आया मौसम खरीद का

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 12:44 AM IST

भारतीय शेयर बाजार के दो प्रमुख संकेतों में से एक है सेंसेक्स और यह जनवरी 2008 की अपनी सबसे ऊंचाई से आधे से ज्यादा गिर गया है।


बाजार में पिछले 9 महीनों से गिरावट जारी है और पिछले दो सप्ताहों में तो भारी गिरावट हुई है। और इस दौरान निवेशकों की अच्छी-खासी संपत्ति साफ हो गई है। मांग की स्थिति अच्छी न होने और नकदी का संकट बरकरार रहने से निवेशकों को यह समझ नहीं आ रहा है कि एक साल में शेयर बाजार कहां तक पहुंचेगा।

ऐसे में स्मार्ट इन्वेस्टर ने संपत्ति प्रबंधकों से यह जानने की कोशिश की कि बाजार के प्रति उनका क्या नजरिया है और घाटा कम करने तथा मंदी से निपटने के लिए क्या रणनीति अपनाई जानी चाहिए।

नकारात्मक बातें

अर्थव्यवस्था के मोटे संकेतक, चाहे वह जीडीपी, ब्याज दर, राजकोषीय घाटा, कर्ज वृद्धि, औद्योगिक वृद्धि के आंकड़े क्यों न हों, सभी से एक ही बात झलकती है कि अगली कुछ तिमाहियों में वृद्धि पर असर पड़ेगा। वर्ष 2009 के बारे में अपने आर्थिक अनुमानों में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।

यह 2008 के 7.2 प्रतिशत जीडीपी से थोड़ी ही कम है। पर यह 2007 के 9 प्रतिशत से काफी कम है। इस कोढ़ में खाज का काम विकसित देशों की विकास दर कर सकती है जिसके कि 2009 में सिर्फ 1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। भारत की विनिर्माण गतिविधियां भी कमजोर पड़ी हुई हैं। अप्रैल से अगस्त तक के औद्योगिक विकास के आंकड़े घट गए हैं। अगस्त में यह सिर्फ 1.3 प्रतिशत था। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र और ऑटो के लिए कर्ज वृद्धि के संकेत भी बहुत अच्छे नहीं हैं।

सकारात्मक बातें:

हालांकि सभी ओर से जो खबरें आ रही हैं वे खराब नहीं हैं। महंगाई की वजह से मौद्रिक नीतियों को सख्त करना पड़ा था और महंगाई की वजह से ही ब्याज दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ी थी। इससे खर्च की क्षमता भी घटी थी और निवेश में भी ठहराव आ गया था। पर अब इस दिशा में थोड़ी राहत है।

महंगाई में धीरे धीरे कमी आ रही है और 4 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में महंगाई घटकर 11.4 फीसदी पर आ गई है। कमोडिटी (कच्चा तेल और धातु) की कीमतें घटने का मतलब है कि आने वाले समय में महंगाई दहाई अंक का साथ छोड़ देगी और वापस से एक अंक में आ जाएगी।

साथ ही आने वाले समय में ब्याज दरों में और कटौती किए जाने की संभावना है और इससे कारोबार में तेजी और उपभोक्ता विश्वास के मजबूत होने की संभावना बनती है। विश्लेषकों का मानना है कि फंडामेंटल्स सुधरने में कुछ वक्त लग सकते हैं और सेंटीमेंट्स में भी सुधार आएगा क्योंकि पहले जब जब आर्थिक संकट पैदा हुआ है तो उस दौरान जिस गति से प्रतिक्रियाएं मिली थीं उससे कहीं तेज इस बार प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं।

आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के उप प्रबंध निदेशक नीलेश शाह बताते हैं, ‘1929 में जब मंदी आई थी तो उससे निपटने के कदम काफी देर से उठाए गए, लगभग चार साल बाद 1933 में असल कदम देखने को मिले। पर इस बार संकट के समय विभिन्न देशों ने काफी पहले कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।

विभिन्न देशों की सरकारें अब तक सहायता के तौर पर 30 खरब डॉलर खर्च कर चुकी हैं।’ रेलीगेयर सिक्योरिटीज में इक्विटी के अध्यक्ष अमिताभ चक्रवर्ती कहते हैं, ‘हमें अचानक से परिस्थितियों के बदलने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। प्रणाली को सुधरने में अब भी समय लग सकता है।’ आर्थिक व्यवस्था में सुधार का मतलब है कि कम से कम अगली दो तिमाहियों तक बाजार की रफ्तार कुछ मंद ही रहेगी।

क्या करें

बाजार के विश्लेषक आपको अपने निवेश पोर्टफोलियो के संबंध में निर्णयों में सतर्कता बरते जाने की सलाह देते हैं। वहीं मौजूदा निवेशकों, जिन्हें फौरन पैसे की जरूरत नहीं है, को नहीं घबराना चाहिए और न ही उन्हें अपना पैसा निकालने की जल्दी करना चाहिए लेना चाहिए वरना उनको भारी घाटा उठा सकते हैं।

लेकिन नए निवेशकों के लिए किफायती कीमतों पर बढ़िया शेयरों के लिए यह अच्छा समय है। निवेश सलाहकार कंपनी वाइजइन्वेस्ट के मुख्य कार्यकारी हेमंत रुस्तगी कहते हैं, ‘काफी गिर चुका है, वाला नजरिया अपनाएं और बाजार में एक ही बार में भारी राशि का एकमुश्त निवेश करने के बजाय छोटी राशि के निवेश को प्राथमिकता दें।’

एंजेल ब्रोकिंग के मुख्य प्रबंध निदेशक एग्रीस दिनेश ठक्कर का कहना है, ‘अगर आपको पास पैसा हौ तो उसके 25 फीसदी हिस्से का अभी निवेश करें और बाकी राशि अगले तीन महीने के दौरान जब जब गिरावट आए निवेश करें। ‘ यह रास्ता अपना कर आप न सिर्फ शेयर कीमतों में बढ़त से फायदा कमाएंगे बल्कि इन स्तरों पर निवेश से गिरावट के समय आपका घाटा भी कम से कम होगा।

लेकिन मौजूदा निवेशकों को अगर जरूरत लगे तो उन्हें पोर्टफोलियो में बदलाव लाना चाहिए और घाटा उठाना भी सीखना चाहिए। वह इसलिए कि यदि आप ऐसा नहीं करते हैं ता आप उन कंपनियों के साथ ही चिपके रह सकते हैं जो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही हैं। इस तरह आप नुकसान को लाभ में तब्दील करने का एक अवसर खो सकते हैं। डीएसक्यू सॉफ्टवेयर जैसे कुछ शेयर इसके सबूत हैं जो डॉटकॉम की तेजी में बहुत चढ़े थे।

निवेश, अटकलें नहीं

जहां निवेश सलाहकार इक्विटी निवेश की दीर्घावधि प्रवृत्ति की बात करते हैं, तो वे निवेशकों को यह भी बताते हैं कि संपत्ति वगई में  कितना लाभ शामिल है और क्या कमियां हैं। अभय ऐमा कहते हैं, ‘मंदी के चक्र के बावजूद इक्विटी से  10 वर्ष की अवधि के दौरान 18 से 20 फीसदी का रिटर्न मिल जाता है और ये सभी तरह की संपत्तियों के मुकाबले अच्छा होता है।’ 

हालांकि वास्तविकता यह भी है कि शेयरों में न केवल भारी उतार-चढ़ाव होता है और अगर उनमें मोटा मुनाफा है तो जोखिम बी भारी। आपने कुछ सबक सीखा? बाजार चक्रों में काम करते हैं। आपने कैलेंडर वर्ष 02-07 के बीच सकारात्मक रिटर्न और पिछले तीन वर्षों में 40 फीसदी का रिटर्न देखा होगा।

पर अगर आप तेजी के इस घोड़े पर इस साल जनवरी में सवार हुए हैं तो आपको मौजूदा कैलेंडर वर्षं में अपने पोर्टफोलियो में 40 से 50 फीसदी की गिरावट देखने को तैयार रहना चाहिए। पैसा कमाना है तो आपको बाजार के उतार-चढ़ाव पचाना आना चाहिए।

कहां करें निवेश?

निवेश करने से पहले कई बातों पर विचार करना जरूरी है। खासकर ऐसी कंपनियों को निवेश के लिए चुनें जो अच्छा कारोबार कर रही हों। इस संदर्भ में कंपनियों का आकार नहीं बल्कि यह देखें कि वह अगुआ है नहीं। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि वित्तीय स्थिति मजबूत होने के अलावा कंपनी में संभावनाशील हो, उसका प्रबंधन मजबूत हो । इसके अलावा कई और भी बातें हैं जिन पर निवेश के दौरान विचार करने की जरूरत है। ये कारक हैं :

अधिक नकदी, कम कर्ज: मौजूदा आर्थिक माहौल में अपने निवेश का लाभ उठाने के लिए कैश इज किंग के पारंपरिक सिद्धांत को देखें। उन कंपनियों पर ज्यादा ध्यान दें जिनके पास मजबूत सकारात्मक नकदी प्रवाह हो ताकि वे अपना कारोबार फैलाने में सक्षम हो।

ऐसे समय में जब शेयर बाजार गिरा हुआ है और ऋण लेना महंगा हो गया हो, पैसा जुटाना न सिर्फ बड़ी चुनौती होती है बल्कि इससे बैलेंस शीट पर भी दबाव पड़ सकता है। जहां सॉफ्टवेयर और एफएमसीजी कंपनियों के पास उच्च मार्जिन के कारण अच्छी-खासी नकदी है, वहीं निवेशकों को आईटी कंपनियों में निवेश करने से पहले वैश्विक मांग पर ध्यान देने की भी जरूरत है। वहीं एफएमसीजी और फार्मास्युटिकल्स रक्षात्मक क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र के अंदर आईटीसी, रैनबैक्सी (कीमत के कारण) और सन फार्मा में निवेश किया जा सकता है।

फंडिंग ब्लूज: मौजूदा विस्तार में पैसे फंसना या अधिग्रहण के लिए रकम की दरकार से परिचालन में कम ही लचीलापन मिलता है। ध्यान दीजिए कि बाजार में उन कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है जिन्होंने बड़े विस्तार की योजनाएं बनाईं और आगे बढ़ाने के लिए जिन्हें कोष की जरूरत पड़ी।

यहां जयप्रकाश एसोसिएट्स का उदाहरण लिया जा सकता है जिसे पिछले महीने के दौरान 50 फीसदी की गिरावट का सामना करना पड़ा। यह कंपनी 5600 करोड़ रुपये की लागत से देश की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की जलविद्युत परियोजना तैयार कर रही है। इसने अपनी सीमेंट क्षमता को बढ़ा कर तीन गुना कर दिया और रियल एस्टेट क्षेत्र में महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को हाथ में लिया।

कंपनी की योजना राइट इश्यू के रास्ते कोष जुटाने की है। कंपनी ने ऐसे वक्त कोष जुटाने की योजना बनाई है जब हिंडाल्को और टाटा मोटर्स जैसी प्रख्यात कंपनियों को मंद पड़े बाजार में अपने इश्यू के लिए सही मूल्य निर्धारण पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है।

इसके विपरीत एनटीपीसी वित्त वर्ष 2008 के अंत तक 15,000 करोड़ रुपये के नकदी भंडार से लैस हो रही है और वह अपनी मेगा परियोजनाओं के लिए अंदरूनी स्रोतों और कर्ज से सामूहिक तौर पर कोष जुटा सकती है। यह कंपनी हर साल तकरीबन 10,000 करोड़ रुपये का नकदी लाभ हासिल करती है।

काफी है गिरावट?: किसी कंपनी की शेयर कीमत गिर जाने का मतलब यह नहीं है कि आप झट से उसमें निवेश करने को तैयार हो जाएं। कुछ लोग तो ऐसे में अक्सर उस कंपनी के पिछले कुछ महीनों के भाव भी देखने लग जाते हैं और सोचते हैं कि इसमें 50 से 60 प्रतिशत गिरावट आ चुकी है, इसे खरीद लिया जाए।

उन्हें यह शेयर कापी सस्ता लगने लगता है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि वह अच्छा शेयर है ही। वित्तीय सेवा कंपनी बोनांजा पोर्टफोलियो के अध्यक्ष (रिसर्च) पी. के. अग्रवाल कहते हैं, ‘कंपनियां (उदाहरण के लिए पूंजीगत वस्तुओं के क्षेत्र में) जिन्होंने पहले की तेजी में अच्छा प्रदर्शन किया, भी उच्च ब्याज दरों और औद्योगिक एवं आर्थिक विकास में मंदी के कारण बड़े दांव नहीं लगा सकती हैं।’

निर्माण और रियल्टी शेयरों से परहेज करें जिनमें काफी हद तक गिरावट आई है, क्योंकि इन क्षेत्रों को अपने कारोबार को बरकरार रखने के लिए बड़ी मात्रा में पूंजी की जरूरत है। अन्य सस्ते शेयरों में रिलायंस कम्युनिकेशंस भी शामिल है। हालांकि कंपनी की देश भर में जीएसएम नेटवर्क की योजना आधी पूरी हो चुकी है। कंपनी वित्त वर्ष 2008 और 2009 में 50,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी।

अपनी टावर इकाई रिलायंस इन्फ्राटेल और अंतरराष्ट्रीय केबल व्यवसाय को सूचीबद्ध कराने में विफल रही इस अग्रणी दूरसंचार कंपनी की स्थिति बाजार के मौजूदा खराब हालात थोड़ी मुशिकत में तो है। बेहतर व्यापार संभावनाओं और विकास परिदृश्य के बीच पिछले महीने के दौरान इसके शेयरों में 35 फीसदी तक की गिरावट आई है।

यदि आप शेयर खरीदने के लिए उतार-चढ़ाव से झेल सकते हैं और आक्रामक दृष्टिकोण अपनाते हैं तो आप इसे अपने पोर्टफोलियो में जोड़ सकते हैं। अन्य क्षेत्र जहां कोई शोयरों की तलाश करना चाहे तो वह है वित्तीय सेवा की कंपनियां।

यह मानना है, जे एम फाइनेंशियल एएमसी के कार्यकारी निदेशक (इक्विटी) और सीआईओ संदीप सभरवाल का। वे कहते हैं कि नरम ब्याज दरों की संभावना के चलके निवेशक बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र (पीएसयू बैंक) में कंपनियों की तरफ देख सकते हैं जिनके शेयर सस्ते तो हैं ही, बाजार के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन भी कर सकते हैं।

अन्य मानक:

पिछले लाभांश रिकॉर्ड और पहली दो तिमाहियों में नकदी प्रवाह की स्थिति की समीक्षा करें। ऐसे में आप एक ऐसा निष्पक्ष आइडिया बना सकेंगे जिसमें आप खुद देखेंगे कि अधिक लाभांश भुगतान करने वाली कंपनियां आपकी नजर में आएंगी।

उच्च लाभांश आय के नजरिए से देखें तो बोंगाईगांव रिफाइनरीज और चेन्नई पेट्रो दो ऐसे नाम हैं जो दिमाग में कौंधते हैं और मौजूदा कीमतों पर उच्च लाभांश आय के मापदंड पर फिट बैठते हैं। जो बाजारों में निवेश करना चाहते हैं, और जिनके पास न धैर्य और न ही समय तो वे इंडेक्स फंड्स में किस्मत आजमा सकते हैं।

First Published : October 19, 2008 | 11:42 PM IST