सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में ‘डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक’ (Data Protection Bill) पेश किया। विधेयक को अध्ययन के लिए संसदीय समिति को भेजे जाने की विपक्षी सदस्यों की मांग के बीच इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) ने इसे सदन में पेश किया। उन्होंने विधेयक पेश करते हुए कुछ सदस्यों की इस धारणा को खारिज कर दिया कि यह एक ‘धन विधेयक’ है। उन्होंने कहा कि यह एक सामान्य विधेयक है।
पारित होने पर यह विधेयक नागरिकों की डिजिटल प्राइवेसी को बनाए रखने वाला देश का पहला कानून होगा। विधेयक का उद्देश्य निजी संस्थाओं और सरकार द्वारा नागरिकों के डेटा का उपयोग करने के लिए गाइडलाइन स्थापित करना भी है।
डेटा ब्रीच के लिए पेनाल्टी के दो से ज्यादा मामलों के बाद इस विधेयक से सरकार को डिजिटल प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करने की शक्ति मिलने की संभावना है। प्रत्येक डिजिटल प्लेटफॉर्म को किसी भी डिजिटल व्यक्तिगत डेटा को कलेक्ट करने से पहले यूजर्स से सहमति लेने की आवश्यकता हो सकती है, साथ ही इसके लिए एक डिटेल नोटिस भी देना होगा। बच्चों का डेटा कलेक्ट करने के लिए, बाद में परिभाषित किए जाने वाले प्लेटफॉर्म की एक श्रेणी को छोड़कर, माता-पिता या कानूनी अभिभावकों की सहमति की आवश्यकता होगी।
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डेटा प्रोटेक्शन बिल पर काम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शुरू हुआ कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) एक मौलिक अधिकार है। सरकार ने पिछले साल अगस्त में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक को वापस ले लिया था, जिसे पहली बार 2019 के अंत में प्रस्तुत किया गया था, और नवंबर 2022 में मसौदा विधेयक का एक नया संस्करण जारी किया था।
सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और पार्टी सदस्यों मनीष तिवारी एवं शशि थरूर आदि ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इसमें निजता का अधिकार जुड़ा है और सरकार को जल्दबाजी में यह विधेयक नहीं लाना चाहिए।
(भाषा के इनपुट के साथ)