सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इस दावे पर विचार करने पर सहमति जताई कि बेंगलूरु के गस्टाड होटल्स के प्रवर्तक दीपक रहेजा द्वारा जारी एक जवाबी हलफनामे में 100 से अधिक नकली या एआई से तैयार केस संदर्भ शामिल थे। सुनवाई के दौरान ओंकारा एसेट रीकंस्ट्रक्शन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने पीठ को बताया कि रहेजा द्वारा दिए गए जवाब में ऐसे कई न्यायिक निर्णयों का हवाला दिया गया है जो दरअसल ‘मौजूद ही नहीं’ हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि दस्तावेज मनगढ़ंत कानूनी निर्णयों पर आधारित हैं। इनमें जिनमें आपराधिक कानून के निर्णयों को दिवालियापन की मिसालों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, और यह भी संकेत दिया कि इन्हें आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का उपयोग करके तैयार किया गया हो सकता है।
कौल ने यह भी कहा कि जिन निर्णयों का उल्लेख किया गया है उनमें से कई में गलत तथ्यों का प्रयोग किया गया है या उन्हें कई ऐसे कानूनी प्रस्तावों के लिए दोहराया गया था जो मूल आदेशों से मेल नहीं खाते थे। न्यायमूर्ति दीपंकर दत्ता और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने आरोपों पर गौर किया और कहा कि अगर उद्धरण वाकई फर्जी या एआई से तैयार किए गए हैं तो न्यायालय अपीलकर्ता से जवाब तलब करेगा। मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी।
यह विवाद ओमकारा एआरसी द्वारा गस्टाड होटल्स के खिलाफ शुरू की गई दिवालियापन कार्यवाही से जुड़ी है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी), मुंबई ने 8 जुलाई को ओमकारा की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था, और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय पंचाट (एनसीएलएटी) ने 19 अगस्त को इस निर्णय को बरकरार रखा, जिससे गस्टाड होटल्स और नियो कैप्रिकॉर्न प्लाजा दोनों के खिलाफ दिवालियापन और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की धारा 7 के तहत कार्रवाई की अनुमति मिल गई।
रहेजा और अन्य निलंबित निदेशक ने इन आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए कहा कि 15 नवंबर 2022 को भुगतना में कोई चूक नहीं हुई और खातों के गलत दस्तावेजों के कारण गलत नतीजे निकाले गए।