प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
केंद्र सरकार ने देश में 16वीं जनगणना 2027 में कराने के लिए सोमवार को अधिसूचना जारी कर दी, जिसमें जाति गणना भी शामिल होगी। सभी विचारधाराओं और क्षेत्रों के राजनीतिक दलों के बयानों से संकेत मिला कि इस कार्यक्रम और इसके निष्कर्षों से तीव्र राजनीतिक खींचतान देखने को मिलेगी।
अधिसूचना में कहा गया है कि लद्दाख जैसे बर्फीले क्षेत्रों में जनगणना एक अक्टूबर 2026 की संदर्भ तिथि तथा देश के बाकी हिस्सों में एक मार्च 2027 की संदर्भ तिथि से की जाएगी। साल 2011 में हुई पिछली जनगणना के 16 साल बाद यह बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम चलाया जाएगा।
इसमें कहा गया, ‘उक्त जनगणना के लिए केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू- कश्मीर और हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड के बर्फ बारी वालों क्षेत्रों के अलावा बाकी राज्यों के लिए संदर्भ तिथि एक मार्च, 2027 को 00.00 बजे होगी।’ इसमें कहा गया है कि लद्दाख और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों के बर्फ से ढके क्षेत्रों के लिए संदर्भ तिथि एक अक्टूबर 2026 को 00:00 बजे होगी। देश भर से जनसंख्या संबंधी आंकड़े उपलब्ध कराने का यह विशाल कार्य लगभग 34 लाख गणनाकर्ताओं और पर्यवेक्षकों तथा डिजिटल उपकरणों से लैस लगभग 1.3 लाख जनगणना कर्मियों द्वारा किया जाएगा। इसपर सरकार के 13 हजार करोड़ रुपये खर्च होने की संभावना है।
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एक सरकारी बयान में कहा गया है कि जनगणना के साथ ही जातिगत गणना भी की जाएगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को यहां केंद्रीय गृह सचिव, भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त मृत्युंजय कुमार नारायण और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ जनगणना की तैयारियों की समीक्षा की। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि जनगणना कार्य शुरू होने के बाद से यह 16वीं जनगणना है तथा स्वतंत्रता के बाद आठवीं जनगणना है। संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार, जनगणना सातवीं अनुसूची में संघवर्ती सूची में 69वें स्थान पर सूचीबद्ध विषय है। जनगणना समाज के हर वर्ग से डेटा संग्रह का प्राथमिक स्रोत है और एक दशकीय गतिविधि है। आगामी जनगणना में जाति गणना भी की जाएगी, जो आजादी के बाद पहली बार होगी। पिछली व्यापक जाति-आधारित गणना अंग्रेजों ने 1881 और 1931 के बीच की थी। आजादी के बाद से किए गए सभी जनगणना कार्यों से जाति को बाहर रखा गया था।
आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल करने का निर्णय 30 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा लिया गया था।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया था, ‘इन सभी परिस्थितियों पर विचार करते हुए तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारा सामाजिक ताना-बाना राजनीतिक दबाव में न आए, यह निर्णय लिया गया है कि एक अलग सर्वेक्षण में जाति गणना कराने के बजाय मुख्य जनगणना में इसे शामिल किया जाना चाहिए।’