सागर सीमेंट – नाम नहीं काम पर जाइए जनाब।

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 10:41 PM IST

हैदराबाद की एक छोटी सी कंपनी है सागर सीमेंट। छोटी इसलिए कि उसकी सालाना उत्पादन क्षमता दस लाख टन से भी कम है और इसके बारे में कोई चमत्कारिक खबर आना अभी बाकी है।


लेकिन क ई सवाल हैं जो सोचने पर मजबूर करते हैं। सबसे पहली बात तो यह कि जब शेयर बाजार औंधे मुंह गिरा तो इस कंपनी पर असर क्यों नहीं पड़ा? कंपनी ने 2007-08 में 34 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया लेकिन उसका बाजार पूंजीकरण 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।


सागर सीमेंट के शेयर की कीमत 31 जनवरी 2008 को गिरकर 292 रुपये पर पहुंच गई थी लेकिन मार्च 2008 में वह बाजार के संभलने से पहले ही 384 रुपये पर पहुंच गया। कैसे? एक और सवाल यह है कि ब्लैकस्टोन ने सागर सीमेंट के शेयर 190 रुपये प्रति शेयर की दर पर क्यों खरीदे जबकि उसकी बाजार कीमत 70 रुपये थी। सवालों की एक लंबी फेहरिस्त है और कई महीनों की पड़ताल के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि सागर सीमेंट के पास एक बड़ा गुर है जिसे जानकारी कहते हैं।


कंपनी बाजार के अन्य खिलाड़ियों के मुकाबले सस्ते सीमेंट संयंत्र वक्त पर पूरे करने की कला जानती है। यही खासियत कंपनी को औरों से अलग बनाती है और यही वजह है कि पेशेवर लोग उसकी तरफ खिंच रहे हैं क्योंकि सागर सीमेंट की इस ताकत के फायदे नजर आने लगे हैं। अभी यह सब छोटे स्तर पर नजर आ रहा है लेकिन जैसे जैसे कंपनी का निवेश बढ़ेगा वैसे वैसे फ ायदा भी बढ़ता जाएगा।


साल 2007-08 के पहले नौ महीनों में कंपनी को ब्याज, घिसावट, कर और देय राशियों के भुगतान के बाद होने वाली आय 45 करोड़ रुपये थी और तिमाही दर तिमाही इसका मार्जिन 44 फीसदी से 26 फीसदी रहा है। अगर यह स्थिति कायम रहती तो यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि साल 2007-08 में कंपनी ब्याज, घिसावट, कर और देय राशियों के भुगतान के बाद 60 करोड़ रुपये कमा लेगी। यह वर्तमान उद्योग के औसत से ज्यादा है।


वजह क्या है?


कुछ खास वजहे हैं-


कंपनी केवल 300 करोड़ रुपये के निवेश से अपनी क्षमता 6 लाख टन से बढ़ाकर 25  लाख टन करने वाली है जबकि बाजार की दूसरी सीमेंट कंपनियां काफी पैसे लगाकर ऐसा कर रही हैं।


कम कीमत में विस्तार की यह योजना कोई परियों की कहानी नहीं है। कंपनी ने 2003 में इसे साबित भी कर दिखाया था जब उसने उस समय की बाजार कीमत से कम कीमत पर अपनी क्षमता दोगुनी कर सालाना 6 लाख टन के स्तर पर पहुंचा दी थी।


कंपनी विस्तार का काम पूरा करने ही वाली है वह भी निर्धारित समय सीमा और बजट के अंदर। आजकल के दौर में यह बड़ी बात है।


दिलचस्प बात यह है कि विस्तार कम लागत में जरूर किया जा रहा है मगर गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं किया गया है। यह देखकर इस उद्योग के जानकार भी हैरान हैं।


एक अहम सवाल यह उठता है कि एक ऐसे बाजार में जहां कोई व्यवसाय से जुड़ा राज ढाई दिन भी राज नहीं रह सकता। वहां सागर सीमेंट कैसे हर बार बाजार में कीमतों को मात देती है? दूसरी कंपनियां कैसे पीछे रह जाती हैं?


आमतौर पर होता यह है कि सीमेंट कंपनियां रोजमर्रा की जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाने के लिए ठेकेदारों को परियोजनाएं तैयार करने का ठेका दे देती हैं। सागर सीमेंट ने ठीक इसके उलटा किया और एक परियोजना को कई छोटे छोटे हिस्सों में बांट दिया। हर  एक के लिए खास तकनीकी आपूर्तिकर्ताओं की पहचान की और काफी मोल भाव भी किया । इसके बाद इन सबको एक सूत्र में पिरो दिया।


कंपनी बाजार में सिर्फ एक ही कंपनी को सारे ठेके देने की घिसी पिटी लीक से हट कर चली । नतीजतन वह कम  कीमत पर बेहतर क्वालिटी पाने में सफल हुई और उसने सबको मिलाकर कम लागत में बेहतर परिणाम दिए। यहां तक कि वह 12.5 लाख टन क्षमता के दाम में 18.5 लाख  टन वाला संयंत्र बनाने में कामयाब रही। साल 2008 भले ही ऊंची महंगाई दर वाला साल रहा है लेकिन सागर सीमेंट आज भी 1996 की कीमतों पर संयंत्र बना सकती है।


कंपनी के इस प्रदर्शन से जो फायदा हुआ है वह केवल वित्तीय फायदा नहीं है। परियोजना को भागों में बांटने और फिर जोड़ने के इस तरीके से एक हैरान कर देने वाली बात सामने आयी है। वह यह कि किसी उपकरण की क्षमता में नाममात्र की बढ़ोत्तरी पूरी क्षमता को बेहतर ढंग से प्रभावित करती है। नतीजा यह हुआ कि सागर सीमेंट परियोजना की योजना के दौरान पैदा होने वाले असंतुलन पर काबू पाने में सफल रही।


हालांकि मुझे इस बात पर थोड़ा शक है और मैं ब्रांड नेम में यकीन करने वाला आदमी हूं क्योंकि जिनका बाजार में नाम है वह ज्यादा बेहतर गुणवत्ता और वह भी जल्दी देते हैं। मेरे इस शक के दायरे में सागर सीमेंट भी आती है।


कंपनी ने खुद को एक सीमेंट कंसल्टेंसी के रूप में स्थापित किया है जो बाजार में मौजूदगी के लंबे अनुभव का इस्तेमाल ऐसे बिकाऊ उत्पाद देने में करती है कि मेरे और आप जैसे लोग पैसे लेकर जाते हैं ताकि कम लागत में सीमेंट संयंत्र बनवा सकें और पहले ही दिन से सागर सीमेंट लग जाती है परियोजना का स्वरूप तैयार करने और ठेकेदार जुटाने में।


यहीं विरोधाभास की स्थिति पैदा होती है। वह कंपनी जो खुद किसी एक कंपनी से खरीदारी में विश्वास नहीं करती, दूसरों के लिए एकमात्र कंसल्टेंसी की भूमिका में आ जाती है। अपने इसी अवतार में कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी सीमेंट ग्राइंडिंग कंपनी रघुराम सीमेंट के लिए सालाना 55 लाख टन क्षमता वाला सीमेंट संयंत्र लगाने जा रही है। यह काम वह मार्च 2009 तक पूरा करेगी और यह सौदा 600 करोड़ रुपये में हुआ है।


यही नहीं कंपनी जो दूसरों के लिए कर रही है वही उसने खुद के लिए करना भी शुरू कर दिया है। वह ओमान में 20 लाख टन क्षमता वाला सीमेंट संयंत्र लगा रही है। साथ ही वह साझेदारी में कर्नाटक में एक 55 लाख टन क्षमता वाला संयंत्र बनाएगी। इन हाउस कंसल्टेंसी और कम लागत ने उसे बाजार की प्रतियोगिता में पहले ही बढ़त दिला दी है।


महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सबके पीछे संदेश क्या है? निवेश के लिए माहौल काफी अनिश्चित है, ऐसे में वही उद्यमी फायदे में रहेंगे जो पैनी नजर और कुशल प्रदर्शन का बेहतर संगम दिखा पाएंगे और वह कंपनियां फायदे में रहेंगी जो कारोबार में कम लागत के फार्मूले को भुना सकती हैं।


क्या है आपके फायदे की बात?


अगर केवल नौ महीने के विस्तार कार्यक्रम को मान कर चलें तो कंपनी का मुनाफा 80 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है।
अब से कुछ सालों के भीतर ही कंपनी की कर पूर्व आय 200 करोड़ रुपये होने की संभावना है।
विस्तार के बाद कर पूर्व आय और बढ़ने की संभावना है।
सागर की रीरेटिंग की प्रबल संभावना है।
लगभग 14 करोड़ रुपये की इक्विटी के साथ हर साल एक करोड़ रुपये की कंपनी बनने की प्रबंधन की दूरदृष्टि।


(विश्लेषक मुदार की इस कंपनी में दिलचस्पी है।)

First Published : April 20, 2008 | 11:17 PM IST