले स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग की शर्तें भी लागू कर दी गईं। इस फैसले के बाद, ईलॉन मस्क ने भारत में Tesla लाने में फिर से दिलचस्पी दिखाई। हालांकि, अप्रैल 2024 में उम्मीदें फिर टूट गईं, जब मस्क ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी प्रस्तावित मुलाकात रद्द कर दी और इसके बजाय चीन की यात्रा पर चले गए।