पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल की खासियतों में से एक यह थी कि उनके समय में कई अधिकार-आधारित कानून पारित किए गए। मनरेगा से लेकर सूचना के अधिकार और वन अधिकार अधिनियम तक, मनमोहन सिंह सरकार ने अपने 10 साल के शासन में सामाजिक कल्याण को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाने पर जोर दिया।
कई विधेयकों का समर्थन राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने किया था, जो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एक सलाहकार संस्था थी और जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय या इसकी आर्थिक सलाहकार परिषद या योजना आयोग की ओर से आलोचना का सामना करना पड़ा था, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आखिरकार काफी विचार-विमर्श और चर्चाओं के बाद इसे पारित किया गया, जिससे ये विधेयक एक स्थायी दस्तावेज बन गए।
मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान पारित हुए प्रमुख अधिकार आधारित कानूनों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का बड़ी तादाद में लोगों पर परोक्ष रूप से असर पड़ा।
यह अधिनियम 7 सितंबर, 2005 को अधिसूचित किया गया था। पहले यह केवल 200 जिलों में लागू था, लेकिन बाद में 2008 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। हालांकि इस अधिनियम को लेकर विवाद और संशय भी रहे, लेकिन इसे 2009 में संप्रग को फिर से सत्ता में लाने वाले कारकों में से एक माना गया। एनसीएईआर द्वारा 2015 में कराए गए एक अध्ययन से पता चला कि इस अधिनियम ने 2004-05 से 2011-12 के बीच गरीबी को लगभग 32 प्रतिशत कम करने में मदद की है।
हाल में, इस अधिनियम को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 के साथ कई लोगों द्वारा प्रमुख सामाजिक सुरक्षा जाल के रूप में देखा गया था, क्योंकि इसने गरीबों और जरूरतमंदों को कोविड-19 के प्रकोप और इसके जुड़े आर्थिक संकट का सामना करने में सक्षम बनाया। मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान इस अधिनियम को और अधिक मजबूत किया गया है तथा 2014 के बाद से इसका बजट भी बढ़ता गया है।
अन्य अधिकार आधारित अधिनियमों में, खाद्य अधिकार अधिनियम या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 ने लगभग 80 करोड़ भारतीयों को ज्यादा सब्सिडी वाले भोजन के लिए कानूनी अधिकार की गारंटी दी। हालांकि उस समय ये आरोप लगे थे कि एनएफएसए से वार्षिक खाद्य सब्सिडी बिल में इजाफा होगी और देश में एकल-फसल खेती को बढ़ावा मिलेगा, फिर भी तत्कालीन सरकार ने इस कानून को पारित कर दिया।
सूचना का अधिकार अधिनियम एक अन्य कानून था जिससे शासन में पारदर्शिता और स्पष्टता सुनिश्चित हुई।
वन अधिकार अधिनियम (जिसे शिड्यूल्ड ट्राइब्स -रिकॉग्नीशन ऑफ फॉरेस्ट राइट्स- बिल, 2005 भी कहा जाता है) का उद्देश्य वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों (एफडीएसटी) के वन अधिकारों को मान्यता देना है, जो 25 अक्टूबर 1980 से पहले से भूमि पर काबिज हैं।
मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) और राष्ट्रीय जन सूचना अधिकार अभियान (एनसीपीआरआई) के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने कहा, ‘मनमोहन सिंह नव-उदारवादी वैश्वीकरण के समर्थक थे, लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के आरंभ में ही यह तथ्य पहचान लिया था कि वैश्वीकरण के लाभ से समाज का एक बड़ा वर्ग अछूता रह गया है।’