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कराची से भारत और फिर भारत रत्न… राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लाल कृष्ण आडवाणी को देश के सबसे बड़े सम्मान से नवाजा

Bharat Ratna के इस सम्मान समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और आडवाणी के परिवार के सदस्य मौजूद रहे।

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रत्न शंकर मिश्र   
Last Updated- March 31, 2024 | 3:50 PM IST

Bharat Ratna Lal Krishna Advani: भारत की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने आज यानी रविवार को भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के सबसे करीबी लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया है। भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से नवाजते हुए राष्ट्रपति भवन ने उन्हें राजनीति का पुरोधा बताया और कहा कि यह सम्मान आडवाणी के सात से अधिक दशकों यानी 70 साल से भी ज्यादा तक केअटूट समर्पण और प्रतिष्ठा के साथ देश की सेवा का सम्मान है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को यहां उनके आवास पर देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया। राष्ट्रपति भवन ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि इस समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और आडवाणी के परिवार के सदस्य मौजूद रहे।

बता दें कि आडवाणी को यह पुरस्कार उनके आवास पर दिया गया। स्वास्थ्य कारणों से वे राष्ट्रपति भवन खुद नहीं पहुंच सके थे। उन्हें सम्मानित करते हुए राष्ट्रपति भवन ने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अपने दृष्टिकोण के साथ, उन्होंने पूरे देश में दशकों तक कड़ी मेहनत की और सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव लेकर आए।

मिल चुका है पद्मविभूषण पुरस्कार

गौरतलब है कि लाल कृष्ण आडवाणी को 2015 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार यानी पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

कराची में जन्मे आडवाणी के परिवार ने चुना भारत

दक्षिण पंथ का विचार रखने वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी के पुरोधा लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 1927 में पाकिस्तान के कराची में हुआ था। उस समय देश अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा था और आजाद भी नहीं था। 1947 में जब देश आजाद हुआ और भारत-पाकिस्तान के बीच धर्म के आधार पर बंटवारा होने लगा तो लाल कृष्ण आडवाणी के परिवार ने भारत चुना और यहीं आकर बस गए।

इंदिरा गांधी सरकार के आपातकाल में जमकर लड़े, जेल गए

राष्ट्रपति भवन ने ‘X’ पर समारोह की तस्वीरें साझा करते हुए कहा, ‘जब आपातकाल ने भारत के लोकतंत्र को खतरे में डाल दिया तो उनके अंदर के परिश्रमी योद्धा ने निरंकुश प्रवृत्तियों से इसकी रक्षा करने में मदद की।’

बता दें कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देशभर में आपातकाल (Emergency) का ऐलान रातों-रात कर दिया था। जिसके विरोध में पूरा देश एक साथ हो गया था। नेता से लेकर जनता और पत्रकारों ने इसके खिलाफ जमकर विरोध किया था। उन विरोध करने वालों में लाल कृष्ण आडवाणी का भी नाम भी काफी बढ़-चढ़कर सामने आया। अपने 1975-77 तक की इस लड़ाई में आडवाणी को जेल भी जाना पड़ा था। वे 19 महीनों तक बेंगलूरु के सेंट्रल जेल में कैद रहे थे।

बता दें कि यह आपातकाल 21 महीनों तक 25 जून 1975 से लेकर 21 जून 1977 तक चला था। आपातकाल लगाने का खामियाजा ये हुआ कि पहली बार आजादी के बाद से कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली और जय प्रकाश नारायण की अगुवाई वाली जनता पार्टी (अब भारतीय जनता पार्टी) ने जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई। मोरारजी देसाई उस समय प्रधानमंत्री बनाए गए थे।

बाजपेयी सरकार में बने मंत्री

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में आडवाणी उनकी कैबिनेट में शामिल हुए। अक्टूबर 1999 से लेकर मई 2004 तक उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री की जिम्मेदारी निभाई और जून 2002 से लेकर मई 2004 तक वे भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे। वह कई बार 1986 से 1990, 1993 से 1998 और 2004 से 2005 तक भाजपा अध्यक्ष रहे।

राम जन्मभूमि आंदोलन ने दिलाई एक नई पहचान

लाल कृष्ण आडवाणी इमरजेंसी के समय से ही राजनीति में बड़े सक्रिय हो गए थे। उनके इस करियर ने 1984 में एक नया मोड़ लिया और उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाल ली। बाद में वे 1986 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। बता दें कि जनता पार्टी 1980 में भारतीय जनता पार्टी बन चुकी थी।

शुरू हुई रथयात्रा

रामजन्मभूमि आंदोलन एक नया रूप लेता है और 25 सितंबर 1990 में शुरू होती है गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा। मांग थी कि तत्कालीन बाबरी मस्जिद की जगह फिर से राम मंदिर का निर्माण किया जाए।

रथयाक्षा के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसाएं और दंगे हुए। जब यह बिहार के समस्तीपुर पहुंची तो तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की अगुवाई वाली सरकार ने उन्हें रोक दिया और गिरफ्तार कर लिया। मामला यहीं नहीं रुका। रथयात्रा आगे बढ़ी और उत्तर प्रदेश पहुंची। मगर उस समय के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इसे आगे नहीं बढ़ने दिया और करीब 1,50,000 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

राम मंदिर बनाने की मांग जारी रही और फिर आता है 6 दिसंबर 1992 का दिन। 6 दिसंबर को भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लाखों कार्यकर्ता मस्जिद के बाहर रैली करते हैं। रैली को लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे नेता संबोधित किए। भीड़ बढ़ती गई और फिर मस्जिद गिरा दी गई।

आज भारत रत्न द्वारा नवाजे जाने के बाद राष्ट्रपति भवन की तरफ से पोस्ट कर कहा गया है, ‘उनके संघर्ष की परिणति 2024 में अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर के पुनर्निर्माण के रूप में हुई, जिससे अनगिनत भारतीयों की दशकों पुरानी आकांक्षाएं पूरी हुईं।’

(With Input from PTI)

First Published : March 31, 2024 | 3:07 PM IST