वर्ष 2008 ने सभी निवेशकों का इम्तिहान लिया। इक्विटी बाजार में कुछ महीनों के लिए तेज उतार-चढ़ाव देखा गया, लेकिन कुल मिलाकर इसमें जबरदस्त गिरावट रही।
इसके अलावा कुछ अन्य परिसंपत्ति श्रेणियों में भी तेज गिरावट का दौर रहा। उदाहरण के लिए कच्चे तेल की कीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को भी पार कर गईं और फिर उनमें गिरावट का ऐसा दौर चला कि वे 32 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक गिर गईं।
इसमें कोई हैरत नहीं है कि महंगाई दर लगभग 13 प्रतिशत के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई और अब यह 6.38 प्रतिशत के स्तर पर है।यहां तक कि रियल एस्टेट जो हाल तक तेज रफ्तार के साथ आगे बना हुआ था, उसमें भी सन्नाटा पसरा है।
बिल्डरों के अपने संपत्तियों के दाम घटाने या कर्ज की ब्याज दरों के गिरने का भी इस पर कोई खास असर होता दिखाई नहीं दिया। कई मामलों में डेट और सोने ने निवेशकों को इस बवंडर से उबारने में मदद जरूर की। खासतौर पर गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) ने, जिसने पिछले एक साल में 25.5 प्रतिशत का रिटर्न दिया है।
म्युचुअल फंड के फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) जो बेहतर रिटर्न और कर में लाभ की अपनी विशेषताओं के चलते अधिक पैसा आकर्षित कर रहे थे, वे भी अक्टूबर से कुछ ठंडे पड़ गए हैं।इन सभी बातों को ध्यान में रख कर आइए देखते हैं कि निवेशकों के लिहाज से वर्ष 2009 में क्या खास है।
इक्विटी : अभी शुरू करने वालों के लिए शुरुआती कुछ महीने बहुत बढ़िया नजर नहीं आ रहे। अमेरिका में ब्याज दरों में जबरदस्त कटौती के बावजूद अर्थव्यवस्था के बुनियादी स्तंभ की नींव अब भी मजबूत नहीं दिखाई दे रही। यहां तक कि भारतीय कॉर्पोरेट जगत का प्रदर्शन भी दिसंबर और मार्च तिमाहियों में अच्छा नहीं रहेगा।
पहले ही इस साल के शुरुआती 6 महीनों के लिए लगाए गए अनुमानों में कहा गया है कि हो सकता है कि हम अक्टूबर के न्यूनतम स्तर का अनुभव कर सकते हैं और वह भी तब जब सेंसेक्स 7,700 अंक के स्तर पर होगा।
दुनियाभर के देशों में केंद्रीय बैंक नकदी बढ़ाने और कर्ज के प्रवाह को बढ़ाने के प्रयास कर रहे हैं। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और सरकार ने मुश्किलों का सामना करती अर्थव्यवस्था और उद्योगों को राहत पहुंचाने के लिए कई उपायों की घोषणा की है। ये सभी उपाय नरम ब्याज दरों के माहौल के लिए शुभसंकेत हैं।
साथ ही उम्मीद है कि उद्योगों को प्रोत्साहन और ब्याज दरों में कटौती के रूप में और मदद मिलेगी। ये सभी उपाय इसलिए किए जा रहे हैं ताकि स्थानीय नकदी की स्थिति में अहम सुधार हो सके।
साथ ही, बीमा कंपनियों की ओर से अधिक संस्थागत पैसे को बाजार में लगाया जा सके। और यहां तक कि अगर स्थिति बेहतर होती है तो पर्याप्त नकद वाले म्युचुअल फंड भी आगे निवेश करें।
बेशक, राजनीतिक अनिश्चितता और कमाई कम होने के अनुमानों के साथ सभी डरे हुए हैं, लेकिन शुरु के 6 महीने बाद स्थितियां सुधरने लगेंगी।
हालांकि अगले साल में आर्थिक विकास में देश का प्रदर्शन बेहतर हो जाएगा, लेकिन इसे खत्म करने के लिए जरूरत है कि दुनियाभर में बुरी खबरों के दौर पर पूर्ण विराम लग जाए और विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भारत में लगातार अपना पैसा लगाते रहें।
हालांकि बाजार से यह पता नहीं लग रहा कि उसमें यह दौर कब खुशी के माहौल में बदलेगा, लेकिन अपनी मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसी को भी इक्विटी में निवेश करना चाहिए।
यह निवेश जोखिम में निवेश करने के लिए आपको अधिक रिटर्न दिला सकता है, क्योंकि बाजार का रुख इन दिनों दीर्घावधि निवेशकों के हित में है।
दीर्घावधि निवेशक मौजूदा स्तर की कम कीमतों पर खरीदें, वह भी यह सोचते हुए कि वे कम से कम 5 साल के लिए इस निवेश में बने रहेंगे। यह मत सोचिए कि आगे जब कीमतें और गिर जाएंगे तब खरीदेंगे।
काल करे सो आज करे। लेकिन ऐसे लोगों के लिए जो इक्विटी में निवेश कर जल्द ही उससे निकलना चाहते हैं, उनको मेरा एक ही जवाब होगा, नहीं, ऐसा न करें।
रियल एस्टेट : अब वह समय नहीं रहा कि बिल्डर घर खरीदने वालों को छूट देने से इनकार कर दें। तब से अब तक माहौल काफी बदल गया है। नकदी संकट के कारण बिल्डर अब बेचना चाहते हैं, फिर चाहे छूट क्यों न देनी पड़े।
लेकिन अभी एकदम उछल पड़ने की स्थिति नहीं है। हालांकि पहले ही कीमतों में 25 प्रतिशत तक गिरावट हो चुकी है, लेकिन अभी इनमें आगे और गिरावट होने की उम्मीद है। क्षेत्र के आधार पर उम्मीद है कि कीमतें अभी 10 से 25 प्रतिशत और कम होंगी।
इसमें कम ब्याज दरें घर खरीदने वालों के लिए एक सहायता की तरह हैं। हालांकि जब से बैंकों ने अधिक मार्जिन रकम मांगनी शुरू की है, इसका मतलब है कि खरीदार को अपनी जेब से अधिक रकम चुकानी होगी। इसे मौजूदा अनिश्चितता के दौर में एक बेहतर विकल्प के रूप में नहीं देखा जा सकता।
इक्विटी बाजार जहां तेजी से अच्छे दौर की तरफ बढ़ रहा है, वहीं रियल एस्टेट बाजार में अभी अच्छी खबरें सुनने में लंबा वक्त लगेगा। इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में खरीदने के अच्छे मौके हैं और अगर हो सके तो कुछ महीने और इंतजार कर लें।
सोना : सोने में बेहतर संभावनाएं हैं और उम्मीद है कि वह अगले तीन साल में बढ़िया रिटर्न दे सकता है। हालांकि इसमंद अधिक उतार-चढ़ाव के अनुमान हैं और हो सकता है कि आप इस बाजार में तेज गिरावट या बिकवाली के दिन भी देखें। कीमतों में जब काफी गिरावट हो, तभी सोना खरीदें।
ईटीएफ के जरिये निवेश निवेशकों के लिए एक बढ़िया विचार है। अगले तीन साल की अवधि में यह दहाई आंकड़े में रिटर्न दिला सकते हैं। लेकिन जरूरत से ज्यादा उछाल न मारें।
अपने पैसे का 10 से 15 प्रतिशत ही सोने में निवेश करें। इससे एक बात तो सुनिश्चित हो जाएगी कि आपने किसी एक खास तरह की परिसंपत्ति में बहुत ज्यादा निवेश नहीं किया हुआ।
इनकम प्लस (दीर्घावधि बॉन्ड फंड) : आरबीआई की ओर से उठाए गए तुरत-फुरत कदमों के कारण ब्याज दरों में लगातार कटौती हो रही है और यही बात बॉन्ड फंडों के हित में हैं।
यहां तक कि इस शुक्रवार को आरबीआई ने नकद आरक्षी अनुपात में आधे प्रतिशत की कटौती, रेपो दर में 1 प्रतिशत की कटौती कर 5.5 प्रतिशत और रिवर्स रेपो में 1 प्रतिशत की कटौती कर इसे 4 प्रतिशत कर दिया है।
इससे समझा जा सकता है कि आगे सभी बैंक भी अपनी दरों में कटौती करेंगे। इसका मतलब है कि दीर्घावधि बॉन्ड फंड बेहतर विकल्प हो सकते हैं।
ऐसे फंडों पर विचार करें जो 5 प्रतिशत या उससे अधिक अवधि के लिए प्रतिभूतियों में निवेश करते हों। साथ ही अधिक रिटर्न कमाने के लिए इनकम प्लान पर विचार करें जो दोनों सरकारी बॉन्ड और कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश करते हों।